ओ३म् “श्री सत्यपाल ‘सरल’ की नई पुस्तक ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ का परिचय”
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
श्री सत्यपाल सरल जी आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक हैं। आज दिनांक 2 मई, 2024 को उनका 78वां जन्म दिवस है। आज उन्होंने अपने जीवन के 78वें वर्ष में प्रवेश किया है। वह कोरोना काल के बाद से अस्वस्थ चल रहे हैं। इस अवधि में उनका आर्यसमाजों में प्रचार के लिये जाने का कार्यक्रम भी स्थगित चल रहा है। इस लगभग तीन वर्ष की अवधि का सदुपयोग सरल जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन पर पुस्तक लिखने में किया है। पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक का शीर्षक ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ है। पुस्तक में 273 पृष्ठ हैं। सरल जी की यह पुस्तक वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। पुस्तक के प्रकाशक ‘आशा पब्लिकेशन, 54/1 किशननगर, देहरादून-उत्तराखण्ड’ हैं। पुस्तक का मूल्य रु. 400.00 है।
पुस्तक की प्रस्तावना आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान श्री वेदप्रिय शास्त्री, सीताबाड़ी, जिला बारां, राजस्थान ने लिखी है। श्री शास्त्री ने सरल जी के विषय में प्रस्तावना में लिखा है कि श्री सत्यपाल ‘सरल’ आर्यसमाज के एक लब्धप्रतिष्ठित भजनोपदेशक हैं जिन्होंने देश के कोने-कोने तक जाकर अपने मधुर गीतों, गाथाओं और प्रवचनों के द्वारा सामाजिक जीवन मूल्य और सदाचार को प्रतिष्ठित करने में अपने जीवन का मुख्य भाग समर्पित किया है। यह बहुत बड़ा पुण्य कार्य है। इन्होंने वैदिक संस्कृति रक्षक श्री राम नामक पुस्तक में अपनी कविता और उपदेश के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पावन चरित्र को जन सामान्य ग्राह्य ढंग से संकलित किया है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने इतिहास का वास्तविक स्वरूप प्रदर्शित किया है। काल्पनिक, चमत्कारिक और अवैज्ञानिक बातों का खण्डन करते हुए सत्य कथन किया। इसके लिए इन्होंने वाल्मीकि रामायण को आधार बनाया है। इनका प्रयास सफल एवं सार्थक हो, यश की प्राप्ति हो और अधिक से अधिक लोग इस पुस्तक का लाभ लें, ऐसी आशा की जाती है।
पुस्तक में श्री सत्यपाल ‘सरल’ जी ने अपनी लेखनी से ‘हृदय मन्दिर से’ शीर्षकान्तर्गत पुस्तक का प्राक्कथन लिखा है। सरल जी ने इस प्राक्कथन में लिखा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र का महान् व्यक्तित्व दिव्य और बहु आयामी था, उनका पावन पवित्र उत्तम जीवन निर्मल चरित्र मानव समाज के लिए प्रेरणास्पद है। श्री राम महामानव थे, महानायक थे, उन्होंने वेदानुकूल बर्ताव किया, वह वैदिक संस्कृति के पोषक एवं रक्षक थे। अपने जीवन काल में असाधारण अद्भुत विलक्षण दिव्य कार्य किये श्रेष्ठ कार्य महान् आत्मा ही कर सकती है। उनके द्वारा किये विशिष्ट कार्यों से उनका यश दिग्दिगन्त में व्याप्त है। उनकी धवल कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है। सरल जी ने प्राक्कथन में यह भी लिखा है कि सुधी पाठकों की सेवा में विनम्र निवेदन है कि उन्होंने सत्यनिष्ठ श्रीराम का महानतम्, धवल, सबल, सरल, विमल, आदर्श चरित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, इसमें चमत्कारिक आख्यानों को किंचित स्थान नहीं दिया है, हिमालय से महान गंगा से अति पावन श्री राम का भव्य और विशाल व्यक्तित्व, निर्मल जीवन देशवासी अपने आचरण में उतारें तभी निश्चित शुद्ध संस्कार शुद्ध प्रवृत्ति बनेगी एवं धर्म-संस्कृति, देश, जाति का सम्मान कर सकेंगे, इसी पवित्र भावना से यह कवितामय कथानक प्रस्तुत किया है।
पुस्तक में मंगलाचरण एवं पांच अध्याय हैं। यह पांच अध्याय हैं बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धाकाण्ड एवं युद्धकाण्ड। इन सभी काण्डों में सरल जी ने विषय को अपने सरल शब्दों सहित स्वरचित गीतों एवं कवित्त में प्रस्तुत कर अपनी विशेष काव्य रचना प्रतिभा का परिचय दिया है। पुस्तक के दूसरे अध्याय अयोध्या काण्ड से हम सरल जी द्वारा रचित एक गीत और कवित्त को प्रस्तुत कर रहें हैं।
गीत
हमने या राम ने क्या बिगाड़ा,
कब का बदला ये तूने लिया है,
नाश कुल का लगी है तू करने,
अनर्थ पथ क्यों तूने किया है।।
राम ने तो सदा से ही तुझको,
अपनी निज मात करके है जाना,
ऐसा क्या पाप है राम का जो,
विकट व्यवहार तुने किया है।।1।।
सब प्रशंसक नर नारी उसके,
दोष क्या है जो उसको मैं त्यागूं,
सब कुछ दूं त्याग पर राम को मैं,
त्याग सकता ना फटता हिया है।।2।।
बिना सूरज रहे जग ‘सरल’ ये,
जीवन जल के बिना भी यह रह जा,
पर श्री राम बिन प्राण मेरे
रहे किंचित ना यह कह दिया है।।3।।
कवित्त
कृतघ्न कैकेयी कु्रद्ध हुई चीरहरण किया शिष्टाचार का,
सम्वेदना समाप्त निर्मम जीवन दुर्गम मार्ग बना भार का।
महाविप्लवकारी रौद्र रूप धर कर बोली पश्चाताप हो रहा,
झंझावात महातमस छल कपट प्रपंच सन्ताप हो रहा।।
भरती भाव अभावों में राजा शैव्य ने बाज पक्षी को,
अपना मांस दे जीवन प्रदान किया कबूतर पक्षी को।
शुभ कार्य अलर्क ने किया दोनों नेत्र ब्राह्मण को दान करके,
उत्तम कीर्ति सूर्यवंश की सब मिल जय-जयकार करते।।
इतिहास बनायें धार्मिक कहलायें रघुवंश को शत्-शत् नमन,
सौगन्ध भरत की वन जायें राम सत्यमेव जयते बोलें सुजन।
पुस्तक के अन्तिम कवर पृष्ठ पर श्री सरल जी का सचित्र परिचय भी प्रकाशित किया गया है। जब हम सरल जी के जीवन पर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने अपने जीवन के पांच दशक व उससे कुछ अधिक समय वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रचार सहित विद्वानों के प्रवचनों को सुनने व श्री राम के जीवन पर उपलब्ध वैदिक विद्वानों के अनेकानेक ग्रन्थों के अध्ययन में लगाया है। हमने दून विहार, देहरादून में उनके द्वारा की गई रामकथा को भी सुना है। बाल्मीकि रामायण का अध्ययन उन्होंने किया ही है। सरल जी में काव्य रचना की भी विशेष प्रतिभा है। इन सब का परिणाम उनकी यह पुस्तक ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ है। इतने अध्ययन, चिन्तन-मनन एवं अनुभव के बाद लिखित इस पुस्तक को हम सबको पढ़ना चाहिये। इससे हमारा श्री राम के आदर्श जीवन के प्रति और ज्ञानवर्धन होगा और हमारी धर्म एवं संस्कृति सुदृण होगी। हम इस सुन्दर पुस्तक को लिखने के लिए आदरणीय श्री सत्यपाल ‘सरल’ जी का धन्यवाद करते हैं और उनको अपनी शुभकामनायें देते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला