खबर जन्तु जीवाश्म जगत से’
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कितना विशाल था , ‘वासुकी इंडिकस’ सांप ?🐍
वर्ष 2004 में भारत के जीवाश्म वैज्ञानिकों के दल ने गुजरात के कच्छ की कोयले की खदान से एक सरीसृप जीव की रीढ़ की हड्डियों के जीवाश्म एकत्रित किए जीवाश्म तो एकत्रित कर लिए गए लेकिन उन जीवाश्म पर कोई अध्ययन नहीं किया गया अब वर्ष 2024 में जब आईआईटी रुड़की के जीवाश्म विज्ञान विभाग के जीवाश्म विज्ञानियों ने उन जीवाश्मों पर अध्ययन किया तो पूरी दुनिया के जीवाश्म विज्ञानी दंग रह गए।
पहले इन जीवाश्मों को मगरमच्छों के पूर्वज किसी जीव का जीवाश्म मान रहे थे । लेकिन जब सच्चाई निकल कर सामने आई तो यह जीवाश्म 4 करोड़ 60 लाख वर्ष पहले भारत की भूमि पर विचरण करने वाले एक विशालकाय अजगर व ग्रीन एनाकोंडा सरीखे सांप के जीवाश्म थे जिसकी लंबाई 48 से 50 फीट थी। इस खोज से पूर्व दुनिया का सबसे बड़ा सांप जो लुप्त हो चुका है जिसके जीवाश्म कोलंबिया की कोयले की खदानों में खोजे गए थे उसे सर्प का नाम टायटैनोबोआ था उसे माना जाता। उसकी लंबाई 42 फीट थी।
भारत में खोजे गए दुनिया के सबसे बड़े स्थल पर विचरण करने वाले इस सांप की लंबाई की गणना जीवाश्म विज्ञान की गणितीय विधि एक्सट्रपलेशन से की गई है। जीवाश्म विज्ञानियों का यह एक प्रमुख अनुमान या टूल होता है जीवाश्म के आधार पर मूल जीव के शरीर के आकार प्रकार का आकलन इससे मिलता है। कितना अनूठा है यह सब दार्शनिक जगत ही नहीं वैज्ञानिक जगत भी अनुमानों से ही चलता है।
फ़िलहाल पृथ्वी पर सर्वाधिक विशाल सांप अजगर व बोआ सांप माने जाते है जिनकी लंबाई औसत 20 से 22 फिट होती है।
लेकिन जिस दुनिया के सर्वाधिक विशाल का सांप के अवशेष भारत में मिले हैं वह इनसे दुगना लंबा है वैज्ञानिकों ने इस सांप का नामकरण भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सर्वाधिक विशाल माने जाने वाले सांप ‘वासुकी’ के आधार पर किया है ।इसका जंतु वैज्ञानिक नाम उन्होंने ‘वासुकी इंडीकस ‘रखा है। वासुकी शब्द पौराणिक मान्यताओं से तथा इंडिकस इसके भारत भूमि पर पाए जाने के कारण जोड़ा गया है। यह भी एक ,अनूठा तथ्य है पौराणिक मान्यता आज भी भारतीय वैज्ञानिक चिंतन पर अपनी छाप छोड़ती है।दुनिया में चित्र विचित्र जंतु पाए जाते हैं जीवो की जितनी नई ज्ञात प्रजातियां जो लुप्त नहीं है खोजी जाती है उनसे भी अधिक विचित्र प्रजातियां इस धरती से लुप्त हो गई हैं उनके विलोपन का क्या कारण था यह आज भी रहस्य है ।आज जीवों की विलुप्ती में वनों के काटने से उत्पन्न या अन्य रासायनिक प्रदूषण आदि मानवीय हस्तक्षेप माना जाता है लेकिन करोड़ो वर्ष पहले ऐसा कोई हस्तक्षेप नहीं था मानव तो था फिर यह जीव कैसे विलुप्त हुआ क्या कोई भौगोलिक कारण रहा या कोई अन्य कारक उनके विलोपन के लिए जिम्मेदार रहा इसका केवल अनुमान ही लगाया जाता है । फिलहाल तो जिज्ञासा इसकी विलुप्ती के कारण पर नहीं इस सांप के विषय में है । अनुमान भी प्रत्यक्ष प्रमाण जितना ही सामर्थ्य रखता है।’ वासुकी इंडिकस’ जैसा अति विशाल सांप थल पर ही विचरण करने के लिए बना था इसके विपरित जैसा कि प्राय आमतौर पर अजगर व अन्य ग्रीन एनाकोंडा जैसे विशालकाय सांप जल में विचरण के अनुकूल होते हैं। बड़ी प्रजातियों के सांपों की तरह यह सांप भी अपने शिकार को जकड़ कर दाब कर मारता था। 48 से 50 फीट लंबा यह 1 टन से अधिक वजनी यह सांप जब रेंगता होगा कितना भयावह वह दृश्य होता होगा। यह पेड़ों पर चढ़ने में माहिर नहीं था ऐसा अनुमान मिलता है भगवान की यह शायद अनोखी व्यवस्था हो सकती है इतना भारी सांप यदि पेड़ों पर चढ़ना तो पेड़ों को तोड़कर यह वनस्पति विविधता का नाश करता। इससे भी बड़ी हैरत यह है 20 सालों से इस सर्प के जीवाश्म आईआईटी रुड़की की प्रयोगशाला में पड़े रहे किसी ने शोध करना भी उचित नहीं समझा और जब शोध हुआ तो दुनिया भर के शीर्ष जीवाश्म विज्ञानियों की दिलचस्पी भारतीय जीवाश्म के अध्ययन में बढ़ गई है खैर देर आयें दुरुस्त आए। यह तो सिद्ध है यह साप सृष्टा की सृष्टि का एक अनूठा नमूना था जो अब विलुप्त है जिसके आज जीवाश्म ही उपलब्ध है।
लेखक आर्य सागर🖋️