कारण शरीर को लेकर कुछ शंकाएं
शंका समाधान
दिनांक १३/४/२०२४
नमस्ते स्वामी जी।
स्वामी जी कारण शरीर को लेकर कुछ शंकाएं है,जो निम्न हैं।
१)कारण शरीर को सभी जीवात्माओं के लिए एक ,विभु माना गया है। स्वामी जी इसे ऐसा क्यों नही माना जा सकता है जिन सत्व, रज आदि अथवा कारण शरीर से मेरा स्थूल ,सूक्ष्म आदि शरीर बना है केवल वह ही मेरा कारण शरीर कहलाये ।
२)स्वामी जी स्थूल, सूक्ष्म आदि तो कार्यरूप बने हुए शरीर है ऐसे में कारण रूप प्रकृति को कारण शरीर क्यों कहा गया है जीवात्मा प्रत्यक्ष इसका उपयोग भी नहीं करता?
३)स्वामी जी कुछ विद्वान प्रकृति को ईश्वर का कारण शरीर मानते हैं क्या यह उचित है?
कृपा शंका का समाधान करें।
उपरोक्त शंकाओ का पूज्य स्वामी विवेकानंद परिव्राजक जी द्वारा समाधान।
आर्य सागर जी। नमस्ते जी।
उत्तर 1- सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुण के जो कण आपके सूक्ष्म और स्थूल शरीर में उपादान कारण के रूप में लगे हुए हैं, उतने ही कण आपका कारण शरीर है, पूरी प्रकृति नहीं। यह बात ठीक है। और यही बात सब आत्माओं के साथ भी लागू होती है। महर्षि दयानंद जी का अभिप्राय भी यही है।
परंतु महर्षि दयानंद जी ने जो लिखा है कि “वह विभु है।” इसको इस दृष्टि से समझना चाहिए, कि जैसे 10 मकानों में 50,000 ईंटें लगी हुई हैं। तो प्रत्येक मकान की ईंटें हैं तो अलग-अलग 5,000/5,000. परंतु हैं एक जैसी। इसलिए उन सब ईंटों का सामूहिक नाम “ईंटें” ही कहना होगा।
इसी प्रकार से सब के सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर का जो कारण शरीर, सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुण है, वह सबका एक नहीं है, एक जैसा है। कण तो सबके एक जैसे हैं, परन्तु हैं ईंटों के समान अलग-अलग। परंतु क्योंकि सारे कण एक जैसे हैं, इसलिए उस पूरे पदार्थ = प्रकृति को सामूहिक रूप से एक मानकर महर्षि दयानंद जी ने विभु अर्थात व्यापक शब्द से कह दिया है।
उनके इस वाक्य से ऐसा अर्थ नहीं लेना चाहिए, कि *सबका कारण शरीर एक ही है। बल्कि एक जैसा है। यह अर्थ लेना चाहिए। और जो सबका कारण शरीर है, वह पूरी प्रकृति है। और सारी प्रकृति पूरे ब्रह्मांड में व्यापक है। इसलिए प्रकृति को एक वस्तु मानकर विभु कह दिया। ऋषि दयानंद जी के शब्दों से ऐसा अर्थ लगाना उनके अभिप्राय के अनुकूल है।
उत्तर 2- प्रकृति, सूक्ष्म एवं स्थूल शरीरों का कारण द्रव्य है, उपादान कारण है। इसलिए उसको उपादान कारण कह सकते हैं। परंतु आपका प्रश्न है कि उसे शरीर क्यों कहा? उत्तर है, केवल तुकबंदी अर्थात सिमिट्री बनाने के लिए कह दिया। जैसे दो का नाम स्थूल “शरीर” एवं सूक्ष्म “शरीर” है, ऐसे ही तुकबंदी जोड़ने के लिए प्रकृति को भी कारण “शरीर” कह दिया। और यह बात आपकी सही है कि मूल प्रकृति कारण शरीर से जीवात्मा सीधा कोई लाभ नहीं ले सकता।
उत्तर 3– जो विद्वान प्रकृति को ईश्वर का कारण शरीर मानते हैं, वह वेदों और ऋषियों के सिद्धांत के विरुद्ध होने से गलत है।
क्योंकि यजुर्वेद के 40वें अध्याय के आठवें मंत्र में लिखा है, स पर्यगाच्छुक्रमकायम्।। अकायम् अर्थात ईश्वर का तीन में से कोई भी शरीर नहीं है।
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक रोजड़ गुजरात।