Categories
महत्वपूर्ण लेख

भारतीय राजनीति लव जिहाद से वोट जिहाद तक

(राकेश अचल -विभूति फीचर्स)

जिहाद का शब्दिक अर्थ होता है नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए की जाने वाली ज़द्दोज़हद या संघर्ष, किसी जायज़ माँग के लिए भरपूर कोशिश करना या आंदोलन। जिहाद का अर्थ मेहनत और मशक़्क़त करना भी है किन्तु जिहाद का यह दुर्भाग्य है कि इस पवित्र शब्द का चरमपंथियों ने गलत अर्थ दुनिया को समझा दिया और अब ये आम जिंदगी से निकालकर सियासत का अभिन्न अंग बनता जा रहा है। इसके लिए जितने चरमपंथी जिम्मेदार हैं उतनी ही राजनीतिक पार्टियां भी जिम्मेदार है । भाजपा ने जिहाद और लव -जिहाद के राजनीतिक अर्थ बताए तो मौजूदा आम चुनावों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने मुस्लिम मतदाताओं से सत्ता परिवर्तन के लिए’ वोट जिहाद’ करने की अपील कर दी और अब फंस गए। उनके खिलाफ बाकायदा आपराधिक मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
उत्तर प्रदेश में खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम के वीडियो वायरल होने के तुरंत बाद फर्रुखाबाद पुलिस ने मारिया आलम और सलमान खुर्शीद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। दोनों नेताओं पर आईपीसी की धारा 188, 295 (ए) और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। अब उत्तरप्रदेश की सरकार और पुलिस के ऊपर है कि वो खुर्शीद साहब और उनकी भतीजी को गिरफ्तार करती है या नहीं ?
खुर्शीद साहब मुझसे उम्र में छह साल बड़े हैं ,वे मुझे अपनी शराफत,नजाकत और बुद्धिमत्ता की वजह से शुरू से प्रिय रहे हैं। उनका मुसलमान होना एक संयोग है । वे मुसलमान न भी होते तो एक मनुष्य के रूप में उतने ही चर्चित होते जितने कि आज हैं। खुर्शीद भाई को पूरा देश जानता है। सलमान खुर्शीद एक भारतीय राजनीतिज्ञ,चर्चित वरिष्ठ अधिवक्ता, प्रख्यात लेखक और कानून शिक्षक हैं। वे विदेश मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित हैं वह एक वकील और एक लेखक है, जो 2009 के आम चुनाव में फर्रुखाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इससे पहले खुर्शीद 1991 में फर्रुखाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 10 वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे। वह जून 1991 में वाणिज्य मंत्रालय के केंद्रीय उप मंत्री बने, और बाद में विदेश मामलों के राज्य मंत्री बन गए। खुर्शीद साहब शुरू में नेता नहीं बल्कि 1981 में प्रधान मंत्री कार्यालय में एक विशेष अधिकारी के रूप में पदस्थ थे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आयीं।
दरअसल जो लोग खुर्शीद को नहीं जानते उन्हें बता दूँ कि सलमान खुर्शीद उस व्यक्ति का नाम है जो अपना घर फूंक कर तमाशा देखने वाला है। वे एक लेखक हैं,एक अभिनेता हैं और बाद में जन नेता हैं। सलमान से असहमत लोगों ने सलमान खुर्शीद के नैनीताल स्थित आवास को आग तक लगा दी थी लेकिन न सलमान खुर्शीद बदले और न उनके स्वर। वे 1992 में जैसे थे वैसे ही 2024 में भी हैं। सलमान खुर्शीद और उनकी भतीजी को वोट के जरिये व्यवस्था बदलने के लिए जिहाद शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था,क्योंकि इस देश में आज लोग जिहाद के नाम से भड़क जाते हैं । सलमान खुर्शीद की मजबूरी ये रही कि वे जिस इलाके में राजनीति करते हैं उस इलाके में उर्दू मातृभाषा के रूप में प्रचलित है। वे यदि परिवर्तन के लिए ‘ जिहाद ‘ शब्द का इस्तेमाल न करते तो मुमकिन था कि उनकी बात स्थानीय मतदाता समझ न पाता।
इस देश में मुसीबत ये है कि जो होता है उसे वो माना नहीं जाता। जैसे जो हेट स्पीच है उसे हेट स्पीच नहीं कहा जाता और जो हेट स्पीच नहीं है उसे आनन-फानन में ‘ हेट स्पीच’ मान लिया जाता है। घृणा की भाषा के बारे में जब हमारे नेता नहीं जानते तो हमारी पुलिस उसके बारे में कैसे जान सकती है ? भारत में पुलिस के हाथ लम्बे जरूर होते हैं किन्तु हमारी पुलिस आज भी अंग्रेजों के जमाने की पुलिस है।
अभी चुनाव के पांच चरण बाक़ी हैं ,देखिये आगे-आगे होता है क्या ? वैसे मैं ईमानदारी से कहूँ तो आज आम चुनाव एक धर्मयुद्ध जैसा ही है। एकदम महाभारत के माफिक। लोकतंत्र में वोट जिहाद के बिना कोई तब्दीली आ ही नहीं सकती। इसलिए यदि आपके पास मताधिकार है तो आप वोट जिहाद यानि वोट से क्रांति कर सकते है।(विभूति फीचर्स)

Comment:Cancel reply

Exit mobile version