Dr D K Garg ,
भाग 1,
पौराणिक मान्यता : रुद्राभिषेक भगवान रुद्र का अभिषेक करना है . रुद्राभिषेक में शिवलिंग को स्नान कराकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है. सावन के महीने में रुद्र ही सृष्टि का कार्य संभालते हैं, इसलिए इस समय रुद्राभिषेक करना अत्यंत फलदायी होता है. शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है. रुद्राभिषेक महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है।इसके कुछ लाभ इस प्रकार है –
१ रुद्राभिषेक से शिव जी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव करने की शक्ति पा सकते हैं
२ यदि घर में क्लेश रहता है, आर्थिक संकट लंबे समय से झेल रहे हैं तो सावन भर महादेव का अभिषेक गाय के दूध से करें और उनके समक्ष अपनी समस्या को रखकर उसे दूर करने की प्रार्थना करें.
३ अगर आप पंचामृत महादेव का अभिषेक करते हैं तो आपके सभी प्रकार के कष्ट दूर होंगे. अगर आप पूरे सावन ऐसा न कर सकें तो सावन के सोमवार में करें.
४ अकाल मृत्यु से बचाने और वंश वृद्धि करने के लिए गाय के घी से महादेव का अभिषेक करना चाहिए.
५ गन्ने के रस से महादेव का अभिषेक करने पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में कभी धन की कमी नहीं होती.
६ यदि आपको किसी बीमारी ने लंबे समय से घेर रखा है तो आप सावन भर महादेव का शहद से अभिषेक करें.
7यदि सुखी गृहस्थ जीवन की कामना है तो 40 दिनों तक रोज बेलपत्र से महादेव का अभिषेक करें और ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें.
८ यदि सावन में धतूरे के एक लाख फूलों से महादेव का अभिषेक किया जाए तो वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं. 9.जिनको संतान न हो, उनको इससे संतान की प्राप्ति होती है.
10 शत्रुओं के नाश के लिए सरसों के तेल से सावन भर महादेव का अभिषेक करें.
11 अपने परिवार में सुख शांति बनाए रखने के लिए सावन में महादेव का गंगाजल से अभिषेक करें.
12.बौद्धिक और तार्किक क्षमता को बेहतर करने के लिए शक्कर मिश्रित दूध से महादेव का अभिषेक करना चाहिए.
विश्लेषण : उपरोक्त सभी लाभ अंधविस्वास अज्ञानियों , लालची और महत्वाकांछी लोगो के दिमाक की उपज है जैसे लाटरी खरीदने वाले रातो रात करोड़पति होने के चक्कर में लाटरी ,जुआ खेलते है ,लेकिन असली लाभ लॉट्री कंपनी को होता है ,जो मार्केटिंग द्वारा ग्राहकों में लाटरी खरीदने के लिए जोश बनाये रखते है।
मन चाहा काम हो जाना ,घर का कलेश खत्म होना, मृत्यू से बचना,संतान की प्राप्ति आदि लाभ बताने का कोई वैज्ञानिक कारण नही है,सिर्फ कपोल कल्पना है।
इस तरह की बातें मनुष्य को निकम्मा ,आलसी बनाती है। शायद इसी कारण सोने की चिड़िया वाला भारत विश्व के सबसे गरीब देशो में आ गया।
यदि गरीबी मिटानी है तो -परिश्रम करना ,योग्यता बढ़ाना ,मधुर व्यवहार ,ईमानदार होना और आवश्यक पूंजी आदि की आवश्यकता है और कर्म करने से ही उसका फल मिलेगा।
२ यदि बीमारी से बचना है तो आहार ,विहार ,व्यायाम और उचित भोजन जो की ऋतू और शरीर की आवश्यकता के अनुसार हो ,उस पर ध्यान देना चाहिए।
रोग होने पर उसकी चिकित्सा और सावधानी जरुरी है ,जैसे की कोरोना के समय सभी पुजारी मंदिरो को बंद करके कुछ समय के लिए घर में कैद हो गए।
३ ईश्वर अपने ऊपर जल ,फल चढाने ,दूध बर्बाद करने से खुश नहीं होता , ये उसके दिए हुए संसाधनों का दुरूपयोग है , बल्कि जल ,फल ,दूध और बेलपत्र आदि के सेवन से ईश्वर अपनी प्रजा को संतुष्ट देखते हुए प्रसन्न होता है।
वेदों के शिव और रुद्र पूजा–हम प्रतिदिन अपनी सन्ध्या उपासना के अन्तर्गत नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च (यजु० १६/४१) के द्वारा परम पिता का स्मरण करते हैं।
अर्थ- जो मनुष्य सुख को प्राप्त कराने हारे परमेश्वर और सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान् का भी सत्कार कल्याण करने और सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले का भी सत्कार मङ्गलकारी और अत्यन्त मङ्गलस्वरूप पुरुष का भी सत्कार करते हैं,वे कल्याण को प्राप्त होते हैं।
इस मन्त्र में शंभव, मयोभव, शंकर, मयस्कर, शिव, शिवतर शब्द आये हैं जो एक ही परमात्मा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
वेदों में ईश्वर को उनके गुणों और कर्मों के अनुसार बताया है–
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। -यजु० ३/६०
विविध ज्ञान भण्डार, विद्यात्रयी के आगार, सुरक्षित आत्मबल के वर्धक परमात्मा का यजन करें। जिस प्रकार पक जाने पर खरबूजा अपने डण्ठल से स्वतः ही अलग हो जाता है वैसे ही हम इस मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जायें, मोक्ष से न छूटें।
या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।। -यजु० १६/२
हे मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुंचाने वाले दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिए सुखकारी शिक्षक विद्वन्! जो आप की घोर उपद्रव से रहित सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी कल्याणकारिणी देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है उस अत्यन्त सुख प्राप्त करने वाली देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से हम लोगों को आप सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये।
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहीँश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव।। -यजु० १६/५
हे रुद्र रोगनाशक वैद्य! जो मुख्य विद्वानों में प्रसिद्ध सबसे उत्तम कक्षा के वैद्यकशास्त्र को पढ़ाने तथा निदान आदि को जान के रोगों को निवृत्त करनेवाले आप सब सर्प के तुल्य प्राणान्त करनेहारे रोगों को निश्चय से ओषधियों से हटाते हुए अधिक उपदेश करें सो आप जो सब नीच गति को पहुंचाने वाली रोगकारिणी ओषधि वा व्यभिचारिणी स्त्रियां हैं, उनको दूर कीजिये।
या ते रुद्र शिवा तनू: शिवा विश्वाहा भेषजी।
शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे।। -यजु० १६/४९
हे राजा के वैद्य तू जो तेरी कल्याण करने वाली देह वा विस्तारयुक्त नीति देखने में प्रिय ओषधियों के तुल्य रोगनाशक और रोगी को सुखदायी पीड़ा हरने वाली है उससे जीने के लिए सब दिन हम को सुख कर।
उपनिषदों में भी शिव की महिमा निम्न प्रकार से है-
स ब्रह्मा स विष्णु: स रुद्रस्स: शिवस्सोऽक्षरस्स: परम: स्वराट्।
स इन्द्रस्स: कालाग्निस्स चन्द्रमा:।। -कैवल्यो० १/८
वह जगत् का निर्माता, पालनकर्ता, दण्ड देने वाला, कल्याण करने वाला, विनाश को न प्राप्त होने वाला, सर्वोपरि, शासक, ऐश्वर्यवान्, काल का भी काल, शान्ति और प्रकाश देने वाला है।
नचेशिता नैव च तस्य लिंङ्गम्।। -श्वेता० ६/९
उस शिव का कोई नियन्ता नहीं और न उसका कोई लिंग वा निशान है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने भी अपने पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में निराकार शिवादि नामों की व्याख्या इस प्रकार की है–
(रुदिर् अश्रुविमोचने) इस धातु से ‘णिच्’ प्रत्यय होने से ‘रुद्र’ शब्द सिद्ध होता है।’यो रोदयत्यन्यायकारिणो जनान् स रुद्र:’ जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रुलाता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘रुद्र’ है।
(शिवु कल्याणे) इस धातु से ‘शिव’ शब्द सिद्ध होता है। ‘बहुलमेतन्निदर्शनम्।’ इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है।
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