कौन बादलों को नदियों की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है?
हमारे मन की वृत्तियों का नाश करके कौन हमें दिव्यता की ओर जाने के योग्य बनाता है?
मन की वृत्तियों का क्या स्तर है?
अपामतिष्ठद्धरुणह्वरंतमोऽन्तर्वृत्रस्य जठरेषुपर्वतः।
अभीमिन्द्रोनद्योवव्रिणाहिताविश्वाअनुष्ठाः प्रवणेषुजिघ्नते।।
ऋग्वेदमन्त्र 1.54.10
(अपाम्) जल के, लोगों के (अतिष्ठत्) स्थापित, रूकता है (धरुण ह्वरम्) बुराईयों को धारण करने वाला (तमः) अन्धकार (अन्तः) अन्दर (वृत्रस्य) मेघ, मन की वृत्तियाँ (जठरेषु) पेट में (पर्वतः) पक्षियों की तरह आकाश में उड़ते हुए, बिना लक्ष्य के उड़ते हुए (अभि) की तरफ, सामने (ईम) अब निश्चय से (इन्द्र) सर्वोच्च शक्ति, इन्द्रियों का नियंत्रक, सूर्य (नद्य) नदियाँ, जल की तरह बहते हुए (वव्रिणा) देखते हैं, अनुभूति प्राप्त करते हैं (हिताः) प्रतिक्षण गति करते हुए (विश्वाः) सब (अनुष्ठाः) स्थापित का अनुसरण करते हुए (प्रवणेषु) विनम्रता के साथ (जिघन्ते) प्रगति करते हैं।
व्याख्या:-
कौन बादलों को नदियों की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है?
हमारे मन की वृत्तियों का नाश करके कौन हमें दिव्यता की ओर जाने के योग्य बनाता है?
वैज्ञानिक अर्थ:- जल ऊपर जाकर बादलों के पेट में स्थापित होकर रूक जाता है और अन्धकार जैसी बुराई को धारण करते हुए आकाश में उड़ता है। परन्तु जब निश्चित रूप से वे सूर्य के सामने आते हैं तो वे नदियों की तरफ मुख करने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो हर क्षण चलती रहती है और सदैव अपनी स्थापित प्रकृति का अनुसरण करती हैं और विनम्रता के साथ आगे बढ़ती हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:- लोग मन की वृत्तियों के पेट में स्थापित रहते हैं, बादलों की तरह बिना लक्ष्य के उड़ते रहते हैं और पक्षियों की तरह बुराईयों को धारण करके, विशेष रूप से अज्ञानता रूपी सबसे बड़ी बुराई को धारण करके। अब निश्चित रूप से जब ये बुराईयाँ इन्द्रियों के नियंत्रक के सामने तथा सर्वोच्च शक्ति परमात्मा के सामने आती हैं तब वे महसूस करते हैं कि प्रत्येक क्षण अपनी स्थापित प्रकृति वाले अस्तित्व का अनुशरण करते हुए वे दिव्यता की ओर बढ़ रहे हैं और विनम्रता के साथ प्रगति करते हैं।
जीवन में सार्थकता: –
मन की वृत्तियों का क्या स्तर है?
मन की वृत्तियाँ अस्तित्वहीन हैं, परन्तु निश्चित रूप से हमें फंसाये रखती हैं। इनका कोई लक्ष्य नहीं है, परन्तु वे हमारी अज्ञानता का कारण हैं। इन वृत्तियों को नष्ट करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इन्द्र अर्थात् इन्द्रियों का नियंत्रक बनना चाहिए, केवल तभी वह सर्वोच्च इन्द्र की अनुभूति प्राप्त कर सकेगा। ऐसा जीवन मानवीय अस्तित्व के प्राकृतिक व्यवहार का अनुसरण करता है अर्थात् विनम्रता पूर्वक सबका कल्याण जैसे – नदियाँ सदैव और प्रतिक्षण करती हैं।
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