वर्ष 1957 से लेकर 2008 तक गाजियाबाद लोकसभा हापुड़ लोकसभा के नाम से जानी जाती थी।
गाजियाबाद या हापुड़ से लोकसभा से वर्ष 1967 के सांसद प्रकाश वीर शास्त्री जी चुने गए। शास्त्री जी आर्य समाज के यशस्वी वक्ता अमित तेजस्वी नेता थे उनकी शिक्षा दीक्षा आर्य समाज के गुरुकुलों में ही हुई। वह एक से अधिक लोकसभा से सांसद चुने गए 1967 में वह निर्दलीय चुनाव लड़े और निर्दलीय ही जीत गए आज की गाजियाबाद लोकसभा से। कांग्रेस व जनसंघ अर्थात भारतीय जनता पार्टी दोनों को धूल चटाकर । उसे दौर में इंदिरा या कांग्रेस की भयंकर लहर थी कांग्रेस को 283 सीटें मिली थी।आर्य समाज उत्तर भारत की राजनीति में उसे समय भी निर्णायक था राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं पर आर्य समाज के विचारक अपनी पेनी दृष्टि रखते थे वैचारिक के विमर्श को शीर्ष पर ले जाते थे और मुद्दों को धार देते थे। प्रकाश वीर शास्त्री जब सदन में बोलते थे तो पंडित नेहरू जी सर्वाधिक भयभीत रहते थे नेहरू की नीतियों के सबसे बड़े आलोचक प्रकाश वीर शास्त्री ही थे चाहे विदेश नीति हो रक्षा नीति हो या अर्थ नीति।
एक समान नागरिक संहिता व आर्टिकल 370 पर लोकसभा में चर्चा करने वाले इस मुद्दे को उठाने वाले सर्वप्रथम आर्य नेता वही थे। बाद में इस मुद्दे को भारतीय जनसंघ ने लपका।
आज आर्य समाज गंज के वर्तमान पुरोहित ने प्रकाश वीर शास्त्री जी को लेकर एक संस्मरण सुनाया।
प्रकाश वीर शास्त्री लैला और मजनू का किस्सा बताया करते थे लैला अमीर परिवार से ताल्लुक रखती थी तो मजनू गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था दोनों का प्रेम हो गया लैला के परिवार वालों ने मजनू को समझाया जब मजनू नहीं माना तो लैला के परिवार वालों ने मजनू को गुंडे भेज कर खूब पिटवाया और अधमरी खून से लथपथ हालत में उसे एक रेत के गड्ढे में धकेल दिया लैला को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी एक सेविका दासी को मजनू की खैर खबर पूछने के लिए भेजा वह दासी जब मजनू के पास उसे रेत के खड्डे में जाती है तो वह लैला लैला पुकार रहा था दासी आकर लैला को बताती है कि वह केवल तुम्हारा नाम ले रहा है। लैला मजनू की मलहम पट्टी का सामान उसके लिए खाने में सूखे मेवे दुद्ध आदि दासी के माध्यम से भेज देती है । यह देखकर एक दिन जब दासी मजनू के लिए दूध मेवा ला रही थी तो एक चालाक व्यक्ति यह सब कुछ देख रहा होता है वह मजनू को उस गड्ढे से निकाल कर दूसरे गड्ढे में फेंक देता है और स्वयं उसे गड्ढे में मजनू के भेष में लेट जाता है दासी के हाथ से दूध ले लेता है ऐसा सिलसिला एक-दो दिन चलता है लैला अपनी दासी से पूछती क्या वह मजनू अभी मेरा नाम पुकारता है? तो वह कहती है कि वह तुम्हारा नाम नहीं पुकारता केवल दूध और मेवे ले लेता है। लैला बुद्धिमान थी उसे शक हुआ कि वह व्यक्ति मजनू नहीं हो सकता वह कहती है यह धारदार छुरा और एक गिलास खाली ले जाओ और उसे जाकर कहो की लैला ने मजनू से उसका गिलास में रक्त मांगा है दासी जाकर ऐसा ही उसे व्यक्ति से जाकर रहती है वह व्यक्ति जैसे दूध समझकर हाथ बढ़ाता है तो खाली गिलास और छुरारा को देखता है ।वह कहता है दासी तुम मुझे क्या चाहती है तो दासी कहती है लैला ने तुम्हारा रक्त मांगा है तो वह व्यक्ति झट से उत्तर देता है कि रक्त वाला मजनू तो दूसरे खड्डे में है यह तो दूध वाला मजनू है प्रकाश वीर शास्त्री यह संस्मरण आर्य समाज की आजादी के बाद की स्थिति पर सुनाया करते थे । आर्य समाज ने अपने रक्त से बलिदान दिया असंख्य आर्य समाजी फांसी के फंदे पर झूले देश की सोती जनता को राजनीतिक उपदेशों से जागृत किया अखबार निकाले स्त्रियों शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिलाया शिक्षण संस्थाएं खोली देश का निर्माण किया लेकिन यह खून वाला मजनू बनकर रह गया है दूध वाला मजनू कांग्रेस है और आज की स्थिति में भी देखे तो भाजपा दूध वाले मजनू की भूमिका में है।
आगे आप विचार करें।
लेखक आर्य सागर खारी 🖋️