लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
महर्षि दयानन्द अध्यात्म जगत के गूढ रहस्य को उद्घाटित करने वाले अध्यात्म मार्ग के प्रशास्ता दार्शनिक योगी ही नहीं थे केवल वह आदिभूत जगत के विज्ञान के सिद्धांतों के मर्मज्ञ ज्ञाता भी थे।
महर्षि दयानंद का विज्ञान बोध भी उच्च कोटि का था। जिसकी झलकियां हमें उनके अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश ,ऋग्वेदआदिभाष्य भूमिका जैसे ग्रंथों के अनेक स्थलों पर बीज रूप में दिखाई दे जाती है।
विज्ञान के सिद्धांतों के आधार पर यज्ञीय कर्मकांड को लोक उपकारिता आरोग्यता परक सिद्ध करने में उन्होंने अपने वैज्ञानिक चेतना बोध का उत्कृष्ट उपयोग किया है।
इस संबंध में हम सत्यार्थ प्रकाश के तीसरे समुल्लास का अवलोकन करते हैं।
सत्यार्थ प्रकाश के तीसरे समुल्लास में देव यज्ञ के प्रकरण में महर्षि दयानन्द से हवन के संबंध में शंका की जाती है।
1 प्रश्न होम से क्या उपकार होता है?
महर्षि दयानंद सब लोग जानते हैं की दुर्गंध युक्त वायु और जल से रोग रोग से प्राणियों को दुख और सुगंधित वायु तथा जल से आरोग्य और रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है।
महर्षि दयानंद ने दुर्गंधयुक्त वायु, जल अर्थात वायु जल के प्रदूषण से रोग उत्पत्ति के गंभीर पर्यावरण संकट को 19वीं शताब्दी के आठवें दशक में ही भांप लिया था, प्रदूषण को लेकर महर्षि दयानंद का चिंतन तत्कालीन 19वीं शताब्दी के पर्यावरण व जलवायु विद ही नहीं 20वीं शताब्दी के अग्रिम पर्यावरण वैज्ञानिकों से भी अधिक विकसित समय से पूर्व था। वायु जल के प्रदूषण के निवारणार्थ उन्होंने रामबान उपचार के रूप में यज्ञ को प्रचारित किया।
इस प्रसंग के दूसरे प्रश्न पर विचार करते हैं।
प्रश्र 2 चंदन आदि किसके किसी को लगावे व घृत आदि किसी कोखाने को दे तो बड़ा उपकार हो अग्नि में डालकर व्यर्थ नष्ट करना बुद्धिमानों का काम नहीं।
महर्षि दयानन्द जो तुम पदार्थ विद्या जानते तो कभी ऐसी बात ना कहते। क्योंकि किसी द्रव्य का अभाव नहीं होता। देखो! जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष के नासिक से सुगंध का ग्रहण होता है वैसे दुर्गंध का भी। इतने ही से समझ लो की अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होकर फैल के वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है।
यज्ञ के विषय में इस शंका का महर्षि ने भौतिकी के सिद्धांत के आधार पर ही निराकरण किया है। किसी द्रव्य का अभाव नहीं होता महर्षि का यह कथन फिजिक्स के आधारभूत सिद्धांत या यूं कहे ब्रह्मांड के आधारभूत नियम द्रव्यमान -ऊर्जा संरक्षण की बेहद उम्दा व्याख्या है यज्ञ के संबंध में उसका उत्कृष्ट अनुप्रयोग है।
देव यज्ञ के इस प्रसंग में तीसरे अंतिम प्रश्न पर विचार करते हैं जिसके निवारण के संबंध में महर्षि द्वारा किया गया कथन पूर्व के दो प्रसंगो का सार महर्षि के विज्ञान बोध व उनके विकसित उर्वर मस्तिष्क को दर्शाता है।
प्रश्न 3 जब ऐसा ही है तो केसर, कस्तूरी ,सुगंधित पुष्प और अतर आदि के घर में रखने से सुगंधित वायु होकर सुख कारक होगा।
महर्षि दयानन्द उस सुगंध का वह सामर्थ्य नहीं है कि गृहस्थ वायु को बाहर निकाल कर शुद्ध वायु को प्रवेश करा सके क्योंकि उसमें भेदक शक्ति नहीं है और अग्नि ही का सामर्थ्य है कि उस वायु और दुर्गंधयुक्त पदार्थों को छिन्न -भिन्न और हल्का करके बाहर निकालकर पवित्र वायु का प्रवेश कर देता है।
देव यज्ञ के प्रसंग में उठाई गये समस्त प्रश्न के संबंध में इस तीसरे प्रश्न के समाधान में महर्षि द्वारा किया गये कथन की व्याख्या से पूर्व हम चिमनी प्रभाव को समझते हैं जो महर्षि के कथन से संबंधित है। चिमनी प्रभाव को स्टेक इफेक्ट भी कहते हैं आधुनिक इमारतों में आर्किटेक्ट व इंजीनियर इस चिमनी प्रभाव का विशेष ख्याल रखते हैं।
किसी भी इमारत चाहे व सीमेंट कंक्रीट की हो या घास की झोपड़ी हो उसके अंदर की वायु तथा बाहरी वातावरण की वायु के बीच वायुदाब का एक अंतर होता है। गर्मी व सर्दी के मौसम में बाहरी ठंडी वायु मकान की दीवारों की दरार , निचली खिड़कियों के माध्यम से मकान में प्रवेश करती है मकान के अंदर की गर्म वायु हल्की होकर ऊपर के रोशनदान खिड़की वेंटीलेटर आदि से निकल जाती है। बाहरी वातावरण से मकान के अंदर की यह वायु प्रवाह निरंतर बना रहता है। बाहर की वायु यदि स्वच्छ है तो मकान में स्वच्छ वायु प्रवेश करती है दूषित वायु बाहर निकल जाती है।
महर्षि दयानंद के अनुसार जब घर के अंदर हवन होम या अग्निहोत्र किया जाता है तो यह चिमनी प्रभाव बेहद सक्रिय हो जाता है। हवन करने से घर के अंदर की वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है घर के अंदर निम्न वायुदाब उत्पन्न हो जाता है ऐसे में बाहरी वायु घर में प्रवेश करती है यदि वायु शुद्ध है तो घर के अंदर की वायु शुद्ध हो जाती है दूषित वायु गर्म होकर बाहर निकल जाती है यज्ञ में जिन रोग नाशक सुगंधिकारक आदि चार प्रकार की औषधियां का विधान किया है उनके कारण बाहरी वायु यदि दुष्ट भी है तो उसका भी उपचार हो जाता है और दूषित वायु तो चिमनी प्रभाव के कारण घर से बाहर निकल जाती है ।यज्ञ इस पूरी प्रक्रिया में मॉडरेटर का कार्य करता है।
यज्ञ से आरोग्य यज्ञ से स्वास्थ्य प्रसन्नता का विज्ञान वायुगतिकी ,उष्मागतिकी रसायन शास्त्र व भौतिक शास्त्र के विभिन्न नियमों का मिला जुला परिणाम है महर्षि दयानंद का उन सभी नियमों को लेकर बहुत उच्च कोटि का बोध था।
महर्षि दयानंद का उद्देश्य यज्ञों की परंपरा को पुनर्जीवित करना था महर्षि दयानंद का यह भी एक प्रमुख आग्रह था कि प्रत्येक गृहस्थ को देव यज्ञ अवश्य करना चाहिए यज्ञ को महर्षि दयानंद उत्तम स्वास्थ्य आरोग्य की प्राप्ति वृद्धि का एक महत्वपूर्ण माध्यम मानते थे जो धर्म अर्थ काम मोक्ष की सिद्धि में प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर सहायक बनता है।
सभी बंधुओ को दैनिक यज्ञ अवश्य करना चाहिए। आज के दम घोंटू वातावरण में जहां वायु जल का प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है यज्ञ और भी अधिक प्रासंगिक हो उठता है।
लेखक आर्य सागर खारी