कठोपनिषद में आयु या जीवन के संबंध में व्यवस्था
शंका समाधान
दिनांक 17/4/2024।
नमस्ते स्वामी जी।
स्वामी जी आयु या जीवन के संबंध में कठोपनिषद के एक मंत्र को लेकर शंका है, जो निम्न है।
1 )जीवात्मा को उसके कर्मों का फल जाति आयु भोग के रूप में मिलता है आयु के विषय में आप जैसे परम विरक्त विद्वानों से ही सुना है पढ़ा है आयु को जीवात्मा अपने इच्छा अनुसार कर्मों से घटा बढ़ा सकता है अर्थात व्यायाम सात्विक दिनचर्या भोजन आदि आदि से आयु बढ़ती है। आयु का घटाना बढ़ाना जीवात्मा के हाथ में है।
स्वामी जी कठोपनिषद की प्रथमा वल्ली का 27 वा मंत्र जिसमें यम -नचिकेता का संवाद है। यम को महर्षि दयानन्द ने परमात्मा नचिकेता को आत्मा का प्रतीक माना है। महर्षि जी ने उपनिषदों के प्रमाण भी दिए हैं।
स्वामी जी इस मंत्र की दूसरी पंक्ति में यह वाक्य है।
“जीविष्यामो यावदीशिष्यसी त्वं ”
इस मंत्र भाग का विद्वानों ने यह अर्थ किया है की ” हे मृत्यु ,जितना तू चाहेगा उतना ही तो हम जी सकेंगे”। अर्थात नचिकेता परमात्मा रूपी आचार्य यम से कह रहा है -प्रभु जब तक जिएंगे, जब तक तू चाहेगा’।
स्वामी जी शंका यह है क्या हमारा आयु जीवन ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है?। मंत्र तो इसी भाव को व्यक्त कर रहा है सीधे-सीधे। हमारा जीवन यदि ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है तो फिर जीवात्मा के इच्छा अनुसार कर्मों से आयु के घटने बढ़ने की संगति कैसे लगाये।
स्वामी जी क्या यह दोनों ही सिद्धांत प्रमाण है एक दूसरे के विरोधी नहीं है?
। कृपा शंका का समाधान करें।
उपरोक्त शंका का पूज्य स्वामी जी द्वारा समाधान।
आर्य सागर जी। नमस्ते जी।
उत्तर —
योग दर्शन में जो जाति आयु भोग लिखा है, इसका तात्पर्य है कि पूर्व जन्म के कर्मों से आपको मान लीजिए 80 वर्ष की आयु मिली। आयुर्वेद में लिखा है कि जो आप व्यायाम ब्रह्मचर्य का पालन यज्ञ संध्या सेवा परोपकार दान दया सत्यवादिता अहिंसा आदि शुभ कर्मों का आचरण करेंगे, तो वर्तमान जन्म के इन शुभ कर्मों से आपकी आयु बढ़ेगी।
अब आयुर्वेद के कथन अनुसार नए कर्मों से आपकी आयु ईश्वर ने 20 वर्ष और बढ़ा दी। तो इस जीवन में आप 100 वर्ष जी सकते हैं।
इस प्रकार से इन दोनों सिद्धांतों में कोई भी विरोध नहीं है।
इस जन्म के कर्मों से आयु बढ़ती है, आयुर्वेद वाली यही बात योग दर्शन के सूत्र 2/13 में भी है। वहां पर एकविपाकारंभी कर्माशय के अंतर्गत इस जन्म के कर्मों से आयु का बढ़ना स्वीकार किया है।
कठोपनिषद के वचन के अनुसार जितना ईश्वर चाहेगा उतना हम जिएंगे। यह बात सही है। तो यहां प्रश्न यह उठता है कि ईश्वर अपनी इच्छा से चाहता है, या हमारे कर्मों के आधार पर चाहता है? यदि वह न्यायकारी है, तो हमारे कर्मों के आधार पर वह चाहेगा। हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ईश्वर चाहता है कि हम 80 वर्ष जिएं। फिर वर्तमान जन्म के नए कर्मों के आधार पर ईश्वर चाहता है कि हम 20 वर्ष और अधिक जिएं। तो पिछले 80 और नये 20 जोड़कर इस जन्म में ईश्वर ने हमारी आयु 100 वर्ष कर दी। तो यह ईश्वर की इच्छा के अनुसार भी है, और हमारे कर्मों के आधार पर भी है। अतः दोनों बातों में कोई भी विरोध नहीं है। दोनों वाक्य ऋषि वचन है। दोनों प्रमाणिक हैं। दोनों सही हैं।
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक रोजड़ गुजरात।
स्वामी जी धन्यवाद लेकिन एक शंका और उभर गई है आपने बताया किसी जीवात्मा को पुर्व जन्म के कर्मों के आधार पर 80 वर्ष की आयु मिली तो इससे क्या आयु को काल की दृष्टि से नियत मान ले यदि कोई जीवात्मा अपने कर्मों से इसे घटाये या बढ़ाये ना। यदि इसे निश्चित माने तो मरने का समय भी निश्चित होगा भले ही जीवात्मा अपनी अल्प ज्ञान से उसे ना जान पाए।
आर्य सागर जी। उत्तर —
ईश्वर ने पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर 80 वर्ष की जो आयु दी, वह काल पर निर्धारित नहीं है। वह शक्ति पर आधारित है। जब तक शरीर में शक्ति रहेगी, तब तक व्यक्ति जीवित रहेगा।
अब शक्ति का कोई मापदंड नहीं दिखता, जिससे हम व्यक्त कर पाएं कि ईश्वर ने कितनी शक्ति दी आयु के रूप में। इसलिए विवश होकर काल के नाम का सहारा लेना पड़ता है। वह आपके हाथ में है। आप अपनी शक्ति को धीरे-धीरे खर्च करें, और नए पुरुषार्थ से अपनी शक्ति को बढ़ा लें, तो आपकी आयु बढ़ जाएगी।
यदि जल्दी-जल्दी खर्च करेंगे, तो आयु घट जाएगी। और यदि दुर्घटना हो गई, तो तत्काल शक्ति नष्ट हो जाएगी, और तत्काल मृत्यु हो जाएगी। इसलिए मरने का दिन समय स्थान कुछ भी पहले से निर्धारित नहीं है। आयु का मूल आधार शरीर में विद्यमान शक्ति है, समय या काल नहीं।