इस तरह खोज हुई विटामिन ‘ई’ की
डॉ. गुलाबचंद कोटडिय़ा- विभूति फीचर्स
विटामिन साधारणतया 4 प्रकार के ही अभी चिन्हित किए गए है। ए.बी.सी और डी। इन चारों में सारी शक्तियां व गुण समाहित होते हैं जिन्हें मनुष्य अपने शरीर के लिए चाहता है। इन विटामिनों की द्रव्य या गोलियां बनी बनाई बाजार में उपलब्ध है। इसके अलावा मजाक में एक और विटामिन एम अर्थात् मनी को माना जाता है यह सर्वोपरि है क्योंकि उसके बिना कुछ नहीं प्राप्त होता न विटामिन, न ताकत।
विषय वासना, कामोत्तेजन संबंधी गोलियां वियाग्रा व कई अन्य नामों से कुछ समय पहले खूब बिकती थी अब भी बिकती होगी। विटामिनों पर अनुसंधान कार्य चालू है। आज अमेरिका में पांचवा विटामिन ‘ई’ की गोलियां गटकना सबके लिए आवश्यक बन गई है। यह विटामिन ‘ई’ है क्या? केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. जेम्स स्मिथ जो एक सेक्स क्लिनिक चलाते हैं। उन्होंने एक ऐसी दवा बनाई है जो वृद्घावस्था को रोकने में सहायक होती है अर्थात् उस दवा के मर्यादित सेवन से चिर यौवन तो नहीं फिर भी वृद्घावस्था को रोका जा सकता है। क्लिनिक में आने वाले स्त्री-पुरूषों पर उन्होंने उस दवा का प्रयोग यानी विटामिन ‘ईÓ से उपचार किया तो उन्होंने उसे सफल पाया।
अमेरिका में विटामिन ‘ई’ के बारे में कनाड़ा के डॉ. इवान शूट ने जब सर्वप्रथम जानकारी दी तो पूरे देश में खलबली मच गई। वृद्घावस्था में खण्डहर, जीणशीर्ण बने शरीर में अगर शक्ति संचार होने लगे तो हर कोई उसकी कामना करेगा ही। शारीरिक सुख व यौन आनंद प्राप्त करने अमेरिकी लोग रोज विटामिन ‘ई’ की गोलियां गटकने लगे हैं। डाक्टरों के अनुसार इसके सेवन से टूटे फूटे दाम्पत्य जीवन में बसंत बहार छा सकती है। शरीर का चाहे कोई अंग हो उसमें उत्तेजना भर जाती है।
अब तो यूरोप के सभी देशों में इसका प्रचलन बढ़ गया है। हर कोई उसके पीछे पागल है। मजे की बात यह है कि विटामिन ‘ई’ की शोध का श्रेय एक जापानी सांड को जाता है टोकियो के पास एक गांव में एक किसान ने उत्तम जाति के एक सांड को पाला था। हमारे भारत में उसे सूरजी का सांड कहते हैं जिसके द्वारा गायों का गर्भाधान कराया जाता है।
पर जापान के उस सांड को गायों में कोई रस नहीं था, न उन्हें वह भोगने का प्रयत्न करता था। एक योगी की तरह तटस्थ निष्काम भाव से देखता रहता था। किसान ने सोचा जिस कार्य के लिए उस सांड को रोज मालदार तर पौष्टिïक खुराक खिला रहा हंू उसके लिए तो वह सांड तैयार ही नहीं हो रहा है। मानों हड़ताल पर बैठा हो। किसान हैरान परेशान हो गया। इस निकम्मे नाकारा नपुंसक सांड को पालने से क्या फायदा? उसने उसमें उत्तेजना पैदा करने के लिए कई प्रयत्न किए पर सब निष्फल सिद्घ हुए। अंत में हारकर उसने घरेलू (दादा दादी के नुस्खे) उपचार द्वारा आजमाने का विचार किया। उस किसान के घर में एक शीशी थी जिसमें तेल युक्त सत्व द्रव्य रूप में भरा था। इस तेल में पुरूषों में यौन शक्ति की जागृति का गुण है, ऐसी मान्यता थी। उत्तेजना पैदा कर सके वैसा द्रव्य था। आज भी आधा जापान उस तैलीय द्रव्य का उपयोग करता है। उस किसान ने कुछ सोचकर उस तेल की शीशी में इकट्ठे द्रव्य को सांड की खुराक में मिश्रण कर दिया। आधी खुराक पेट में पहुंचते ही सांड डकराने लगा व खुरों से जमीन खोदन लगा। जोर-जोर से रम्भाने लगा। आंखों में कामुकता के लाल लाल डोरे चमकने लगे। गायों की तरफ वह आकर्षित होने लगा। किसान को इस परिवर्तन पर सुखद आश्चर्य हुआ। दिन रात वह गायों का गर्भाधान कराने लग गया। यह बात हवा की तरह पूरे जापान में फैल गई और अमेरिका के समाचार पत्रों में उसके बारे में प्रकाशित हुआ तो वैज्ञानिक उस तत्व की खोज में जुट गए।
कई दवा कंपनियों ने इस विचार को हाथों हाथ लिया। प्रयोग व अनुसंधान होने लगे। शोध और अनुसंधान के बाद पता चला कि इस तत्व में ‘अल्फा टोकोफेरोल’ नामक महत्वपूर्ण द्रव्य भरपूर मात्रा में मौजूद है। अगर उसे मुनष्यों को दिया जाए तो गुम हुई युवा शक्ति का पुनर्भरण हो सकता है।
उदासीन यौन संबंध पुन: जागृत हो सकते हैं। वे भी सांड की तरह शारीरिक संपर्क के लिये तैयार हो जाते हैं। इस ‘आल्फा टोकोफेराल’ को ही विटामिन ‘ई’ का नाम दिया गया है। शक्ति के नवसंचार हेतु उस जापानी सांड का आभार मानना चाहिए। अमेरिका यों भी प्रबल सेक्स भावना प्रधान देश है, खुले प्रेम प्रदर्शन का समर्थक। अमेरिकी सदा सेक्स के भूखे होते हैं। विटामिन ‘ई’ साग भाजी पत्तों में पाया जाता है। मांसाहारी अमेरिकी ज्यादा गेहूं या साग भाजी का सेवन नहीं करते अत: शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों का अभाव आ गया है अत: उन्हें ये गोलियां खाने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये गोलियां यौन शक्ति जगाने के काम आती है इसलिए ये गोलियां सर्वत्र लोकप्रिय हो गई। तीसरा कारण और भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में अमेरिकी स्त्री पुरूषों पर एक सर्वेक्षण किया गया जिससे पता चला कि अमेरिकियों में बीसवीं सदी में जितनी जननशक्ति थी वह 21वीं सदी आते-आते तृतीयांश रह गई है अर्थात् अमेरिकी स्त्रियां भले ही परिवार नियोजन का पालन नहीं करें पर भविष्य में उनके बच्चा होगा ही यह आशा भी विलुप्त होने लगी। यह एक विचित्र परिस्थिति है। संतान जन्में या न जन्में पर विषय सुख या सेक्स आनंद प्राप्त कर सभी मजा लूटना चाहते हैं और जब यौन शक्ति को बढ़ाने के गुण विटामिन ‘ई’ में मौजूद हैं तो कोई क्यों चूके? कामोत्तेजना हो, नपुंसकता दूर हो, यौवन पुन: मिल जाए, शक्ति छलछलाने लगे। स्त्री पुरूष एक दूसरे को भोगने, शारीरिक संपर्क करने को आतुर हो जाए तो और क्या चाहिए? डाक्टरों ने उस ‘विटामिन ई’ को इस प्रकार का प्रमाण पत्र भी दे दिया। अमेरिका में विटामिन ‘ई’ की बिकवाली 20 प्रतिशत बढ़ गई है। विटामिन सी से भी वह अधिक बिकती है। चिकित्सा संसार में खलबली मची हुई है इसका कारण है विज्ञान शास्त्र में अभी तक विटामिन ‘ई का अस्तित्व ही न होना।
अनुसंधान शोध लगातार हो रहे हैं। इन गोलियों के अधिक सेवन से आदमी बहकता जरूर है पर उसके शरीर में नुक्सानदायक प्रतिक्रिया होने का डर नहीं है। इसलिए डाक्टरों की चेतावनी के बावजूद लोग इसका धड़ल्ले से सेवन कर रहे हैं। विटामिन ‘ई’ का उत्पादन बहुत अधिक हो रहा है। अमेरिका में तीस से अधिक कंपनियों ने इस दवा उत्पादन का कार्य हाथ में लिया है जिसमें 4 कंपनियां तो ऐसी है जो परिवार नियोजन की गोलियां भी बनाती है। भारत में भी विटामिन ‘ई’ की दवा व गोलियां उपलब्ध है। टानिक, टेबलेट के रूप में प्राप्त है। स्किन टानिक के लोशन में भी विटामिन ‘ई’ पाया जाता है।
डॉ. शूट ने हाल ही में अत्यंत असरदार शक्तिवर्धक नई विटामिन ‘ई’ की गोलियों को बाजार में पेश किया है और बताया कि 100 से अधिक जोड़ों पर इसका प्रयोग किया गया और उन्हें खोई जवानी पुन: प्राप्त हो गयी है परंतु ‘आल्फा टेकोफेरोल’ का वैज्ञानिक विश्लेषण व पूर्ण शोध अभी हुआ नहीं है। पूर्ण शोध होने के बाद ही उसे विटामिन के रूप में स्वीकृति दी जाएगी। चिकित्साशास्त्री यह भी मानते ही है कि ‘आल्फा टेकोफेरोल’ मात्रा का शरीर में प्रमाण कम होते ही नपुंसकता आने लगती है। 1972 में अमेरिका में डेविड होटिंग नामक एक डाक्टर ने एक सूचना प्रसारित की थी कि अमेरीकियों में आल्फा टेकोफेरोल की जितनी मात्रा प्रमाण में होनी चाहिए उतनी है नहीं, इसलिए उनकी जनन शक्ति, कुप्रभावित हो गई है। इस पर अमेरिकी कंपनियों ने थोकबंद गोलियों का उत्पादन शुरू कर दिया और सेवन भी होने लगा। खूब प्रसार प्रचार भी किया गया कि इसके सेवन से तीन गुना यौन शक्ति बढ़ जाती है। विटामिन ‘ई’ के अधिक सेवन से कुछ नुक्सान हो सकता है उसका परीक्षण संपूर्णत: अभी तक हुआ नहीं है। वैज्ञानिक इस कार्य में अंधेरे में हाथ पैर मार रहे हैं। पूर्ण जानकारी अनुपलब्ध है। उन्हें यह भी पता नहीं है शरीर में यह तत्व कितना होना चाहिए। पर यह बात उन्हें पता है कि यह तत्व गेंहू के चोकर से प्राप्त होता है अत: उसी पर प्रयोग करते जा रहे हैं।
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जान एफ केनेड़ी विटामिन ‘ई’ का सेवन करते थे, तब वह बाजार में नई नई ही आई थी। उनके यौन संबंधों के चर्चे आज भी होते हैं। रूसी नेता बे्रजनेव भी इस गोली के शौकीन थे। भारत में भी शौकीन है जनसंख्या लगातार बढ़ रही है इसलिए इसका सेवन कम ही होता है।
पुरूष ही नहीं स्त्रियां भी इसकी तरफ आकर्षित है। कामशीलता से पीडि़त स्त्रियों के लिए भी यह विटामिन वरदान सिद्घ हो रहा है। इसमें पोषक तत्व है इसके बारे में कोई दो राय नहीं है। (विभूति फीचर्स)