यदि हम हिन्दू धर्म और समाज का इतिहास ध्यान से पढ़ें ,तो हमें इस सत्य को स्वीकार करना पड़ेगा कि जब जब भी इस धर्म किसी भी प्रकार का संकट आया , तो धर्म की रक्षा के लिए और धर्म को अपने मूल में पुनर्स्थापित करने के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया , ऐसे महापुरुषों को अपना आदर्श और अवतार कहते हैं , धर्म पर कई प्रकार के संकट आते रहे हैं , और हमारे महापुरषों ने हमें बचाया , जैसे विधामियों के संकट से महा राणा प्रताप और शिवाजी जैसे अवतारों ने धर्म को बचाया
लेकिन विधर्मियों के आक्रमण से अधिक खतरा धर्म के नाम पर होने वाले पाखण्ड , अन्धविश्वास और अज्ञान से है , और धर्म को इस संकट से महर्षि दयानंद ने ने बचाया था , परन्तु दशमेश श्री गुरुगोविन्द सिंह एकमात्र ऐसे अवतारी महापुरष हैं , जिन्होंने शस्त्र के साथ शाश्त्र का प्रयोग करके धर्म की रक्षा की थी , गुरु जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया , उसकी मिसाल दुनिया के इतिहास में नहीं मिलेगी ,क्योंकि गुरूजी ने धर्म के लिए अपने पिता और अपने चारों पुत्रों को भी बलिदान कर दिया , गुरु गोविन्द सिंह शस्त्र विद्या में जितने प्रवीण थे उतने ही शाश्त्रों में भी निष्णात थे , वह संस्कृत , ब्रज भाषा , फारसी , पंजाबी और कई भाषाओँ के जानकार होने के साथ कवि भी थे , उन्होंने अपनी वाणी में उस समय प्रचलित सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है , जो उनकी विद्वत्ता का परिचायक है , गुरूजी की सम्पूर्ण वाणी दशमग्रन्थ में संकलित है , जो गुरुग्रन्थ साहब की तरह पवित्र धर्मग्रन्थ है ,
लेकिन बड़े ही दुःख की बात है कि जो हिन्दू राम राज्य की दुहाई देते है , और जय श्री राम के नारे लगते हैं उन मेसे अधिकांश नहीं जानते कि गुर गोविन्द सिंह भगवान राम के वंशज थे , श्री गुरु गोविन्द सिंह ने दशम ग्रन्थ के दूसरे अध्याय विचित्र नाटक में भगवान राम से अपने वंश तक की वंशावली स्वयं इन शब्दों में वर्णित की है ,
1-गुरु गोविन्द सिंह की वंशावली
( नोट – यह इतिहासिक वंशावली सरल ब्रज भाषा में है , जो सभी आसानी से समझ सकते हैं )
अब मै कहो सु अपनी कथा ॥ सोढी बंस उपजिया जथा ॥८॥
Now I narrate my own life-story, how the Sodhi clan came into being (in this world).8.
तिन के बंस बिखै रघु भयो ॥ रघु बंसहि जिह जगहि चलयो ॥
In this clan, there was a king named Raghu, who was the originator of Raghuvansh (the clan of Raghu) in the world.
ता ते पुत्र होत भयो अज बरु ॥ महा रथी अरु महा धनुरधर ॥२०॥
He had a great son Aja, a mighty warrior and superb archer.20.
जब तिन भेस जोग को लयो ॥ राज पाट दसरथ को दयो ॥
When he renounced the world as a Yogi, he passed on his kingdom to his son Dastratha.
होत भयो वह महा धनुरधर ॥ तीन त्रिआन बरा जिह रुचि कर ॥२१॥
Who had been a great archer and had married three wives with pleasure.21.
प्रिथम जयो तिह राम कुमारा ॥ भरथ ल्छमन सत्र बिदारा ॥
The eldest one gave birth to Rama, the others gave birth to Bharat, Lakshman and Shatrughan.
सीअ सुत बहुरि भए दुइ राजा ॥ राज पाट उनही कउ छाजा ॥22
After that the two sons of Sita (and Rama) became the kings.
मद्र देस एस्वरजा बरी जब ॥ भाति भाति के जग कीए तब ॥२३॥
They married the Punjabi princesses and performed various types of sacrifices.23.
तही तिनै बांधे दुइ पुरवा ॥ एक कसूर दुतीय लहुरवा ॥24
There they founded two cities, the one Kasur and the other Lahore
कालकेतु अर कालराइ भन ॥ जिन ते भए पुत्र घरि अनगन ॥२७॥
Kalket and Kal Rai had innumerable descendants.27.
कालकेतु भयो बली अपारा ॥ कालराइ जिनि नगर निकारा ॥
Kalket was a mighty warrior, who drove out Kal Rai from his city.
भाज सनौढ देस ते गए ॥ तही भूपजा बिआहत भए ॥२८॥
Kal Rai settled in the country named Sanaudh and married the king`s daughter.28.
तिह ते पुत्र भयो जो धामा ॥ सोढी राइ धरा तिहि नामा ॥
A son was born to him, who was named Sodhi Rai.
वंस सनौढ ते दिन ते थीआ ॥ परम पवित्र पुरख जू कीआ ॥२९॥
Sodhi Rai was the founder of Sanaudh dynasty by the Will of the Supreme Purusha.29.
तां ते पुत्र पौत्र होइ आए ॥ ते सोढी सभ जगति कहाए ॥
His sons and grandsons were called sodhis.
इति स्री बचित्र नाटक ग्रंथे सुभ बंस बरननं नाम दुतीआ धिआइ समापतम सतु सुभम सतु ॥२॥ अफजू ॥१३७॥
End of the Second Chapter of BACHITTAR NATAK entitled The Description of Ancestry
.2.
2-गुरुजी के आदर्श भगवान राम
श्री गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट शब्दों में भगवान राम अवतार और परम पवित्र बताया है
राम परम पवित्र है रघुबंस के अवतार ॥
दुसट दैतन के संघारक संत प्रान अधार ॥Page-541
और जैसे राम ने दुष्टों का विनाश और संतों की रक्षा करके धर्म की स्थापना की थी , वैसे ही गुरु जी ने दुष्ट औरंगजेब की दानवी मुग़ल फ़ौज का कई बार विनाश किया
3-पाखण्ड विनाशक गुरु गोविन्द सिंह
श्री गुरु गोविन्द सिंह धर्म की रक्षा के लिए दो मोर्चों पर युद्ध लड़ रहे थे , एक तरफ वह धर्म के शत्रु दुष्ट मुगलों का नाश कर रहे थे ,तो उसी समय अपनी वाणी के द्वारा धर्म के नाम पर व्याप्त पाखंड , और ढोंग का नाश करके सच्चे धर्म की स्थापना कर रहे थे , जो उनके इस सवैया से पता चलता है .
मोन भजे नही मान तजे नही भेख सजे नही मूंड मुंडाए॥
कंठि न कंठी कठोर धरै नही सीस जटान के जूट सुहाए ॥
साचु कहों सुन लै चित दै बिनु दीन दिआल की साम सिधाए ॥
प्रीति करे प्रभु पायत है क्रिपाल न भीजत लांड कटाए ॥ सवैया ॥100॥
“The Lord cannot be realized by observing silence, by forsaking pride, by adopting guises and by shaving the head.,
He cannot be realized by wearing Kanthi (a short necklace of small beads of different kinds made of wood or seeds worn by mendicants or ascetics) for severe austerities or Thy making a knot of matted hair on the head.,
Listen attentively, I speak Turth, Thou shalt not achieve the target without going under the Refuge of the LORD, Who is ever,,,Merciful to the lowly..
God can only be realized with LOVE, He is not pleased by circumcision.
इस छोटे से लेख का उद्देश्य उन लोगों का भ्रम दूर करना है ,जो सिख और हिन्दुओं को अलग बताते हैं , या श्री गुरु नानक से लेकर श्री गोविन्द सिंह तक सभी दसों गुरुओं को सिखों के गुरु बता देते हैं , वास्तव में इन्हीं के त्याग और बलिदानों से हिन्दू धर्म अभी तक बचा हुआ है
नोट -कल सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि केस की सुनवाई होगी .इसलिए लोगों को राम की याद दिलाने को यह लेख दिया है
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बृजनंदन शर्मा