कांग्रेस की खतरनाक सोच और देश के आम चुनाव

congress (1)

– कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

            कर्नाटक विधान सभा में पिछले दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ मंदिर डी के सुरेश ने कहा कि केन्द्र सरकार दक्षिण भारत के राज्यों को कम पैसा मुहैया करवाती है , इससे हो सकता है कि हम दक्षिण के राज्य भविष्य में भारत से अलग होने की सोचें । वैसे तो पूछा जा सकता है कि सुरेश बाबू को दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधि किसने बनाया ? तमिलनाडु में कांग्रेस कामराज के बाद से लुप्त प्रजाति में शामिल हो चुकी है । डीएमके, चुनाव के मौसम में उसे कन्धे पर इस लहजे में उठा लेती है जैसे नई पीढ़ी के ज्ञान के लिए ऐतिहासिक चीज़ों का प्रदर्शन किया जाता है । लेकिन सुरेश बाबू ने जब से यह रहस्योद्घाटन किया है तब से कम से कम प्रदेश में कांग्रेस के लोगों में यह भय बैठ गया है कि कहीं पार्टी विभाजन को लेकर किसी एजेंडा पर तो नहीं चल रही ? पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस की एक विशाल जन सभा हो रही थी । उसमें कांग्रेस में  सोनिया गान्धी परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मंचासीन थे । कांग्रेस के एक विधायक लक्ष्मण संवादी भी मंच पर थे । वे भाषण दे रहे थे । उनके मन में इच्छा हो रही थी कि वे मंच पर से ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाएँ । लेकिन डर रहे थे कि कहीं इस नारे से पार्टी अध्यक्ष बुरा न मान जाएँ । कुछ देर तक लंक्ष्मण के मन में डर और श्रद्धा के बीच द्वन्द चलता रहा होगा । लेकिन अन्त में राष्ट्रीयता की जीत हुई । उन्होंने मंच पर से ही मल्लिकार्जुन खडगे से पूछा कि यदि आप बुरा न मनाएँ तो मैं ‘भारत माता की जय’ का एक नारा लगा लूँ ? आख़िर क्या कारण है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता जानते हैं कि अब पार्टी ‘भारत माता की जय’ या ‘जय श्री राम’ का जय घोष करना ख़तरे से ख़ाली नहीं है ? इसका अर्थ स्पष्ट है कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता तो देश को अखंड रखने के लिए या फिर अखंड भारत के लिए लालायित है लेकिन उसका नेतृत्व अपने संकुचित राजनैतिक हितो के लिए भारत को तोड़ने की हद तक भी जा सकता है । महात्मा गान्धी से लेकर सोनिया परिवार तर की यह यात्रा सचमुच चौंकाती है । यह यात्रा रघुपति राघव राजा राम से शुरू हुई थी और राम मंदिर के निर्माण के विरोध तक ही नहीं बल्कि राम के अस्तित्व को ही नकारने तक पहुँच गई है । यही कारण है कि पार्टी प्रधान की हाज़िरी में कांग्रेस का विधायक ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए भी डरता है कि कहीं पार्टी एक्शन न ले वे ।

दरअसल पिछले कुछ अरसे से भाजपा ने जनसंघ के समय से चले आ रहे अपने अखंड भारत के संकल्प को ज्यादा ज़ोर से कहना शुरु कर दिया है । तब भी शायद कोई इसको ज्यादा तबज्जों न देता यदि भाजपा ने भारतीय संविधान में से अनुच्छेद 370 को न हटा दिया होता । इससे लोगों में यह विश्वास जगने लगा है कि पार्टी घोषणा पत्र/संकल्प पत्र में जो लिखती है , उसे पूरा करती है । चाहे उसमें कितना ही समय क्यों न लगे । इसके पहले चरण में तो पाकिस्तान के कब्जे से वे इलाक़े मुक्त करवाना है जो उसने 1947 में कश्मीर पर हमला करके भारत से छीन लिए थे । इसके संकेत प्रधानमंत्री मोदी अनेक बार दे भी चुके हैं । इससे पाकिस्तान का चिंतित होना स्वभाविक ही है । लेकिन लगता है पाकिस्तान से ज्यादा चिन्ता इससे कांग्रेस के नेतृत्व को हो रही है । लेकिन उस का चिन्ता व्यक्त करने का तरीक़ा सामान्य नहीं है । उसका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी देश को विभाजित करना चाहती है । आरोप इस प्रकार का है कि आम भारतीय को यह हज़म नहीं होता । सोनिया गान्धी परिवार ने ऐसा आरोप मुस्लिम लीग या सीपीएम पर लगाया होता तो शायद भारत के लोग इस पर ज्यादा आश्चर्यचकित न होते । लेकिन यह परिवार ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इन दोनों के साथ केरल में परिवार का राजनैतिक समझौता है । इसलिए उसने यह आरोप भाजपा पर लगाना आसान मान लिया ।
लेकिन भाजपा आख़िर विभाजन करवाना कैसे चाहता है ? परिवार का कहना है कि भाजपा नार्थ-साऊथ डिवाइड के रास्ते पर चल रहा है । लेकिन लोग आख़िर इसके लिए प्रमाण की माँग करेंगे ही । वैसे यह जरुरी नहीं है कि राहुल गान्धी जो भी कहते रहते हैं , उसके लिए कुछ प्रमाण भी उनके पास होते ही हों । वे स्वयं को इस प्रकार के सभी बन्धनों से आज़ाद मानते हैं । सुरेश बाबू का तर्क यदि गहराई से देखा जाए तो कुछ बातें स्पष्ट हो रही हैं । कांग्रेस का कहना है कि-
१. उत्तर भारत , पश्चिमी भारत और कुछ सीमा तक पूर्वी भारत के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देते हैं , इसलिए केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है ।
२. दक्षिणी प्रान्तों के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देते , इसलिए भारतीय जनता पार्टी इन दक्षिणी क्षेत्रों से नाराज़ है ।
३. भारतीय जनता पार्टी अपनी यह नाराज़गी इन दक्षिणी राज्यों से बदला लेकर निकालती है । बदला लेने का तरीक़ा यही अपनाती है कि इन राज्यों को कम पैसा आवंटित किया जाता है ।
४. कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री डी के सुरेश इसका एक ही हल बताते हैं कि फिर दक्षिण के राज्यों को देश से अलग होना पड़ेगा ।
सुरेश बाबू के तर्कों को निश्चय ही देखना पड़ेगा । सुरेश बाबू कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं । कर्नाटक में मुख्य रूप से दो ही राजनैतिक दल हैं । भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस । वहाँ एक बार भाजपा और दूसरी बार कांग्रेस सत्ता में आती है । इससे कोई भी अक़्लमंद आदमी यह तो नहीं कहेगा कि कर्नाटक के लोग भाजपा को वोट नहीं देते । दूसरा उदाहरण तेलांगना का ले सकते हैं । तेलांगना में मुख्य रूप से तीन राजनैतिक दल हैं । कांग्रेस , भारत राष्ट्र समिति और भारतीय जनता पार्टी । इन तीनों दलों को कुछ अन्तर से सम्मानजनक वोट मिलते हैं । इस लिए तीनों राजनैतिक दलों की स्थिति राज्य में बराबर है । शेष दक्षिण के तीन राज्य हैं । आन्ध्र प्रदेश केरल और तमिलनाडु । तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की स्थिति लगभग बराबर ही है । इन दोनों की स्थिति नगण्य है । इसका अर्थ हुआ कि दक्षिण के राज्यों में भाजपा और कांग्रेस की स्थिति लगभग बराबर ही है । फिर सुरेश बाबू किस हैसियत से मानते हैं कि कांग्रेस को सभी दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधि के तौर पर बोलने का अधिकार है ? सुरेश बाबू एक बात शायद भूल रहे हैं कि पिछले दिनों जब राज्य सभा के चुनाव में कांग्रेस का एक प्रत्याशी जीता था तो कर्नाटक विधान सभा के भीतर ही उसके समर्थकों ने ख़ुशी में पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगाए थे । तब कांग्रेस के ही कुछ बड़े लोगों ने उसकी निन्दा करने की बजाए यह तर्क दिया था कि पाकिस्तान हमारा मित्र देश है , उसकी बात करना ग़लत कैसे हो गया । शायद उसी के कारण कांग्रेस के आम कार्यकर्ता के मन में कहीं न कहीं डर बैठ गया है कि भारत माता की जय से कांग्रेस नेतृत्व चिडता है और पाकिस्तान ज़िन्दाबाद से नाराज़ नहीं होता ।
बाबा साहिब आम्बेडकर को शायद कांग्रेस से इसी बात का अन्देशा था । इसीलिए उन्होंने संविधान सभा में अपने अंतिम सम्बोधन में चेतावनी दी थी कि हमें इस प्रकार की वृत्तियों से सावधान रहना होगा । इसी के कारण हमारा देश पूर्वकाल में गुलाम होता रहा है । हम अपने निजी स्वार्थों के कारण आपस में ही लडने लगते रहते हैं और विदेशी दुश्मन इसका लाभ उठाते हैं । आज लगता है आम्बेडकर को जिस बात का डर था कांग्रेस नेतृत्व अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के कारण उसी रास्ते पर चल पड़ा है । पिछले कुछ साल से राहुल गान्धी के बयानों को भी इसी गहरी नज़र से देखना चाहिए । वे अमेरिका के लोगों को बताते रहे हैं कि भारत को पाकिस्तान समर्थक इस्लामी आतंकवादियों से इतना डर नही हैं जितना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से । सौभाग्य ले कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और देश की जनता कांग्रेस नेतृत्व की भारत को विभाजित करने की इस थ्यूरी से सहमत नहीं है । सही कारण है कि वह कांग्रेस नेतृत्व की इन देश विरोधी रणनीति से सचेत होकर उसे नकार रही है ।

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