हनुमान जयंती के अवसर पर पोल खोल

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विष्णु, विष्णु का वाहन ,अक्षय क्षीर सागर, शेषनाग, नारद, विष्णु के चतुभुजों का रहस्य ,दुर्गा अष्टभुजा वाली, वैष्णवी, गायत्री, वशिष्ठ ,नारद, ब्रह्मा ,सरस्वती, इंद्र, शिव ,ब्राह्मण यह सभी विशेष गुणों वाले व्यक्ति को दी जाने वाली उपाधियां होती थी। इनका किसी विशेष व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। केवल इतना संबंध है कि इस नाम की उपाधि से जो विभूषित किया जाते थे वो‌ महान व्यक्तित्व अलग थे। तथा जिन व्यक्तियों के नाम रख लिए गए हुए व्यक्तित्व अलग थे।
यह आवश्यक नहीं कि जिनके नाम रखे गए थे उनमें उपाधियां प्राप्त करने के गुण भी हों ।
इसी प्रकार आत्मा अथवा आध्यात्म रूपी ‌गंगा का अवतरण भौतिक गंगा नदी के संबंध में नहीं, आत्मा ही गंगा है, त्रिविद्या ( ज्ञान, कर्म, उपासना है ) ,आत्मज्ञान गंगा स्नान है, भौतिक नदी गंगा स्नान अनुचित,गंगा का अलंकारिक स्वरूप आत्मा का स्वरूप होता है, गंगा नदी का कन्या रूप महाभारत मेंअसत्य, त्रिवेणी प्रयाग में नहीं बल्कि हमारे मूलाधार चक्र से रीढ की हड्डी के दोनों तरफ तीन नाडियां क्रमश: ईड़ा ,पिंगला, सुषुम्ना है ।गंगा नदी का अवतरण वास्तविक स्वरूप नहीं प्रस्तुत करता,गंगा पाप विमोचन की अवधारणा गलत एवं असत्य, योगीराज श्री कृष्ण का नागनाथन या मंथन असत्य ,16000 गोपीकाएं की कथा असत्य, 16 कलाएं कृष्ण जी महाराज के अंदर थी,द्रोपती के पांच पति होने की कथा असत्य, कामधेनु गाय भौतिक संसार में नहीं होती, उपवास रखना अथवा भूखे रहना व्रत नहीं है। रावण की नाभि में अमृत कुंड नहीं था। रावण के 10 सिर अथवा मुख नहीं थे। कुंभकरण 6 महीने सोता अथवा जगता नहीं था। हनुमान ने सूर्य को नहीं निगला बल्कि हनुमान जी सूर्य विद्या के वैज्ञानिक थे। हनुमान जी ने सूर्य विद्या को निगल लिया था। हनुमान जी ने सूर्य विद्या को कंठस्थ कर लिया था ।हनुमान जी ने सूर्य विद्या को खा लिया था अथवा प्राप्त कर लिया था अर्थात ग्रहण कर लिया था। वे सूर्य विद्या में पारंगत थे। भला ऐसा कहीं हो सकता है जो पृथ्वी से भी कई गुना बड़ा सूर्य है उसको एक व्यक्ति अपने मुंह में रख ले!
अगर यह बात हास्यास्पद नहीं तो और क्या है?
इसी प्रकार से यह भी उतना ही सत्य है कि घड़े से सीता का जन्म नहीं हुआ,। कल्पवृक्ष की अवधारणा गलत है।
इन सब बातों को जब हमारे कुछ लोग प्रवचन में ‌ आसत्य और असंभव बातों को बताते हैं तो विधर्मियों को अपने ऊपर हंसने का अवसर वे स्वयं देते हैं। तथा वैदिक धर्म को अनुचित, कपोल कल्पित और मिथक सिद्ध करने का अवसर ऐसे लोगों को मिल जाता है।इसके लिए हम ही दोषी हैं। वास्तविकता पर विचार करना चाहिए। सत्य को ग्रहण करना चाहिए।असत्य को छोड़ना चाहिए।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट ,
अध्यक्ष उगता भारत समाचार पत्र ,ग्रेटर नोएडा
9811838317

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