इस्लाम की विचित्र दयालुता

आर्यवीर

इस्लाम मत के विद्वान् अपने मत को महिमा मण्डित करने में प्रायः अतिशयोक्ति कर देते हैं। इस्लाम जगत के डॉ० ज़ाकिर नाइक ने उन विद्वानों में विशेष भूमिका निभाई है। जाकिर जी ने इस्लाम पर गैर-मुस्लिमों द्वारा किये सवालों के जवाब में “Answers to Non-muslims’ common Questions about Islam” नामक एक लघु पुस्तक लिखा है। इस पुस्तक में लेखक महोदय Eating Non-Vegetarian Food शीर्षक देते हुए लिखते हैं-

Islam enjoins mercy and compassion for all living creatures. At the same time Islam maintains that Allah has created the earth and its wondrous flora and fauna for the benefit of mankind. It is upto mankind to use every resource in this world judiciously, as a niyamat (Divine blessing) and amanat (trust) from Allah.
अर्थ- इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता है। साथ ही इस्लाम इस बात पर भी जोर देता है कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इन्सान के लाभ के लिए पैदा किया है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह ईश्वर की दी हुई नेमत और अमानत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को वह किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करता है।

विश्व के अनेक मुस्लिम विद्वान् डॉ जाकिर के उक्त कथन को बहुत प्रचारित करते हैं। हमें इनके बकवास और अटकलपच्चू में कोई रुचि नहीं है किन्तु हमारे आर्ष ग्रन्थों पर मिथ्या दोषारोपण करके लेखक ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला है। किसी भी निराधार बात को अतिशयोक्तिपूर्ण रूप से प्रचारित करें तो उसका लोकप्रिय होना निश्चित है क्योंकि सामान्य लोग किसी बात को मानने से पूर्व उस विषय की सम्यक आलोचना या विवेचना नहीं करते। इस्लाम मत का लक्ष्य ही है कि यह अपने नापाक मनसूबे अर्थात् इस्लामी हुकूमत कायम करने में कामयाब हो जाएं। इसके लिए इनके पास दो पैतरे होते हैं; प्रथम- इस्लाम की तारीफ करके दूसरों के धार्मिक ग्रन्थों या मान्यताओं में आंखें-मूंदकर कमियां निकालना, द्वितीय- अपना असली खूंखार और अत्याचारी स्वभाव दिखाना (जैसे-हत्या, बलात्कार, आतंक आदि)। लेखक महोदय अपनी पुस्तक में खुदा के निराधार हुक्मों की वकालत करने के लिए हमारे धार्मिक शास्त्र मनुस्मृति एवं ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत के कुछ श्लोकों का हवाला दिया है।

[Hindu scriptures give permission to have non-vegetarian food

There are many Hindus who are strictly vegetarian. They think it is against their religion to consume non-vegetarian food. But the true fact is that the Hindu scriptures permit a person to have meat. The scriptures mention Hindu sages and saints consuming non-vegetarian food.

a. It is mentioned in Manu Smruti, the law book of Hindus, in chapter 5 verse 30
“The eater who eats the flesh of those to be eaten does nothing bad, even if he does it day after day, for God himself created some to be eaten and some to be eater.”

b. Again next verse of Manu Smruti, that is, chapter 5 verse 31 says
“Eating meat is right for the sacrifice, this is traditionally known as a rule of the gods.”

c. Further in Manu Smruti chapter 5 verse 39 and 40 says
“God himself created sacrificial animals for sacrifice, … , therefore killing in a sacrifice is not killing.”

d. Mahabharata Anushashan Parva chapter 88 narrates the discussion between Dharmaraj Yudhishthira and Pitamah Bhishma about what food one should offer to Pitris (ancestors) during the Shraddha (ceremony of dead) to keep them satisfied. Paragraph reads as follows:

“Yudhishthira said, “O thou of great puissance, tell me what that object is which, if dedicated to the Pitiris (dead ancestors), become inexhaustible! What Havi, again, (if offered) lasts for all time? What, indeed, is that which (if presented) becomes eternal?”
“Bhishma said, “Listen to me, O Yudhishthira, what those Havis are which persons conversant with the rituals of the Shraddha (the ceremony of dead) regard as suitable in view of Shraddha and what the fruits are that attach to each. With sesame seeds and rice and barely and Masha and water and roots and fruits, if given at Shraddhas, the pitris, O king, remain gratified for the period of a month. With fishes offered at Shraddhas, the pitris remain gratified for a period of two months. With the mutton they remain gratified for three months and with the hare for four months, with the flesh of the goat for five months, with the bacon (meat of pig) for six months, and with the flesh of birds for seven. With venison obtained from those deer that are called Prishata, they remaingratified for eight months, and with that obtained from the Ruru for nine months, and with the meat of Gavaya for ten months, With the meat of the bufffalo their gratification lasts for eleven months. With beef presented at the Shraddha, their gratification, it is said, lasts for a full year. Payasa mixed with ghee is as much acceptable to the pitris as beef. With the meat of Vadhrinasa (a large bull) the gratification of pitris lasts for twelve years. the flesh of rhinoceros, offered to the pitris on anniversaries of the lunar days on which they died, becomes inexhaustible. The potherb called Kalaska, the petals of kanchana flower, and meat of (red) goat also, thus offered, prove inexhaustible.

So but natural if you want to keep your ancestors satisfied forever, you should serve them the meat of red goat.

अर्थ- हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की अनुमति देते हैं

बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मांस-सेवन धर्म विरुद्ध है। परंतु सत्य यह है कि हिन्दू धर्म ग्रन्थ इन्सान को मांस खाने की इजाजत देते हैं। ग्रन्थों में उन साधुओं और संतों का वर्णन है जो मांस खाते थे।

(क) हिन्दू कानून पुस्तक मनुस्मृति के अध्याय ५ सूत्र ३० में वर्णन है कि-
“वे जो उनका मांस खाते हैं जो खाने योग्य हैं, कोई अपराध नहीं करते हैं, यद्यपि वे ऐसा प्रतिदिन करते हों, क्योंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है।”

(ख) मनुस्मृति में आगे अध्याय ५ सूत्र ३१ में आता है-
“मांस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है।”

(ग) आगे अध्याय ५ सूत्र ३९ और ४० में कहा गया है कि-
“स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं।”

(घ) महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ८८ में धर्मराज युद्धिष्ठिर और पितामह भीष्म के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुंचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए। प्रसंग इस प्रकार है-

“युद्धिष्ठिर ने कहा, “हे महाबली! मुझे बताइए कि कौन-सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेंट की जाए तो उनको शांति मिलेगी? कौन-सा हव्य सदैव रहेगा? और वह क्या है जिसको यदि पेश किया जाए तो अनंत हो जाये?”
भीष्म ने कहा, “बात सुनो, ऐ युद्धिष्ठिर कि वे कौन-सी हवि हैं जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित है। और वे कौन से फल हैं जो प्रत्येक से जुड़े हैं? श्राद्ध के समय सीसम बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाए तो पूर्वजों को एक माह तक शांति रहती है। यदि मछली भेंट की जाए तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है। भेड़ का मांस तीन माह तक उन्हें शांति देता है। खरगोश का मांस चार माह तक, बकरी का मांस पांच माह और सूअर का मांस छ: मांस तक, पक्षियों का मांस सात माह तक, ‘प्रिष्टा’ नाम के हिरन के मांस से वे आठ माह तक और “रुरु” हिरन के मांस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं। नील गाय के मांस से दस माह तक, भैंस के मांस से ग्यारह माह और गौ मांस से पूरे एक वर्ष तक। पायस यदि घी में मिलाकर दान किया जाए तो यह पूर्वजों के लिए गौ मांस की तरह होता है। वाध्रीणस (एक बड़ा बैल) के मांस से बारह वर्ष तक और गैंडे का मांस यदि चन्द्रमा के अनुसार उनको मृत्य वर्ष पर भेंट किया जाए तो वह उन्हें सदैव सुख-शांति में रखता है। कालशाक नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियां और लाल बकरी का मांस भेंट किया जाए तो वह भी अनंत सुखदायी होता है।

अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का मांस भेंट करना चाहिए।”]

इन दलीलों के आधार पर लेखक यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि मांसाहार की अनुमति न केवल इस्लाम अपितु वैदिक शास्त्र भी देते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि जाकिर जी हुज्जतबाज़ी के अनोखे मिसाल हैं। पीस टीवी (Peace TV) नामक चैनल (जो आपका निजी चैनल है और इसका मुख्यालय दुबई में है) में अक्सर आप दूसरे धर्म के लोगों को आमंत्रित करते हैं और फिर उन्हीं के धर्मग्रन्थ से कुछ ऐसे अंश पेश करते हैं, जिनसे साबित हो जाए कि उनके धर्मग्रन्थ में भी अल्लाह, मुहम्मद और रसूल आदि के होने का उल्लेख है। आपकी इस प्रदर्शनी का उद्देश्य भोले-भले लोगों को मुसलमान बनाना है। ऐसी ही एक चाल आपने 20 फरवरी 2014 को चली थी। जिसमें हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए दावा कर दिया कि हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ “भविष्य पुराण” में मुहम्मद का वर्णन है और उनको अवतार बताया गया है। अरे जनाब! दमखम है तो कभी ऋषि दयानन्द के शिष्यों को आमंत्रित करो। पण्डित महेन्द्रपाल जी की चुनौतियों को स्वीकार करने से क्यों डरते हो? इस्लाम निराधार, बेतुकी बातों पर ईमान रखने और उन्हें प्रचारित करने पर जोर देता है।
लेखन कला के अति सुविज्ञ और मनुस्मृति भाष्यकार, अनुसन्धानकर्त्ता एवं समीक्षक डॉ० सुरेन्द्रकुमारजी आचार्य (संस्कृत-साहित्य, व्याकरण, दर्शन), एम०ए० (संस्कृत, हिन्दी), पी-एच०डी०, का मन्तव्य उक्त प्रसङ्ग के परिशीलन में महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल प्रमाण है।

[अनुशीलन: २६ से ४४ श्लोक निम्न प्रकार प्रक्षिप्त हैं-
१. अन्तर्विरोध- सभी प्रकार के मांसभक्षण की मान्यता और पशुयज्ञ का विधान सर्वथा मनु की मान्यता के विरुद्ध है; अतः ये सभी श्लोक प्रक्षिप्त हैं। (विस्तृत जानकारी के लिए ४/२६-२८ श्लोकों पर ‘अन्तर्विरोध’ शीर्षक समीक्षा देखिए)।

२. प्रसंगविरोध- ५/२४-२५ श्लोकों में मांस आदि से रहित अनिन्दित भोजन करने का कथन किया है। तदनुसार ४५- ४९,५१ श्लोकों में मांस का भोजन निन्दित है और वह किस प्रकार निन्दित है, यह वर्णित किया गया है (इस प्रकार २४-२५ श्लोकों की ४५वें श्लोक से प्रसंगगत सम्बद्धता है। इन श्लोकों में इनसे विरुद्ध निन्द्य भोजन का ही वर्णन किया है, जिससे प्रसंग भंग हो गया है। अतः ये श्लोक प्रसंगविरुद्ध प्रक्षेप हैं।

३. शैलीगत आधार- ४१वें श्लोक में ‘अब्रवीत् मनु:’ पद से यह श्लोक मनु से भिन्न व्यक्ति द्वारा रचित सिद्ध होता है, अतः यह श्लोक प्रक्षिप्त है; और पूर्वापर प्रसंग मण्डन-खण्डन या वेद के नाम से मण्डनात्मक रूप में होने से पूर्णतः इससे सम्बद्ध है। अतः इसके प्रक्षिप्त सिद्ध होने पर स्वतः प्रक्षिप्त सिद्ध हो जाता है।

४. अवान्तर विरोध- आश्चर्य की बात तो यह है कि मांसभक्षण की सिद्धि के लिए प्रक्षेप करने वाले व्यक्तियों ने ऐसी अन्धता से प्रक्षेप किये हैं कि उन्हें अपने पूर्वापर श्लोकों का भी ध्यान नहीं रहा। ये प्रक्षेप करने वाले भी अनेक व्यक्ति रहे हैं। इनकी परस्पर की बातों में भी अनेक विरोध हैं और मांससम्बन्धी सभी प्रमुख प्रसंगों में विरोधी विधान हैं। इनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये सभी प्रसंग अप्रमाणिक हैं। मांसभक्षियों के जो मन में आया वैसा श्लोक बनाकर डाल दिया। मांसभक्षण की सिद्धि के लिए परलोक, पुण्य, यज्ञ, वेद, प्राचीन ऋषि, सबकी आड़ ली। अपने स्वार्थ के लिए यज्ञ और वेद को भी बदनाम और दूषित किया। अपनी बातों की सिद्धि के जो युक्तियां दी हैं वे अत्यन्त छिछली, हास्यास्पद, और स्वार्थपूर्ण हैं, जैसे- यज्ञ के लिए मांस खाना पुण्यदायक और देवताओं की विधि है, और यज्ञ के बिना अपनी शरीर-पुष्टि के लिए मांस खाना राक्षसों का कार्य है [५/३१]। देवता और राक्षस में अन्तर कितनी आसानी से हो गया! इसी प्रकार निम्न अवान्तरविरोधों से कुछ ऐसी ही अन्य बच्चों जैसी बातें स्पष्ट हो जायेंगी- (१) ५/१४,१५ श्लोकों में मछलियों का खाना पूर्णतः निषिद्ध है, और १६वें में निमन्त्रण में मछली खा लेने का विधान है। (२) ३/२६८ से २७२ श्लोकों में कहा है कि श्राद्ध में मछली का मांस खाने से दो महीने तक पितर तृप्त होते हैं, सूकर के मांस से दशमास, कछुए के मांस से ग्यारह मास, गेंडे के मांस से अनन्त वर्ष तक पितर तृप्त होते हैं, किन्तु ५/१८-१९ में इनका मांस न खाने का विधान है और कहा है कि इनका मांस खाने से द्विज पतित हो जाता है। (३) ५/२२ में कहा है कि स्त्री, सेवक आदि के पालन के लिए पशु-पक्षी मारने चाहिए और ५/३८ में कहा है कि यज्ञ के बिना पशुओं को मारने वाला, जितने पशुओं को मारता है, उतने ही जन्म लेकर बदले में वह भी मारा जाता है। (४) ५/११-१९ श्लोकों में कुछ पशुओं को भक्ष्य और कुछ को अभक्ष्य कहा है, जबकि ५/३० में कहा है कि ब्रह्मा ने सारे पशु-पक्षियों को खाने के लिए रचा है। उनके खाने में मनुष्य दूषित नहीं होता।
इस प्रकार मांसभक्षण के सभी प्रसंग हास्यास्पद बातों से भरे हैं, जिनसे वे अप्रमाणिक और प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं।

५. वेदविरोध- इस प्रसंग में मांसभक्षण की सिद्धि के लिए प्रक्षेप करने वालों ने वेद की आड़ ली है और मांसभक्षण को वेदविहित माना है। स्वार्थी लोगों ने अपनी उदरपूर्ति के लिए झूठ ही वेदों को और यज्ञ को बदनाम करने का प्रयास किया है। ‘वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति’ की आड़ लेकर उसे भोजन प्रकरण में लागू करके अपने आचरण को शास्त्रसम्मत सिद्ध करने की कोशिश की गई है। यह बात यहां लागू ही नहीं होती। यतोहि यहां भोजन का प्रसंग है और इसमें मांसविधान को वेद-सम्मत बताने के लिए इस युक्ति का प्रयोग किया गया है। मांसभक्षण अथवा यज्ञ में हिंसा का वेदों में स्पष्टरूप से निषेध किया है। यहां तक कि केवल अन्नाहारी (अर्थात् मांसाहारी नहीं) व्यक्तियों को यज्ञ करने का अधिकार दिया है। प्रमाणयुक्त विस्तृत विवेचन के लिए ५/२६-२८ की ‘वेदविरोध’ समीक्षा देखिए। -मनुस्मृति हिन्दी भाष्य, पञ्चमोऽध्याय:, पृष्ठ ४१९, ४२०]

भाष्यकार की टिप्पणी ने इस प्रसङ्ग को सप्रमाण और युक्तियुक्त क्षेपक सिद्ध किया तथा जीवों के प्रति मनु की कितनी कारुणिक दृष्टि थी एवं मांसाहार मनु के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है, इस ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित किया। अब महाभारत पर लगे आरोपों का खण्डन करते हैं। महाभरत अनुशासन पर्व अध्याय २१ में हिंसा और मांसभक्षण का पुरजोर खण्डन किया गया है। हम यहां कुछ श्लोक यथावत उद्धृत करते हैं-

रुपमव्यङ्गतामायुर्बुद्धिं सत्त्वं बलं स्मृतिम्। प्राप्तुकामैर्नरैहिंसा वर्जिता वै महात्मभिः।।९।।
न भक्षयति यो मांसं न च हन्त्यान्न घातयेत्। तन्मित्रं सर्वभूतानां मनुः स्वायम्भुवोऽब्रवीत्।।१२।।
स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति। नाति क्षुद्रतरस्तस्मात्स नृशंसतरो नरः।।१४।।
एवं वै परमं धर्मं प्रशंसन्ति मनीषिणः। प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा।।१७।।
अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः। अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते।।१९।।
न हि मांसं तृणात् काष्ठादुपलाद् वापि जायते। हत्वा जन्तुं ततो मांसं तस्माद् दोषस्तु भक्षणे।।२०।।
कान्तारेष्वथ घोरेषु दुर्गेषु गहनेषु च। अमांसभक्षणे राजन् भयमन्यैर्न गच्छति।।२२।।
धन्यं यशस्यमायुष्यं स्वर्ग्यं स्वस्त्ययनं महत्। मांसस्याभक्षणं प्राहुर्नियताः परमर्षयः।।२७।।
अखादन्ननुमोदंश्च भावदोषेण मानवः। योऽनुमोदति हन्यन्तं सोऽपि दोषेण लिप्यते।।३१।।
इज्यायज्ञश्रुतिकृतैर्यो मार्गैरबुधोऽधमः। हन्याज्जन्तून् मांसगृध्नुः स वै नरकभाङ्नरः।।३४।।
सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम्। सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया।।५६।।

अर्थ- जो सुन्दर रुप, पूर्णाङ्गता, पूर्ण-आयु, उत्तम बुद्धि, सत्त्व, बल और स्मरणशक्ति प्राप्त करना चाहते थे, उन महात्माओं ने हिंसा का सर्वथा त्यागकर दिया था।।९।। स्वायम्भुव मनु का कथन है- जो मनुष्य न मांस खाता है, न पशु-हिंसा करता और न दूसरे से ही हिंसा कराता है, वह सभी प्राणियों का मित्र होता है।।१२।। जो दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है।।१४।। इस प्रकार मनीषी पुरुष अहिंसारुप परमधर्म की प्रशंसा करते हैं। जैसे मनुष्य को अपने प्राण प्रिय होते हैं, वैसे ही सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्रिय जान पड़ते हैं।।१७।। अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है और अहिंसा परम सत्य है, क्योंकि उसी से धर्म की प्रवृत्ति होती है।।१९।। मांस तृण से, काष्ठ (लकड़ी) से अथवा पत्थर से पैदा नहीं होता, वह प्राणी की हत्या करने पर ही उपलब्ध होता है, अतः उसके खाने में महान् दोष है।।२०।। हे राजन्! जो मनुष्य मांस नहीं खाता वह संकटपूर्ण स्थानों, भयंकर दुर्गों और गहन वनों में भी दूसरों से नहीं डरता।।२२।। नियमपरायण महर्षियों ने मांसभक्षण के त्याग को ही धन, यश, दीर्घायु और स्वर्ग= सुख-प्राप्ति का प्रधान उपाय तथा परमकल्याण का साधन बताया है।।२७।। जो स्वयं तो मांस नहीं खाता, परन्तु खाने वाले का अनुमोदन करता है, वह भी भाव-दोष के कारण मांसभक्षण के पाप का भागी होता है। इसी प्रकार जो मारनेवाले का अनुमोदन करता है, वह भी हिंसा के दोष से लिप्त होता है।।३१।। जो मांसलोभी मूर्ख एवम् अधम मनुष्य यज्ञ-याग आदि वैदिक मार्गों के नाम पर प्राणियों की हिंसा करता है, वह नरकगामी होता है।।३४।। सम्पूर्ण यज्ञों में दिया हुआ दान, समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान समस्त दानों का जो फल- यह सब मिलकर भी अहिंसा के बराबर नहीं हो सकता।।५६।।

निष्कर्ष- इस प्रकार महाभारत के उक्त कथनों से मनुष्य को मन, कर्म व वचन से हिंसा न करने की आज्ञा मिलती है। अतः अध्याय ८८ के उपरोक्त श्लोक परस्पर-विरोधी होने के कारण प्रक्षेप सिद्ध होते हैं। हम पाठकों के समक्ष महाभारत का एक अन्य महत्त्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करते हैं-

सुरा मत्स्या: पशोर्मांसम्, आसवं कृशरौदनम्।धूर्तै: प्रवर्तितं यज्ञे नैतद् वेदेषु विद्यते।।
अव्यवस्थित मर्यादै: विमूढैर्नास्तिकै: नरै:। संशयात्ममिरव्यक्तै: हिंसा समनुवर्णिता।। -महाभारत, शान्तिपर्व २६५/९,४
अर्थात्- मदिरासेवन, मत्स्यभोजन, पशुमांस, आसव, लवणान्न की आहुति, इनका विधान वेदों में (वैदिक संस्कृति में) नहीं है। यह सब धूर्त लोगों ने प्रचलित किया है। मर्यादाहीन, मद्य-मांसादि लोलुप, नास्तिक, आत्मा-परमात्मा के प्रति संशयग्रस्त लोगों ने गुपचुप तरीके से वैदिक ग्रन्थों में हिंसा-सम्बन्धी वर्णन मिला दिए हैं।

यह जानने के बावजूद डॉ जाकिर के हवालों का पक्ष लेना अपनी जिहालत का परिचय देना होगा। अब हम जाकिर जी के झूठ का पर्दाफाश करेंगे। क्या वास्तव में इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता है? देखें कुरान मजीद से प्रमाण-

तुम ऊंटों को पंक्ति में खड़ा कर देना ,और जो गोश्त के भूखे हों वह धीरज रखें ,जब ऊंट (रक्तस्राव) के किसी पहलू पर गिर जाये तो उसको कट कर खुद खा लेना और भूखों को खिला देना। -मं० ४, सि० १७, सू० २२ आ० ३६

कहिए महोदय! क्या यही आपकी स्नेह और दया है? जो खुदा लोगों के सत्कर्मों से नाराज, और पशुबलि (कुर्बानी) से प्रसन्न होता है, वह ईश्वर कदापि नहीं हो सकता। क्या आपका खुदा पर्दे में ईदुज्जुहा मनाता है? हदीसों का दोगलापन मुल्लामण्डल को समर्पित-
१. अब्दुल्लाह बिन मुगाफ्फल ने कहा कि हमें रसूल ने आदेश दिया कि मदीना में और उसके आसपास के गाँव में जितने भी कुत्ते मिलें उनको मार डालो। -अबू दाऊद, किताब १०, हदीस ३८१४
२. अबू जुबैर को अब्दुल्लाह ने बताया कि जब रसूल में हम लोगों को कुत्ते मारने के लिए भेजा तो हमने देखा कि रेगितान में एक बद्दू औरत ने एक कुत्ते का पिल्ला पाला हुआ था जो उस औरत के पास ही खेल रहा था। हमने वह पिल्ला औरत से छीनकर वहीं पटककर मार दिया। -सही मुस्लिम, किताब १०, हदीस ३८१३
३. अब्दुल्लाह बिन अबू कतदा ने कहा कि खैबर के समय हम लोग इहराम की हालत में, और दुश्मन छुपे हुए थे तभी हमारी नजर एक गधे पर पड़ी। हमने उसे भाले से मार दिया और काटकर उसका गोश्त पकाकर रसूल के साथ मिलकर खा लिया। -सही मुस्लिम, किताब ७, हदीस २७१०
४. तल्हा बिन अब्दुल्लाह ने बताया कि रसूल ने गधे का गोश्त पकाया और हम लोगों में वितरित करके सबके साथ खाया। -इब्ने माजा, किताब २५, हदीस ३२११
५. इब्ने अबी अम्मार ने कहा कि जब जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने मुझसे लकड़बग्घा खाने को कहा तो मैंने उससे पूछा कि क्या यह शिकार करने योग्य जानवर है? उसने कहा- हां। फिर मैंने पूछा कि क्या तुमने यह बात रसूल से सुनी है? तो वह बोला- हां। -अन नसाई, जिल्द ५, किताब ४२, हदीस ४३२८ (जिल्द ३, किताब २३, हदीस २८३९ भी द्रष्टव्य है।)
६. अबू जुबैर और जबीर बिन अब्दुल्लाह ने बताया कि खैबर में हमने गधे के साथ घोड़े का गोश्त भी खाया था। -इब्ने माजा, किताब २७, हदीस ३३१२
७. अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि जब एक ऊंटनी को काटा गया तो उसके पेट में पूर्ण विकसित बच्चा था। जिसके बल भी उग चुके थे। जब ऊंटनी के पेट से बच्चा निकाला गया तो काफी खून बहा और बच्चे का दिल तब भी धड़क रहा था। तब सईद इब्न अल मुसय्यब ने कहा कि मां के हलाल से बच्चे का हलाल भी माना जाता है इसलिए तुम इस बच्चे को मां के साथ ही खा जाओ। -अल-मुवत्ता, किताब २४, हदीस ८,९

सत्य के ग्रहण एवम असत्य के त्याग के लिए सर्वदा उद्यत रहना चाहिए – स्वामी दयानंद

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