खराब जीवनशैली से किडनी हो रही फेल, ट्रांसप्लांट से मरीजों को मिल रही नई जिंदगीः डॉ. विजय
अलीगढ़ 12 अप्रैल 2024। भारत में हर साल करीब 12 हजार से अधिक किडनी ट्रांसप्लांट हो रहे हैं। उसकी सबसे बड़ी वजह खराब जीवनशैली है। जिसके चलते अधिकांश लोग किडनी की समस्या से ग्रसित हैं। किडनी की कार्यक्षमता जब केवल 10 प्रतिशत रह जाती है, तो उस अवस्था को किडनी फैल्योर कहते हैं और ऐसे में मरीजों के पास सिर्फ डायलिसिस या प्रत्यारोपण का ही रास्ता बचता है। ऐसे में जेपी हॉस्पीटल द्वारा किडनी प्रत्यारोपण अत्याधुनिक पद्धति से किया जा रहा है। उक्त जानकारी हॉस्पीटल के डॉ. विजय कुमार सिन्हा, डायरेक्टर डिपार्टमेंट ऑफ़ नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट ने मैरिस रोड स्थित एक होटल में पत्रकार वार्ता के दौरान दी।
डॉ. विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण की अत्याधुनिक पद्धति में डोनर की किडनी को दूरबीन द्वारा शरीर से हटाया जाता है, जिससे डोनर को बहुत ही कम तकलीफ होती है और उसे हॉस्पिटल से जल्द छुट्टी मिल जाती है। उन्होंने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट एक सफल प्रक्रिया है और ट्रांसप्लांट की मदद से मरीजों को नई जिंदगी दी जाती है। लेकिन अभी भी यह देखा गया है की लोगों के बीच किडनी दान करने को लेकर जागरूकता की बहुत कमी है, जिसके चलते बहुत लोग अपनी जान दांव पे लगा देते है।
डॉ. विजय कुमाार सिन्हा ने बताया कि यहां डोनर विथ मल्टीपल वैसल्स (किडनी में अधिक नसों का होना), बच्चों की किडनी का प्रत्यारोपण, अनमैच्ड ब्लड ग्रुप के बीच प्रत्यारोपण (ए.बी.ओ. इंकंपैटिबल ) एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में असंतुलन वाले मरीजों की किडनी का भी सफल प्रत्यारोपण किया गया है। खास बात यह है कि टीम ने क्रांस मैच्ड पॉजीटिव प्रत्यारोपण, “ए.बी.ओ. इंकंपैटिबल ट्रांसप्लांटेशन” के साथ-साथ एक रोगी का दूसरी या तीसरी बार भी सफल प्रत्यारोपण किया है। जेपी हॉस्पीटल द्वारा अब तक पिछले आठ वर्षों में 1000 से अधिक सफल किडनी प्रत्यारोपण किया गया है।
डॉ. विजय कुमार सिन्हा ने भी क्रोनिक किडनी फैल्योर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया की “वर्तमान का चिकित्सकीय शोध यह बताता है कि किडनी की बीमारी के मुख्य कारणों में मधुमेह, रक्तचाप, नेफ्रीटाइस, बिना चिकत्सक के सलाह के पैन किलर एवं अन्य दवाइयों का सेवन करना है। जब किडनी की बीमारी लाईलाज अवस्था में पहुंचे, तो मरीज को प्रत्यारोपण करा लेना चाहिए। क्योंकि इससे जीवन भर डायलिसिस कराने से मरीज को मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही मरीज को इससे कई और लाभ भी मिलते हैं। आर्थिक रूप से मरीज को राहत मिलती है, क्योंकि जितनी राशि एक साल में डायलिसिस कराने में मरीज खर्च करते हैं, करीब उतने पैसे में पूरा ट्रांसप्लांट हो जाता है। प्रत्यारोपण के बाद मरीज एक स्वस्थ व्यक्ति की तरह अपनी दिनचर्या पूरी कर सकता है। बच्चों के मामले में यह और भी अधिक लाभकारी है क्योंकि प्रत्योरण के बाद बच्चों के शरीर का विकास सही तरीके से होता है। इस दौरान सुनील नेहरा, रामप्रकाश मुखिया आदि भी मौजूद रहे।
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