प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति में उन देशों को प्राथमिकता दी गई है जो भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास की परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने के प्रति संकल्पित हैं । भारतीय मूल के प्रवासियों की संतानों के रूप में मॉरीशस की अधिसंख्य हिंदू जनसंख्या ने भारत के प्रति अपने समर्पण को प्रकट करने में कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया है। आज भी वह जिस प्रकार भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य कर रहा है वह सब प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि में है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी विदेश नीति में हिंद महासागर में बसे इस देश को विशेष महत्व देना आरंभ किया। इसमें दो मत नहीं हैं कि कांग्रेस की सरकारों के समय में भी मॉरीशस को भारत ने सम्मान देने में कमी नहीं छोड़ी, पर इस समय हमारी विदेश नीति इस देश को लेकर कुछ महत्वपूर्ण और ठोस कार्य करना चाहती है। अपनी मॉरीशस संबंधी नीति का प्रधानमंत्री श्री मोदी ने वर्ष 2015 में अपनी मॉरीशस यात्रा के समय स्पष्ट संकेत कर दिया था। प्रधानमंत्री ने उस समय महत्वाकांक्षी नीति सागर का शुभारंभ किया था।
जब सारा संसार सांप्रदायिक खेमेबंदी में बंटा हो और इस्लाम व ईसाइयत में बंटे देश अपनी – अपनी संख्या बढ़ाने का अथक प्रयास कर रहे हों, तब विचारधारा के संकट का सामना करना भारत के लिए स्वाभाविक है। विचारधारा के इसी संकट से पार पाने और हिंदू अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने उन सभी मित्रों को साथ लेकर वैश्विक राजनीति की दिशा को बदलने का प्रयास करना आरंभ किया है जो किसी भी क्षेत्र में किसी भी समय हमारा सहयोग कर सकते हैं या जो हमारी हिंदुत्व की विचारधारा में थोड़ा सा भी विश्वास रखते हैं।
मॉरीशस ने भी भारत के सदाशय को समझ कर सामरिक दृष्टिकोण से अपने महत्व को अपने बड़े भाई भारत के लिए हृदय की गहराइयों से समर्पित कर दिया है। दोनों देशों की सांझेदारी गन्ने के बागान, वित्तीय सेवाएँ तथा तकनीकी नवाचारों को खोजते – खोजते बहुत दूर निकल जाना चाहती है।
मॉरीशस के बारे में हम सभी जानते हैं कि यह देश हिंद महासागर आयोग का सदस्य है । जिसके चलते इसकी भूमिका भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु भौगोलिक आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।
जब यूरोप से कुछ लोग व्यापारी के रूप में संसार के विभिन्न क्षेत्रों, देशोंं, द्वीपों को लूटने के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर निकले तो उस समय उनका अनेक नए स्थानों से परिचय हुआ। ये लोग उस समय भारत को व्यापार के माध्यम से लूटने के लिए नए रास्ते खोज रहे थे। उनके इसी खोजी अभियान में उनका परिचय एक नए द्विपीय क्षेत्र से हुआ, जिसका नाम उन्होंने मॉरीशस रखा। इस देश को उन्होंने हिंद महासागर का तारा और चाबी का कर पुकारा। यहां पहुंचने वाले विदेशी लोगों में पुर्तगाली और डच लोगों ने पहले बाजी मारी। पर बाद में 18वीं शताब्दी में फ्रांसीसियों ने इस देश पर स्थाई अधिकार प्राप्त कर यहां पर अपना शासन स्थापित किया। जिन्होंने यहां पर गन्ने के बागान विकसित करने आरंभ किये। जहाजों का निर्माण कर मॉरीशस का संपर्क विश्व के अन्य भूभाग से जोड़ने का काम करना आरंभ किया। पर स्थानीय लोगों का शोषण भी उनके शासनकाल में अपने चरम पर पहुंच गया। बाद में नेपोलियन के शासनकाल में यहां पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार स्थापित किया।
वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में भारत संसार के सभी देशों के लिए बहुत बड़ा बाजार बन चुका है। इसलिए भारत से आर्थिक और व्यापारिक संबंध स्थापित करना प्रत्येक देश अपने लिए आवश्यक समझ रहा है । इस सबके उपरान्त भी भारत को अपने व्यापारिक मित्रों की तलाश है। अफ्रीकन देशों में अपना बाजार विकसित करने के लिए भारत के लिए मॉरीशस एक अच्छा मित्र सिद्ध हो सकता है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने हिंद महासागर के वनिला द्वीपों कोमोरोस, मेडागास्कर मॉरिशस, सेशेल्स, रीयूनियन द्वीप के साथ द्विपक्षीय आधार पर बातचीत करते हुए अपनी विदेश नीति को नई धार देने का प्रयास किया है। यदि भारत की वर्तमान विदेश नीति अपनी वर्तमान मॉरीशस संबंधी नीति को जारी रखते हुए नए आयामों को छूकर इतिहास लिखने में सफल हुई तो यह कहा जा सकता है कि मॉरिशस दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में भारत के लिए बैंकिंग, हवाई यातायात तथा पर्यटन आदि को प्रोत्साहित करने के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगी सिद्ध हो सकता है। भारत भी अपने इस सांस्कृतिक और आत्मिक मित्र के लिए प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण सहयोगी और बड़ा भाई सिद्ध हो सकता है। इस बात को चाहे मॉरीशस के लोग अनुभव ना कर रहे हों कि विचारधारा का संकट वहां पर भी है, पर वैश्विक राजनीति की वर्तमान दुर्गंध से भरी परिस्थितियों के चलते देर सवेर मॉरीशस भी विचारधारा का शिकार हो सकता है । उस क्षेत्र में वैदिक साहित्य और मूल्यों को परोसते हुए भारत मॉरीशस के लोगों के लिए अच्छे मित्र का कार्य कर सकता है। इसके अतिरिक्त भी मॉरीशस को भारत की आवश्यकता है। जिसके चलते उसे वैश्विक मंचों पर चली जाने वाली षडयंत्रात्मक चालों के शिकंजे से बचाने में भारत अपना सहयोग दे सकता है। यदि प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान मॉरीशस संबंधी नीति की समीक्षा की जाए तो भारत अपने इस मित्र के लिए प्रत्येक क्षेत्र में एक सहयोगी देश के साथ-साथ एक मित्र देश और बड़े भाई के रूप में खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है। यहां तक कि भारत मॉरीशस की शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी आवश्यकताओं के लिए भी अपने आपको प्रस्तुत करने में अब किसी प्रकार की हिचक नहीं दिखा रहा है। विशेषज्ञों की मान्यता है कि जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति, ब्लू इकॉनमी तथा सामुद्रिक शोध को बढ़ावा देने के लिये मॉरिशस, भारत का एक अहम साझेदार हो सकता है। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के दृष्टिकोण से मॉरिशस की भूमिका केंद्र में होगी ।जिससे दोनों देश अन्य सभी द्वीपीय देशों के हितों की रक्षा करने में सहायक होंगे।
कुल मिलाकर भारत की वर्तमान विदेश नीति में मॉरीशस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यदि दोनों देश स्वस्थ सोच और स्वच्छ परिवेश में काम करते हुए आगे बढ़े तो निश्चय ही अपने नीतिगत मंतव्य को प्राप्त करने में सफल होकर नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)