रामनवमी पर ऋग्वेद पारायण यज्ञ हुआ आरंभ : राम हमारी आस्था और भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के स्रोत हैं : डॉ आर्य
ग्रेटर नोएडा ( विशेष संवाददाता) यहां स्थित सत्य सनातन वैदिक यज्ञशाला तिलपता ग्रेटर नोएडा में रामनवमी के अवसर पर ऋग्वेद पारायण यज्ञ का आरंभ हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि राम हमारी आस्था और भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के स्रोत हैं। राम का चरित्र भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की झांकी प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के आरंभ में पहली चतुर्युगी में रामचंद्र जी का जन्म त्रेता काल में हुआ । एक मन्वंतर में 30 करोड़ 67 लाख 20000 वर्ष होते हैं। जबकि एक चतुर्युगी में 43 लाख 20000 वर्ष होते हैं। इस मन्वंतर की अब 27 वीं चतुर्युगी इस समय चल रही है। इस मन्वंतर का अब तक 12 करोड़ वर्ष से अधिक का समय गुजर चुका है। इस प्रकार रामचंद्र जी को इस धरती पर आए लगभग 12 करोड़ वर्ष हो चुके हैं। तब से उनकी कीर्ति यथावत बनी हुई है। इसका कारण केवल एक है कि उनका जीवन बहुत ही सधा हुआ मर्यादित जीवन था। इसलिए ही उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
डॉ आर्य ने कहा कि शबरी एक महान विदुषी महिला थी। जिसने रामचंद्र जी को झूठे बेर नहीं खिलाए थे, बल्कि उन्होंने कंदमूल खिलाकर उनका स्वागत किया था। बाल्मीकि रामायण में ऐसा ही उल्लेख है। इसी प्रकार कुछ अन्य भ्रांतियों का निवारण करते हुए डॉ आर्य ने कहा कि युद्ध के समय लक्ष्मण को ही इंद्रजीत ने शक्ति से घायल नहीं किया था बल्कि उस दिन रामचंद्र जी और लक्ष्मण जी दोनों को ही गंभीर रूप से घायल किया गया था। जिनके लिए संजीवनी बूटी लाने का आदेश सुषेण वैद्य ने नहीं बल्कि जामवंत जी ने दिया था। जामवंत जी स्वयं अपने आप में एक वैदिक विद्वान थे। हनुमान जी ने वह बूटी लाकर दी और दोनों भाई स्वस्थ होकर अगले दिन युद्ध करने के लिए गए । जब रावण के साथ हो रहे युद्ध के समय रावण ने लक्ष्मण को गंभीर रूप से घायल किया तो उस समय भी उनकी प्राण रक्षा के लिए हनुमान जी को वही बूटी लाने के लिए भेजा गया था। पर इस बार उन्हें जामवंत ने नहीं सुषेण ने भेजा था। सुषेण रावण के वैद्य नहीं थे बल्कि वह सुग्रीव के वैद्य थे और सुग्रीव के ससुर भी थे।
डॉ आर्य ने कहा कि हमें रामचंद्र जी को समझने के लिए वाल्मीकि कृत रामायण को पढ़ने की आवश्यकता है। क्योंकि वाल्मीकि जी रामचंद्र जी के समकालीन कवि हैं। कालांतर में लिखी गई कुछ पुस्तकों में घटनाओं को अलग संदर्भ और अर्थ के साथ प्रस्तुत किया गया है जिससे अर्थ का अनर्थ हो गया है।
उन्होंने कहा कि रामचंद्र जी और रावण का युद्ध भी चैत्र माह की अभी गई अमावस्या के दिन हुआ था। जिसे गलत ढंग से दशहरा के दिन हुआ दिखाया जाता है ।
रामचंद्र जी का जन्म जहां रामनवमी के दिन हुआ वहीं उनका राज्याभिषेक भी इसी माह में हुआ था। उन्होंने कहा कि हमें राम और भरत के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए। भरत ने भाई की पादुकाओं को लेकर 14 वर्ष तक शासन किया और स्वयं एक दिन भी राज सिंहासन पर विराजमान नहीं हुए बल्कि अयोध्या से दूर नंदीग्राम में जाकर वनवासी का जीवन जीते हुए शासन कार्य संपादित किया।
यज्ञ के ब्रह्म आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य दशरथ रहे। जिन्होंने संस्कारों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के ऋषि मुनियों ने संस्कारों को विशेष रूप से मानव जीवन के लिए खोज कर हमारे लिए स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि जिस मानव के जीवन में संस्कार नहीं होते उसका जीवन निरर्थक होता है। जीवन को सार्थकता में ढालने के लिए संस्कारों का अपनाया जाना बहुत आवश्यक है। इस अवसर पर श्री किशनलाल आर्य की प्रपौत्री नव्या का अन्नप्राशन संस्कार भी संपन्न किया गया। कार्यक्रम में भारतीय आदर्श इंटर कॉलेज तिलपता के प्रबंधक श्री बलबीर सिंह आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के वैदिक संस्कार ही विश्व शांति कायम करने में सफल हो सकते हैं। इस अवसर पर श्री रणवीर सिंह आर्य, श्री महावीर सिंह आर्य, श्री किशन लाल आर्य व इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या श्रीमती अमरेश चपराणा , श्रीमती रजनी सक्सेना, श्रीमती प्रीति भाटी, राजकुमारी, श्रीमती सुषमा, श्रीमती माया, श्रीमती अंजू, श्रीमती लक्ष्मी, राहुल आर्य व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चंचल आर्य आदि के साथ-साथ हरेंद्र आर्य, पवन आर्य, टेकराम आर्य, प्रहलाद सिंह खारी सहित अनेकों लोग विद्यमान रहे।