आज़ादी से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य उस समय के असम और बंगाल के भाग हुआ करते थे। जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग की नीतियों के चलते देश का विभाजन हुआ तो पूर्वी बंगाल पूर्वी पाकिस्तान के नाम से पाकिस्तान के साथ चला गया। मजहब के आधार पर हुए इस विभाजन ने देश को उस समय बड़ी गहरी चोट पहुंचाई थी। देश जब स्वाधीन हो गया तो उसके पश्चात असम को भी छोटे-छोटे सात राज्यों में विभाजित कर दिया गया । ये राज्य पूरब की सात बहनों के नाम से भी जाने जाते हैं। तत्कालीन असम का सारा क्षेत्र ही पहाड़ी था। इसलिए राज्यों के सुनियोजित विकास के दृष्टिकोण से इस राज्य को छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित करना कहीं तक उचित ही था। स्थानीय लोगों की भी उस समय यही इच्छा थी कि सुनियोजित विकास के दृष्टिकोण से राज्य को कई भागों में विभाजित कर दिया जाए। नगा लोगों ने नागालैंड की मांग की तो उनकी मांग को स्वीकार करते हुए नागालैंड बनाया गया। जबकि सिक्किम 1947 में एक स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में था। जिसे बाद में इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में भारत के साथ मिलाया और उसे सिक्किम के नाम से ही एक अलग राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
आजादी से पहले का असम भारतवर्ष का एक सीमावर्ती राज्य था। यह राज्य भारत की राजधानी दिल्ली से दूर भी पड़ता है। इसलिए भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर का विशेष महत्व है। इसके उत्तर में चीन हमारा परंपरागत शत्रु रहा है जिसने 1962 के युद्ध में पूर्वोत्तर के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश का बहुत बड़ा भाग हमसे जबरन छीन लिया था। जिस पर आज तक विवाद है। आजादी के बाद जब पूर्वी पाकिस्तान और बाद में 1971 में बांग्लादेश अस्तित्व में आया तो मुस्लिम बहुल होने के कारण यह देश भी भारत से शत्रुता मानता आया है। यही कारण है कि बांग्लादेश अपने पड़ोसी भारतीय भूभागों पर जनसंख्या की आंकड़े गड़बड़ाकर भारत के लिए कई प्रकार की समस्याएं खड़ी करता रहा है।
तीन राज्यों के चुनाव परिणाम
इसी पूर्वोत्तर के छोटे 3 राज्यों ने विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को सरकार बनाने के लिए बहुमत देकर यह साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी का जलवा अभी बरकरार है और यदि उनके नेतृत्व में भाजपा इस आंधी को बनाए रखने में सफल हुई तो 2024 के आम चुनावों में भी शानदार वापसी के साथ आने से मोदी को कोई रोक नहीं पाएगा। इन राज्यों के चुनाव परिणामों ने श्री मोदी के बारे में यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके रथ को इधर कोई रोकने वाला नहीं है। निश्चित रूप से देश के दूसरे प्रान्तों पर भी इन प्रदेशों के चुनाव के परिणामों का प्रभाव पड़ेगा।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री खड़गे ने इन तीनों राज्यों के चुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि ये तीनों छोटे राज्य हैं और इनके चुनाव परिणामों से कोई प्रभाव हमारी राजनीति पर नहीं पड़ने वाला । ऐसा कहकर भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपना मजाक ही उड़वाया है। यदि चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में होते तो शायद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ऐसी टिप्पणी नहीं आती।
पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में से त्रिपुरा और नगालैंड में भाजपा गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहा है। मेघालय में एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। चुनाव परिणामों के आने के पश्चात भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि यहां पर वह एनपीपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। इस प्रकार तीनों ही राज्यों में भाजपा और उसके समर्थक दलों की सरकार बनना अब निश्चित हो गया है। कांग्रेस की इन चुनावों में सबसे अधिक फजीहत हुई है। कुल मिलाकर भाजपा इस समय पूर्वोत्तर में अपने किलो को और अपने सम्मान को बचाने में सफल रही है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि भाजपा के शासनकाल में और विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस प्रकार की नीतियां पूर्वोत्तर के विकास को लेकर बनाई गई हैं, उनसे यहां की जनता लाभान्वित हुई है । तभी तो उसने प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आस्था व्यक्त करते हुए भाजपा को एक बार फिर सरकार बनाने के लिए बहुमत दिया है।
राहुल गांधी के बारे में
कांग्रेस राहुल गांधी के रहते इस बात के लिए अभिशप्त है कि वह कभी भी आत्मावलोकन नहीं करेगी और देश की जनता में से एक बड़े वर्ग की इस अपेक्षा पर खरा उतरने का प्रयास नहीं करेगी कि वह सरकार न भी बना पाए तो एक सशक्त विपक्ष की भूमिका तो निभा सके? जिस प्रकार की भाषणबाजी और बयान बाजी में राहुल गांधी व्यस्त रहते हैं उससे उनकी पप्पू की छवि और गहरी होती जा रही है। उन्होंने अपनी पार्टी का नेतृत्व यद्यपि इस समय श्री खड़गे को दे रखा है ,पर वास्तव में खड़गे भी ऐसे ओजस्वी वक्ता नहीं हैं, जिसकी खोज इस समय पार्टी को है। पार्टी इस समय ‘ओज’ की ‘खोज’ में है। जबकि भाजपा के सितारे इस समय बुलंद हैं और वह ओज व तेज से भरी हुई है।
जिस समय किसी व्यक्ति का ओज व तेज भरा होता है, उस समय उसकी प्रतिकूल परिस्थितियां भी उसके अनुकूल हो जाती हैं।
भाजपा के लिए खतरनाक संकेत
यही वह कारण है जिसके चलते भाजपा अभी हर प्रांत में सफलता प्राप्त करती जा रही है। यद्यपि राजनीति में यह सदा स्थाई नहीं रहता है। समय आने पर यह ओज व तेज की स्थिति भंग हो जाती है। कभी ऐसी ही स्थिति कांग्रेस की हुआ करती थी। पर जब पार्टी व्यक्ति केंद्रित हो गई तो वह अपने उज्जवल तेज की रक्षा नहीं कर पाई। भाजपा का कार्यकर्ता इस समय केवल इस बात पर प्रसन्न है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उसे सर्वत्र विजय प्राप्त हो रही है, पर वास्तव में उसकी कोई बूझ नहीं है। यही स्थिति कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की कभी बनी थी, जब पार्टी इंदिरा गांधी जैसे करिश्माई नेतृत्व के हाथों में केंद्रित होकर रह गई थी। तब प्रत्येक जीत के लिए कांग्रेस उन्हीं की ओर देखा करती थी । यदि आज यह स्थिति भाजपा में प्रधानमंत्री मोदी की बन गई है तो यह निश्चय ही भाजपा के लिए भी खतरनाक होगी।
हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि अबसे मात्र सात आठ वर्ष पहले तक पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस और लेफ्ट का ही एकाधिकार था। पार्टी की एक ढर्रे पर चलने की परंपरागत नीतियों के कारण और विकास पर अधिक ध्यान न देकर वोट बैंक बनाने की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के चलते पूर्वोत्तर उसके हाथ से निकल गया। अरुणाचल जैसे सीमावर्ती राज्यों के लिए यह और भी अधिक विचारणीय हो गया था कि कांग्रेस के शासनकाल में सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास इसलिए नहीं किया जाता था कि यदि वहां पर विकास कार्य करके सड़क आदि का निर्माण करवाया तो इससे युद्ध जैसी स्थितियों मैं पड़ोसी शत्रु को भीतर तक आने में सुविधा प्राप्त होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने चिंतन की धारा बदलते हुए यह निश्चय किया कि पूर्वोत्तर के सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास कार्यों पर पूरा ध्यान दिया जाए और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाए कि हमारी सेना और अर्धसैनिक बल अत्यधिक सुविधा के साथ सीमा तक पहुंचने में अपने आप को सहज अनुभव करें। इससे लोगों का ध्यान कांग्रेस सरकार भाजपा की ओर गया।
त्रिपुरा में भाजपा का प्रदर्शन
त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी ने IPFT के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, और 60 में से 54 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। कांग्रेस ने इस प्रांत में लेफ्ट के साथ गठबंधन किया। आईपीएफटी के यहां पर 6 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इसी प्रकार लेफ्ट ने यहां पर 43 सीट लेकर कांग्रेस को मात्र 13 सीटें दी और कांग्रेस ने 13 सीटों पर ही संतोष भी कर लिया। कभी राष्ट्रव्यापी पार्टी का सम्मान प्राप्त करने वाली कांग्रेस इस समय छोटे-छोटे राज्यों में भी दूसरे दलों के रहने पर निर्भर होकर रह गई है। कांग्रेस की इस दयनीय अवस्था का लाभ उठाकर भाजपा यहां पर अपनी सरकार दोबारा बनाने में सफल हो गई है। कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की, जबकि लेफ्ट के खाते में 11 सीटें आईं।
नागालैंड की स्थिति
जहां तक नागालैंड की बात है तो यहां की कुल सीटों की संख्या भी 60 है, पर इस समय यहां पर 59 सीटों पर चुनाव हुए।
इस बार नगालैंड की 59 सीटों पर चुनाव हुए। यहां चुनाव पूर्व भारतीय जनता पार्टी और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) का गठबंधन हुआ। इस चुनावी गठबंधन के अंतर्गत दोनों दलों ने यह निश्चय किया कि एनडीपीपी 40 और भाजपा 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। कांग्रेस और एनपीएफ ने यहां पर अलग-अलग चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने 23 और एनपीएफ ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।
2018 के चुनावों की भांति इस बार भी यहां भाजपा गठबंधन ने बड़ी जीत प्राप्त की है। भाजपा के 20 में से 13 उम्मीदवार चुनाव जीत गए। वहीं, एनडीपीपी के 40 में से 25 प्रत्याशी जीत कर आए हैं। कांग्रेस के लिए इससे बुरी खबर कोई नहीं हो सकती कि यह पार्टी यहां पर एक भी सीट नहीं जीत पाई।
जहां तक मेघालय की बात है तो यहां पर भी कुल 60 सीटों में से 59 सीटों पर चुनाव हुए। यहां पर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ है। एनपीपी यहां पर सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी है। उसे 26 सीट प्राप्त हुई है। जबकि भाजपा को 3 सीट मिल गई है। इस प्रकार अन्य निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर भाजपा एनपीपी के साथ मिलकर यहां पर सरकार बनाने जा रही है।
कांग्रेस और धर्मांतरण
कांग्रेस ने जिस प्रकार यहां पर धर्मांतरण को खुली छूट दी थी और जिस प्रकार उसके नेतृत्व में पूर्वोत्तर का मूलभूत सामाजिक ढांचा प्रभावित हुआ था उसके चलते देश को भारी हानि हुई थी।
कॉन्ग्रेस हिंदुओं के धर्मांतरण को भी अपने लिए एक राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करती थी उसकी सोच होती थी कि विदेशी पैसे से यहां के लोगों का विकास होता रहे और उसे विकास कार्यों पर कोई विशेष खर्च नहीं करना पड़े। जबकि विदेशी मिशनरी धर्मांतरण के समय लोगों को चाहे थोड़ा बहुत आर्थिक सहयोग कर देती हों पर स्थाई रूप से वे सहयोग करती रहेंगी, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती। वे एक बार लोगों की गरीबी और बदहाली का लाभ उठाकर उन्हें धर्मांतरित तो कर देती हैं पर वास्तव में उनके लिए ऐसा कुछ नहीं कर पातीं जो उनके जीवन में खुशहाली भरती। भाजपा ने कांग्रेस के इस कारनामे का भंडाफोड़ किया और लोगों को आश्वासन दिलाया कि वह उनके विकास कार्यों पर ध्यान देगी। यद्यपि घर वापसी के बिंदु पर भाजपा अडिग रही।
प्रधानमंत्री मोदी और देश के गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के लिए एक ऐसे कुशल खिलाड़ी हैं जो अपने विरोधी की हर छोटी मोटी बड़ी कमजोरी का पूरा लाभ उठाने में सफल रहते हैं। पूर्वोत्तर से कांग्रेस का सफाया करने के लिए उन्होंने जमीनी स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से महत्वपूर्ण कार्य किया। जिन पहाड़ी क्षेत्रों में भाजपा के कार्यकर्ताओं का मिन्नतुल्लाह वहां पर वह अपनी पकड़ बनाने में सफल हुई। जब भाजपा ने पकड़ अभियान में जुटी हुई थी तब कांग्रेस के पप्पू नेता क्या कर रहे थे। हर समय विदेशी उड़ान के लिए लालायित रहने वाले राहुल गांधी के लिए उस समय विदेशी उड़ानों का मोह छोड़कर जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता थी। टी शर्ट पहन कर भारत जोड़ो अभियान पर निकले राहुल गांधी की यात्रा का यही परिणाम हुआ है कि पूर्वोत्तर के लोगों ने उनसे कह दिया है कि बाकी बातें बाद में होंगी पहले आप पूर्वोत्तर छोड़ो।
निश्चय ही कांग्रेस को इस समय इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि वह ‘भारत जोड़ो’ की बात करते-करते ‘पूर्वोत्तर छोड़ो’ तक कैसे पहुंच गई ?
जब हम इस प्रश्न पर आते हैं तो पता चलता है कि कांग्रेस ने पूर्वोत्तर में ईसाई मिशनरियों को जिस प्रकार हिंदुओं के धर्मांतरण की खुली छूट प्रदान की । उसके चलते यहां के इतिहास को भुलाने का गंभीर अपराध किया गया। इतिहास पर कलम चढ़ाने की कांग्रेस की इस घातक नीति ने पूर्वोत्तर में ईसाइयों की आबादी को खतरनाक स्तर तक पहुंचने में सहायता प्रदान की । जिससे यहां के मूल निवासियों के आर्य राजाओं के इतिहास से उनका संपर्क काट दिया गया । असम एक ऐसा प्रांत रहा है जो कभी भी विदेशी आक्रमणकारियों के अधीन नहीं रहा। इसकी गौरवपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत को कांग्रेस ने जिस प्रकार अंग्रेज ईसाइयों के हाथों में नीलाम होने दिया वह देश के प्रति किया गया एक गंभीर अपराध था। जिसकी सजा उसे मिली है । अब प्रधानमंत्री श्री मोदी को देश की उस अपेक्षा पर भी खरा उतरने की आवश्यकता है जिसके चलते उन्हें पूर्वोत्तर के तीन राज्यों पर शासन करने का अवसर प्राप्त हुआ है । वह अपेक्षा केवल एक ही है कि यहां के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने का प्रयास अब होना ही चाहिए।
सोनिया गांधी और मदर टेरेसा
पूरा देश यह भली प्रकार जानता है कि सोनिया के आशीर्वाद से ही पूर्वोत्तर भारत में हिंदुओं के धर्मांतरण के कार्य को सबसे अधिक मदर टेरेसा ने संपन्न कराया । मदर टेरेसा भारत के लिए एक विषकन्या थी , लेकिन मूर्खों ने उसे ” मदर ” की उपाधि से सम्मानित कराया ।आज वहां की अधिकांश हिंदू जनसंख्या का धर्मांतरण करके ईसाईकरण कर दिया गया है। सोनिया ने ईसाईकरण की इस प्रक्रिया को समस्या का एक समाधान माना , अर्थात न् हिंदू रहेगा और न कोई समस्या खड़ी होगी ।
जब देश स्वतंत्र हुआ था तो उस समय भारत में एंग्लो इंडियन लोगों की संख्या कुल जनसंख्या के आधा प्रतिशत थी । स्मरण रहे कि एंग्लो इंडियन ईसाई न होकर वह लोग माने जाते थे जो अंग्रेजों की भारतीय रखैल महिलाओं से उत्पन्न संतानें थीं । उनको भारत की संसद में स्थाई रूप से सीट दिलाने के लिए दो एंग्लो इंडियन मनोनीत करने की व्यवस्था अंग्रेज जाते-जाते करा गए । जिससे कि उनकी संतति को बाद में भी किसी प्रकार की कोई असुविधा या कष्ट न हो। स्वतंत्र भारत में ईसाइयों की जनसंख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी। आज यह जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या के 4 – 5% हो गई है । इसमें मदर टेरेसा और सोनिया गांधी का विशेष योगदान रहा । अब कई सीटें ऐसी हो चुकी हैं जहां से ईसाई के अतिरिक्त कोई अन्य धर्मावलंबी चुनकर संसद में आ ही नहीं सकता।
पूर्वोत्तर की लगभग 12 सीटों पर ईसाई समुदाय का नियंत्रण हो चुका है । यही कारण है कि पूर्वोत्तर में अलगाववाद की बातें बार-बार सुनने को मिलती हैं। ईसाई भारत की इस भूमि पर अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके हैं । इसमें नागालैंड , अरुणाचल प्रदेश , मिजोरम आदि क्षेत्र सम्मिलित है । जिन्हें वह ‘ईसालैंड ‘ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। जिस महिला ने यहां पर अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए ईसाईकरण की प्रक्रिया को तेज किया उसी को भारत ने सोनिया की कृपा से भारत रत्न देकर सम्मानित किया ।’
प्रधानमंत्री श्री मोदी से अपेक्षा है कि पूर्वोत्तर में सोनिया गांधी और मदर टेरेसा ने जो कुछ किया है उसे पलटकर इतिहास की एक परिक्रमा पूर्ण की जाए।
दिनांक : 05/03/2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत