अन्तरिक्ष में और महानता में कौन सबसे सर्वोच्च है?

कड़ी मेहनत वाले लोगों के लिए वह क्या है?
गर्जते हुए हमले के लिए कौन बल देता है?
अन्य लोगों में सर्वोच्च ज्ञान कौन देता है?
हमें अपना अधिकार किसे हस्तांतरित करना चाहिए?

दिवश्चिदस्य वरिमा वि पप्रथ इन्द्रं न मह्ना पृथिवी चन प्रति।
भीमस्तुविष्मांचर्षणिभ्य आतपः शिर्शीते वज्रं तेजसे न वंसगः।।
ऋग्वेद मन्त्र 1.55.1

(दिवः) प्रकाशमान द्यूलोक (चित) भी (अस्य) जिसका (परमात्मा का) (वरिमा) सर्वोच्चता (वि पप्रथ) विशेष विस्तार वाला (इन्द्रम्) सर्वोच्च नियंत्रक परमात्मा का (न) नहीं (मह्ना) महानता (पृथिवी) यह भूमि (चन) तुलना की गई (प्रति) प्रतिनिधित्व (भीमः) अपनी प्रबल शक्ति के कारण (तुविष्मान) सर्वोच्च ज्ञान (चर्षणिभ्यः) कड़ी मेहनत करने वाले लोगों के लिए (आतपः) प्रदीप्त त्याग (शिर्शीते) तीक्ष्ण करता है, तरंगित करता है (वज्रम्) वज्र किरणें (तेजसे) महान कार्यों के लिए, प्रकाश के लिए (न) जैसे (वंसगः) गर्जता हुआ हमला।

व्याख्या:-

अन्तरिक्ष में और महानता में कौन सबसे सर्वोच्च है?
कड़ी मेहनत वाले लोगों के लिए वह क्या है?

जिसकी सर्वोच्चता समस्त प्रकाशमान् अन्तरिक्ष से भी परे विशेष रूप से विस्तृत है, यहाँ तक कि उस सर्वोच्च नियंत्रक परमात्मा की महानता के दृष्टिकोण से समूची धरती भी उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए तुलना के योग्य नहीं है। अपनी अपार शक्ति और सर्वोच्च ज्ञान के कारण वह कड़ी मेहनत करने वाले लोगों के लिए ज्वलन्त त्याग है। वह गर्जते हुए हमलों जैसे – महान् कार्यों के लिए वज्रों को तेज बना देता है, वह गर्जते हुए हमलों के समान प्रकाश पैदा करने के लिए किरणें उत्पन्न करता है।

जीवन में सार्थकता: –

गर्जते हुए हमले के लिए कौन बल देता है?
अन्य लोगों में सर्वोच्च ज्ञान कौन देता है?
हमें अपना अधिकार किसे हस्तांतरित करना चाहिए?

परमात्मा सबसे बड़े से भी बड़ा है, सबसे महान् से भी महान् है। उसकी सभी शक्तियों को इस प्रकार श्रेणीबद्ध किया जा सकता है:-
(क) भौतिक शक्तियाँ तथा
(ख) ज्ञान का प्रकाश।
यह उन कड़ी मेहनत करने वाले लोगों को उपहार दी जाती हैं जो परमात्मा से जुड़े रहते हैं, अन्य सभी लोग अर्थात् स्वार्थी लोग केवल चोरों की तरह परमात्मा की शक्तियों का आनन्द लेते हैं।
जो लोग यज्ञ अर्थात् दूसरों के कल्याण जैसे – महान् कार्य करते हैं, परमात्मा उनके बल बढ़ाते रहते हैं। परमात्मा उन लोगों के मन में विशेष दिव्य प्रभाव प्रदान करते हैं, जो उनके प्रति समर्पित हैं और अन्यों को प्रकाशित करते हैं।
इस मन्त्र से अन्य लोगों को अपने अधिकार सौंपने से सम्बन्धित एक अनुपातिक सिद्धान्त निकलता है कि सभी वरिष्ठ अधिकारियों को अपने अधिकार उन लोगों में स्थान्तरित करने चाहिए जो यज्ञ अर्थात् अन्य लोगों का पूर्ण कल्याण करते हों।

 


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