लोगों पर शासन करने की इच्छा कौन कर सकता है?
यशस्वी शक्तियाँ, ज्ञान और कार्यों को कैसे प्राप्त करें?
सो अर्णवो न नद्यः समुद्रियः प्रति गृभ्णाति विश्रिता वरीमभिः।
इन्द्रः सोमस्य पीतये वृषायते सनात्स युध्म ओजसा पनस्यते।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.55.2
(सः) वह (परमात्मा) (अर्णवः) समुद्र (न) जैसे कि (नद्यः) नदियाँ (समुद्रियः) समुद्र की तरफ जाते हुए (प्रति गृभ्णाति) ग्रहण करता है (विश्रिताः) भिन्न-भिन्न स्थानों पर आश्रय करने वाली (वरीमभिः) विस्तृत (इन्द्रः) इन्द्रियों का नियंत्रक (सोमस्य) शुभ गुणों वाला ज्ञान (पीतये) पीने के द्वारा (वृषायते) शक्तिशाली व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है (सनात) शाश्वत अर्थात् सनातन (सः) वह (युध्मः) युद्ध करते हुए, संघर्ष करते हुए (ओजसा) अपनी चमक, शक्तियों और कार्यों के साथ (पनस्यते) परमात्मा की अनुभूति का इच्छुक, लोगों पर शासन करने का इच्छुक।
व्याख्या:-
परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने की इच्छा कौन कर सकता है?
लोगों पर शासन करने की इच्छा कौन कर सकता है?
जिस प्रकार समुद्र उन नदियों को स्वीकार करता है जो समुद्र की तरफ जाते हुए भिन्न-भिन्न स्थानों पर फैली होती हैं और आराम करती हैं; जिस प्रकार एक इन्द्रियों का नियंत्रक, शुभगुणों वाले ज्ञान का पान करने के बाद, एक शक्तिशाली व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है; जिस प्रकार वह (परमात्मा), एक सनातन शक्ति होने के नाते, अपनी यशस्वी शक्तियों, ज्ञान तथा कार्यों से एक व्यक्ति को युद्ध करने और संघर्ष करने में लगाये रखता है तथा परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने की इच्छा करता है। सांसारिक जीवन में इस मन्त्र को लागू करने पर एक व्यक्ति अपनी यशस्वी शक्तियों, ज्ञान और कार्यों से लोगों पर शासन करने की इच्छा कर सकता है।
जीवन में सार्थकता: –
यशस्वी शक्तियाँ, ज्ञान और कार्यों को कैसे प्राप्त करें?
प्रत्येक व्यक्ति को यशस्वी शक्तियाँ, ज्ञान और कार्यों को प्राप्त करने के लिए कड़े प्रयास करने चाहिए। ऐसे कर्मकोष के साथ ही कोई आध्यात्मिक पथ पर परमात्मा की अनुभूति की इच्छा कर सकता है। जबकि सांसारिक जीवन में ऐसा व्यक्ति लोगांे पर शासन करने की इच्छा कर सकता है।
यशस्वी शक्तियाँ उस अवस्था में हमारे पास आती हैं जब हम स्वयं को परमात्मा की सनातन शक्ति में स्थापित कर लेते हैं, सदा कठिन परिस्थितियों, लालच, अहंकार और इच्छाओं के विरुद्ध सदैव युद्ध तथा संघर्ष करते रहते हैं और इन्द्रियों के सच्चे नियंत्रक बन जाते हैं। सभी बुराईयों को जीत लो और सभी शुभगुणों की रक्षा करो।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।
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