उत्साह, उमंग और भाईचारे का पर्व बैसाखी
सुभाष आनंद – विनायक फीचर्स
बैसाखी पंजाब का महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है, इस पर्व का कृषि से सीधा संबंध है। इस समय फसल पक चुकी होती है और किसान फसल की कटाई की तैयारी में जुटे होते हैं। अपनी-अपनी फसल को पका देखकर किसान झूम उठते हैं और किसानों के मुंह से एक ही गीत सुनाई देता है कि – कनका दी मुक गई राखी ओए जट्टा आई बैसाखी। यह पर्व मूलत: रबी की फसल का स्वागत सूचक पर्व है। पंजाब प्रदेश के एक अन्य त्यौहार लोहड़ी जो 13 जनवरी को मनायी जाती है के पश्चात बैसाखी का पर्व आता अब आग तापने के दिन समाप्त हुए और खेतों में बुवाई, गोडाई, निदाई और सिंचाई का आरंभ हो जाता है। पंजाब का किसान भाग्यशाली भी माना जाता है क्योंकि अब उसे वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। होली के पश्चात फसल की कटाई आरंभ हो जाती है। बैसाखी के आते-आते गेहूं की स्वर्ण बालियां हाथों में पहुंच जाती है। इस अवसर पर पुरुष भांगड़ा और महिलाएं गिद्दा डालकर खुशी प्रगट करते हैं। भांगड़े के बोलों में जहां परिवार और समाज के प्रति सपने है वहीं आश्वासन भी दिए जाते हैं कि चिन्ता न करो। इसी प्रकार गिद्दे में महिलाएं अपने पिता, माता, भाई और पति के प्रति स्नेह प्रगट करती है।
पंजाब में बैसाखी के दिन कई जगहों पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। सार्वजनिक अवकाश होने के कारण स्कूल, कॉलेज बंद होते हैं। खुले मुकाबले, कुश्ती, ट्रेक्टर रेस, तलवारबाजी और लाठी के जौहरों का प्रदर्शन भी इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण होता है। बैसाखी एक प्राचीन ऐतिहासिक त्यौहार है। कहा जाता है कि इस दिन पांडवों ने वनवास के दौरान द्रोपदी की स्नान इच्छा को पूर्ण किया था और पंजौर (हरियाणा) में धारा मंजल सरोवर का निर्माण किया था। ऐसा भी कहना है कि बैसाखी का सबसे पहला मेला उल्ला निवासी भाई पटरो परमहंस ने गुरु अमरदास की आज्ञा से आरंभ किया था। राष्ट्रीय एकता के प्रतीक पर्व बैसाखी का अपना महत्व है। 1677 की बैसाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में पांच प्यारो को अमृत पान करवाकर खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन सिखों के दसवें गुरु ने नस्ल, जाति वर्ण, वेशभूषा के भेदभाव को मिटाकर खालसा पंथ के रूप में सुदृढ़ कौमी एकता की आधारशिला रखी थी।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन जलियां वाले बाग में जनरल डायर ने सभा में जुटे हजारों निर्दोंष लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग करके मौत के घाट उतारा था। इस दिन लोग बैसाखी का मेला मना रहे थे। लोगों में बड़ा जोश और उत्साह था। दरअसल इसी मेले में हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सभी धर्मों के लोग एक स्वर में अंग्रेजों द्वारा बनाये काले कानून रोलेट एक्ट का विरोध कर रहे थे। ऐसा भी माना जाता है कि अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य भी बैसाखी के शुभ दिन शुरु हुआ था। पंजाब में लोहड़ी 13 जनवरी और बैसाखी 13 अप्रैल को मनायी जाती है।
इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना लग्न-मुहूर्त के आरंभ किया जा सकता है। उत्साह, उमंग आपसी भाईचारे और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक यह त्यौहार पुरानी यादों को ताजा करता चला आ रहा है। इन यादों से पंजाबी नौजवान प्रेरणा लेकर अपने कर्तव्य के लिए कमर कस लेता है और निर्भीक होकर कठिनाइयों का सामना करने के लिए आगे चल पड़ता है। (विनायक फीचर्स)
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