~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्तमान में विश्व के सबसे लोकप्रिय राजनेता के रूप में ख्यातिलब्ध हो चुके हैं । भारतीय राजनीति से लेकर वैश्विक राजनीति में उनके विचारों एवं निर्णयों की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। यह सब इसलिए सम्भव हो पा रहा है क्योंकि वे भारत के ‘स्व’ के अधिष्ठान को अपना ध्येय बनाकर सतत् गतिमान हैं। भारत का यह ‘स्व’ – सनातन हिन्दुत्व के वे मानबिन्दु एवं चिरकालिक शाश्वत मूल्य बोध हैं जिन्हें उन्होंने प्रखरता के साथ अपनी कार्यशैली से प्रकट किया है। वर्ष 2014 में प्रथम बार सांसद एवं प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित होते ही संसद प्रवेश के समय प्रवेश द्वार पर साष्टांग दंडवत प्रणाम से ही उन्होंने नए संकेत दे दिए थे। वे थे हिन्दू अस्मिता और हिन्दुत्व के प्रति अनन्य निष्ठा के भाव। आगे चलकर विश्व इतिहास में रेखांकित की जाने वाली तारीख 5 अगस्त 2020 को मोदी का एक नया रूप देखने को मिला। उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के भूमि-पूजन के साथ ही पुनश्च एक नया शंखनाद किया । जोकि आगे चलकर पौष शुक्ल द्वादशी तदनुसार 22 जनवरी 2024 को रामलला के नूतन विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही नूतन शक्ति संचार के रूप में दर्ज हो गया। इस अवसर के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्णरूपेण वैदिक विधान के साथ 11 दिवसीय कठोर व्रत का पालन करते हुए अपने तपस्वी साधक रुप का परिचय दिया था। उक्त अवसर पर उनके उद्बोधन का यह अंश उनके उसी भाव विचार को प्रकट करता है —
“ 22 जनवरी, 2024, ये कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं। ये एक नए कालचक्र का उद्गम है। राम मंदिर के भूमिपूजन के बाद से प्रतिदिन पूरे देश में उमंग और उत्साह बढ़ता ही जा रहा था। निर्माण कार्य देख, देशवासियों में हर दिन एक नया विश्वास पैदा हो रहा था। आज हमें सदियों के उस धैर्य की धरोहर मिली है, आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेता हुआ राष्ट्र, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। आज से हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। और ये कितनी बड़ी रामकृपा है कि हम इस पल को जी रहे हैं, इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। आज दिन-दिशाएँ… दिग-दिगंत… सब दिव्यता से परिपूर्ण हैं। ये समय, सामान्य समय नहीं है। ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रहीं अमिट स्मृति रेखाएँ हैं। ”
साथ आगे अपने अखंड संकल्प को व्जियक्त करते हुए कहते हैं —
“हमें अपनी चेतना को देव से देश, राम से राष्ट्र – देवता से राष्ट्र तक विस्तारित करना है। यह भव्य मंदिर वैभवशाली भारत के उत्कर्ष और उदय का गवाह बनेगा। यह भारत का समय है और हम आगे बढ़ रहे हैं।”
मोदी जिस ढंग से हिन्दुत्व के नायक के रूप में अपने कार्य वैशिष्ट्य के साथ गतिमान है। वह स्वर्णिम भारत के भविष्य की आधारशिला के रूप में इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज होता चला जा रहा। एक राजनेता जब साधक एवं तपस्वी के रूप में राष्ट्र जीवन को दिशा देता है तो निश्चय ही उसके सुफल पुण्यता का पथ प्रशस्त करने वाले होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस प्रकार से राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए एक श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। ठीक उसी प्रकार से वे अपनी हिन्दुत्व के प्रति आदर-श्रध्दा – भक्ति एवं
निष्ठा के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली एवं विचार निष्ठा से एक भारतीय राजनीति में हिन्दुत्व की अपरिहार्यता की नई लकीर खींच दी है । इसी के कारण स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति में ‘हिन्दू व हिन्दुत्व की अस्मिता के विरुद्ध रोपी गई सेकुलरिज्म की विषबेल समाप्ति की ओर है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी वेशभूषा, खान-पान एवं कार्य-व्यवहार में जिस ढंग से हिन्दुत्व के मूल्यों को आत्मसात करते हुए सार्वजनिक रूप से प्रकट किया है। उसका लोहा समूचा विश्व मानने लगा है । वर्षों तक हिन्दुत्व के प्रति दुराग्रह एवं घ्रणा का जो षड्यंत्र सत्तालोलुपों ने तुष्टिकरण के चलते रचा। उसे नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आते ही क्रमशः ध्वस्त कर दिया। प्रधानमंत्री अपने निजी जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन में हिन्दू परम्पराओं के अनुसार आचरण करते हुए निरंतर दिखते हैं।वे शक्ति के उपासना पर्व ‘नवरात्रि’ में निराहार व्रत रहते हैं। माथे पर चंदन, रुद्राक्ष की माला, भगवा वस्त्र और पूजन अर्चन के समस्त विधि विधानों का नि: संकोच पालन करते हैं। अपनी आस्था के प्रति इस प्रकार की निष्ठा ने उन कई सारी भ्रान्तियों को भी तोड़ा है जो इन परम्पराओं पर लगातार कुठाराघात करते थे।
आज विदेशी राजनेता और राजनयिक हमारी सम्बोधन पध्दति के शब्द ‘नमस्ते’ को बड़े ही आदर के साथ अपनाते हैं और उसका प्रयोग करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के चलते ही 21 जून 2015 को ‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस ‘ के रूप में मान्यता मिली। साथ ही यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की ही छाप है कि — आज विश्व के विभिन्न देशों में भारतीय दर्शन एवं ज्ञान परम्पराओं जुड़े हुए धर्मग्रंथों – वेद, उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण एवं महाभारत के मूल्यों पर खुलकर चर्चा की जा रही है। उन्हें अपनाने पर जोर दिया जा रहा है । वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूएई की यात्रा के दौरान ही वहां की सरकार ने राजधानी आबू धाबी में मंदिर निर्माण की स्वीकृति एवं जमीन देने की घोषणा की थी।यूएई के उसी पहले हिन्दू मंदिर का विधिवत उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने 14 फरवरी 2024 को किया। यह अपने आप में ऐतिहासिक एवं अनुपमेय था। इसी प्रकार भारत को जी 20 की अध्यक्षता मिलने के पश्चात भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए विविध पहलुओं से जी 20 देश परिचित हुए। इसके अतिरिक्त नई दिल्ली में सम्पन्न हुए जी 20 शिखर सम्मेलन 2023 से भी मोदी की उसी दूरदर्शिता की झलक दिखाई दी। चाहे बात ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की थीम की हो याकि बात भारत मंडपम् के बाहर लगी हुई ‘नटराज’ की 27 फीट ऊंची प्रतिमा हो। AI एआई वाली श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से जीवन से जुड़े हुए प्रश्नों को गीता के श्लोकों के द्वारा उत्तर देने का नवाचार हो। इसके साथ ही 13 वीं सदी में बने कोणार्क के सूर्य मंदिर को दर्शाना हो। याकि विश्व को ज्ञान कोष से समृद्ध करने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के ध्वंसावशेषों की स्मृतियों को विश्व समुदाय के ध्यान में लाना हो। ‘वाॅल ऑफ डेमोक्रेसी’ के द्वारा भारत की सनातनी लोकतान्त्रिक प्रणाली एवं आदर्शों से भी साक्षात्कार करवाया। जब वे संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ अर्थात् लोकतन्त्र की जननी के रूप में विभिन्न उदाहरण देते हुए परिभाषित करते हैं तो इससे एक अमिट चिन्ह बनते हैं। वर्तमान में विश्व समुदाय भारत व भारतीय संस्कृति अर्थात् हिन्दू संस्कृति – हिन्दुत्व के प्रति बड़ी ही आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। आज विश्व भारत के बारे में पूर्व की कूटरचित दुराग्रही धारणाओं से मुक्त होकर — नए ढंग से मूल भारत को देखने- जानने -समझने और आत्मसात करने की ओर अग्रसर हुआ है। इसमें निश्चय ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिन्दुत्व के ग्लोबल ब्राण्ड एम्बेसडर के रूप में महनीय भूमिका है।
प्रधानमंत्री के रूप में सत्तारूढ़ होने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी ने एक राजनेता से कहीं आगे बढ़कर वीतरागी ‘राजर्षि’ के रूप में राष्ट्र संस्कृति – हिन्दू संस्कृति के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है। उन्होंने भारत की पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण समस्त सीमाओं के तीर्थक्षेत्रों, धार्मिक आस्था के मानबिन्दुओं के संरक्षण एवं सम्वर्धन के लिए स्पष्ट नीति रखी। नीतियों को साकार रूप में ढाला और एक नए सांस्कृतिक उन्मेष की ओर कदम बढ़ाए। वे ‘सर्वपंथ समादर’ की भावना को आत्मसात कर आगे बढ़ते हैं और राष्ट्रोन्नति के संकल्प को चरितार्थ करते हैं। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर से लेकर उज्जैन के महाकाल लोक के विकास और केदारनाथ धाम में आदिशंकराचार्य जी की प्रतिमा का अनावरण किया। काशी तमिल संगमम को एक नए ढंग से प्रकट किया।
चारधाम तीर्थ क्षेत्र परियोजना को मूर्तरूप देने से लेकर मध्यप्रदेश के सागर के बड़तूमा में भव्य संत रविदास मंदिर एवं स्मारक की नींव रखी। इसके अतिरिक्त वे भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने वाले प्रत्येक आस्था एवं श्रद्धा केन्द्रों और मानबिन्दुओं के संरक्षण के लिए अनेकानेक कार्य करते आ रहे हैं। देश के नवीन संसद भवन में संतों की उपस्थिति में सत्य एवं न्यायपूर्ण शासन तन्त्र के प्रतीक धर्मदण्ड — ‘सेंगोल’ की स्थापना में हिन्दुत्वनिष्ठा ही सन्निहित है। इसी प्रकार गणेश चतुर्थी की तिथि ( 19 सितम्बर 2023 ) से संसद की कार्यवाही का शुभारम्भ अपने आप में एक नई गाथा कह रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से शिक्षा प्रणाली को भारतीय पध्दति एवं दर्शन पर आधारित करने की नीति भी उसी दिशा की स्पष्ट परिचायक है । गर्व से कहो हम हिन्दू हैं हिन्दुस्थान हमारा है । यह नारा अब देश ही नहीं बल्कि विदेशों ने भी स्वीकार कर लिया है। अब समूचा विश्व समुदाय हिन्दू व हिन्दुत्व के प्रति आदर एवं श्रध्दा के साथ भाव प्रकट करता है । यह सब इसीलिए सम्भव हुआ है क्योंकि वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व के संवाहक के रूप में अपनी स्पष्ट रीति नीति को रखा है। उनकी स्पष्ट दूरदर्शी – स्व आधारित हिन्दुत्वनिष्ठ नीति उन्हें सबसे विरला बनाती है। और वर्तमान भारतीय राजनीति ही नहीं अपितु वैश्विक परिदृश्य के श्रेष्ठ यशस्वी लोकनायक की छवि को उकेरती है।
~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल