असफलता की इबारत लिखती केजरीवाल की शिक्षा नीति
ललित गर्ग-
देश ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने अपने शिक्षा मॉडल को अनुकरणीय बताया एवं अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में बहुप्रचारित किया लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में इसकी पोल खुल गयी। न्यायालय ने दिल्ली की स्कूलों की स्थिति अत्यंत चिन्तनीय, दुखद एवं अपर्याप्त बताते हुए दिल्ली के शिक्षा सचिव को फटकार लगायी है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता एनजीओ ‘सोशल ज्यूरिस्ट, ए सिविल राइट्स ग्रुप’ का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील अशोक अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत इस विषयक एक तीखी रिपोर्ट पर संज्ञान, सुनवाई एवं जांच में पाया कि इन स्कूलों में कई विसंगतियों हैं जैसे टूटी हुई डेस्क, कक्षाओं की गंभीर कमी, पीने के स्वच्छ पानी का अभाव, अपर्याप्त किताबें और लेखन सामग्री। कई स्कूलें टिन बिल्डिंग में चल रही है एक स्कूल में 1,800 लड़कियां और 1,800 लड़के डबल शिफ्ट में पढ़ते हैं। कुछ कक्षाओं में दो-दो कक्षाओं के छात्र एक साथ बैठकर पढ़ते हैं। जब शिक्षा सचिव ने बदहाली की पुष्टि की तो जस्टिस मनमोहन ने कहा कि आपकी इसी लापरवाही की वजह से तिहाड़ जेल में समस्या और भीड़ दोनों बढ़ी है। तिहाड़ जेल में दस हजार कैदियों की क्षमता है, लेकिन वहां 23 हजार हैं। वजह अशिक्षा एवं दूषित शिक्षा है जिससे युवा पीढ़ी का भविष्य को बर्बाद हो रहा है। केजरीवाल सरकार ने शराब घोटाला ही नहीं, शिक्षा घोटाला भी किया है।
केजरीवाल सरकार ने अपनी उपलब्धियों के नाम पर दो उपक्रम प्रमुखता से गिनाये हैं एक शिक्षा एवं दूसरा मौहल्ला क्लीनिक। दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा एवं दिशा न केवल बिगड़ी है, बल्कि रसातन में चली गयी है। मौहल्ला क्लीनिकों की स्थिति भी दयनीय है। दिल्ली से शुरु हुई उन्नत शिक्षा की पहल को देश के अन्य प्रांतों ही नहीं, बल्कि दुनिया के अनुकरणीय बताने वाले केजरीवाल ने शिक्षा केे बुनियाद क्षेत्र को भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया। शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्र को राजनीतिक नजरिये से देखना एवं उन्नत इंसानों को गढ़ने की इस प्रयोगशाला से खिलवाड़ करना, शर्मनाक घटनाक्रम है। आप की सरकार ने साल 2015 से साल 2024 के बीच ‘शिक्षा सबसे पहले या एजूकेशन फ़र्स्ट’ जैसा आकर्षक नारा देकर दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में नई जान फूंकने के नाम पर दिखावा किया। कुछ स्कूलों को अत्याधुनिक बनाकर दिल्ली की समस्त स्कूलों का कायाकल्प करने की बात करने वाली केजरीवाल सरकार ने करोड़ों रूपये विज्ञापनों पर खर्च किये।
आप सरकार ने शिक्षा मंत्रालय संभाले उनके नायब/उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में शिक्षा के लिए अधिकतम राशि का आवंटन किया, शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की नई तकनीक और विद्यार्थियों के वास्ते नए पाठ्यक्रम लागू किए तथा स्कूलों का दम तोड़ता बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए जी खोल कर धन मुहैया कराया। लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हुई दिल्ली की स्कूलों की दर्दनाक स्थितियां बताती है कि वह सरकारी खजाना अगर स्कूलों में खर्च होता तो स्कूलों की यह दुर्दशा देखने को नहीं मिलती। स्पष्ट है स्कूलों के नाम पर आवंटित बजट में बड़ा घोटाला हुआ है, उसकी स्वतंत्र जांच होनी ही चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय में ही एक अन्य याचिका में यह तथ्य भी सामने आया कि दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले छह लाख से ज्यादा बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मिलने वाली सुविधाएं जैसे यूनिफॉर्म, शिक्षण सामग्री इत्यादि नहीं मिल पा रही हैं। याचिका में कहा गया है कि राइट ऑफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट, दिल्ली राइट ऑफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी रुल्स और दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट के नियमों के मुताबिक बच्चों को शिक्षण सत्र के शुरू में ही उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म, शिक्षण सामग्री इत्यादि सुविधाएं मिलनी चाहिए। याचिका में कहा गया है दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले 2,69,488 छात्र और दिल्ली नगर निगम में पढ़ने वाले 3,83,203 छात्र शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मिलने वाले वैधानिक सुविधाओं से वंचित हैं। याचिका में 14 नवंबर 2023 के ऑडिट मेमो का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया है कि 2016-17 से शिक्षण सत्र से दिल्ली नगर निगम के छात्रों को वैधानिक वित्तीय सुविधा नहीं दी जाती हैं। विडम्बना देखिये दुनिया के लिये आदर्श मॉडल के रूप में दिल्ली की सरकारी स्कूलों को प्रचारित करने वाली स्कूलों की स्थिति कितनी खतरनाक हैं। स्कूल में एक ही कमरे को साइंस लैब, आर्ट रूम और लाइब्रेरी के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। एक कक्षा में 70 से 80 बच्चे हैं। दोनों पालियों में लगभग 4 हजार छात्र-छात्राएं यहां पढ़ते हैं। स्कूल में कुल 15 कमरे हैं, लेकिन अधिकारिक तौर पर 7 साल पहले इस स्कूल को असुरक्षित घोषित किया गया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस शिक्षा मॉडल की जिसका डंका वे दिन रात बजाते हैं। यहां तक कि न्यूयार्क टाइम्स में भी दिल्ली के शिक्षा मॉडल की तारीफों के पुल बांधते हुए लेख लिखे जाते हैं। उस शिक्षा मॉडल का यथार्थ बहुत भद्दा एवं खौफनाक है। शिक्षा के नाम पर एक बदनुमा दाग है। जिसकी झलक प्रजा फाउंडेशन एनजीओ की व्हाइट पेपर रिपोर्ट में मिलती है। यह रिपोर्ट केजरीवाल के दावे को मुंह चिढ़ा रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद से दिल्ली के सरकारी स्कूल में ड्रॉप आउट रेट बढ़ गया। साल 2014-15 में सरकारी स्कूल में ड्रॉप आउट रेट जहां 2.9 प्रतिशत था, दो साल के भीतर 2016-17 तक आते आते ड्रॉप आउट रेट 3.4 प्रतिशत हो गया। दिल्ली ईकोनॉमिक सर्वे 2021-22 में दिए गए आकड़े मुख्यमंत्री के प्रचारतंत्र से वादा खिलाफी कर रहे हैं। ये आंकड़े सरकार पर सवाल उठाते हुए बता रहे हैं कि अगर शिक्षा व्यवस्था सुधर रही है तो साल दर साल सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या घट क्यों रही है। ईकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक 2014-15 में सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 15.42 लाख थी जो घटते-घटते 2017-18 में 14.81 लाख रह गई।
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर जो रिपोर्ट जारी किया उसमें स्कूलों में प्रिंसिपल की कमी, ड्रॉप आउट, छात्र-शिक्षक अनुपात जैसी समस्या सामने उभर कर आई। इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के छात्रों में सीखने की क्षमता राष्ट्रीय औसत से कम है। सरकारी स्कूल में दाखिले के विपरीत प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि आई है। साल 2014-15 में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 13.47 लाख थी जो 2020-21 में बढ़ कर 17.82 लाख हो गई। यानी 2014-15 से लेकर 2020-21 तक 6 साल के अंतराल में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में जहां 4 लाख 85 की वृद्धि हुई, वहीं सरकारी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में महज 78 हजार की वृद्धि हुई। आप की 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से लगातार जबरदस्त जीत में सरकारी विद्यालय प्रणाली में सुधार के झूठे एवं भ्रामक दावों का ज़बरदस्त हाथ है, लेकिन अब इसकी सच्चाई धीरे-धीरे परत-दर-परत खुलने लगी है। आजादी का अमृत काल में दिल्ली की सरकारी स्कूलों का गिरता शिक्षा स्तर एवं बुनियादी सुविधाओं का अभाव आप सरकार पर एक बदनुमा दाग है, एक बड़ी नाकामी का द्योतक है। प्रश्न है कि किसे फिक्र है हमारी शिक्षा की? प्रश्न यह भी है कि झूठे प्रचार एवं दावों के बल पर आप सरकार कब तक दिल्ली की भोली-भाली जनता को गुमराह करती रहेगी? स्कूली शिक्षा में ‘क्रांति’ लाने के आप के दावे बच्चों के भविष्य से कब तक खिलवाड करते रहेंगे?