आज 25 जून है । आज ही के दिन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में पहली बार आपातकाल की घोषणा की थी ।आपातकाल लगाने का एकमात्र कारण यह था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जगमोहन सिन्हा ने राज नारायण की एक चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए 1971 में इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुने जाने को अवैध ,अनैतिक और असंवैधानिक घोषित करते हुए उनको अगले 6 साल तक चुनाव न लड़ने का आदेश दिया था । यह घटना 12 जून 1975 की है। इसके बाद विपक्षी दलों ने जन आंदोलन प्रारंभ कर दिया । जिससे सारा देश आंदोलित हो उठा । 25 जून को जयप्रकाश नारायण ने देश की सेना और अर्धसैनिक बलों से अपील की कि वह इस असंवैधानिक सरकार के आदेशों को न मानें। इससे इंदिरा गांधी घबरा गई । उन्होंने रात्रि में जबरदस्ती तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर दबाव बनाकर देश में इमरजेंसी की घोषणा की ।
अगले दिन ही लगभग 15000 विपक्षी नेताओं को उठा कर जेल में डाल दिया गया। जेलों में रहे पत्रकारों , विधि विशेषज्ञ, जजों , विपक्षी नेताओं ,महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार किए गए। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी के सदस्य रहे चंद्रशेखर को भी उठा कर जेल में डाल दिया था। क्योंकि वह भी इंदिरा गांधी के तानाशाही दृष्टिकोण का विरोध कर रहे थे। 21 माह तक जेल में पड़े इन हजारों लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए गए। उस समय के लगभग सभी विपक्षी दलों के सांसद और राज्य विधानमंडलों में विपक्षी विधायको को भी उठा कर जेल में डाल दिया गया था । सारे देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार स्थगित कर दिए गए थे। मीडिया पर एक सेंसर बोर्ड बैठा दिया था , जिससे खबरें छनकर ही प्रकाशित होती थी। इमरजेंसी का यह काल 21 मार्च 1977 तक चला। उसके बाद इंदिरा गांधी ने देश में चुनाव कराए तो वह स्वयं भी रायबरेली से चुनाव हार गई। तब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी ।उसे देश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया । उसके बाद 25 जून 1977 से यह दिन काला दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता रहा है।आपातकाल के दौरान ग्वालियर की महारानी विजय राजे सिंधिया और जयपुर की महारानी गायत्री देवी सहित मृणाल गोरे व कई अन्य महिलाओं को जेल में डाला गया । उनके साथ बहुत ही पाशविक व्यवहार किया गया । उनमें से कईयों को पागलों के बीच में रखा गया तो कईयों के साथ अश्लील घटनाएं करवाई गई। यह कार्य उस प्रधानमंत्री ने किया जो स्वयं महिला थीं । राजनेताओं को 6:00 बजे काल कोठरी में डाल दिया जाता था । इसके अलावा कई महीने बाद तक भी नेताओं के परिजनों को यह ज्ञात नहीं हो पाया था कि उनको कहां डाल दिया गया है ? राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के इस निर्णय से असहमति व्यक्त की थी । वह इतने दुखी हुए थे कि कुछ समय बाद ही संसार से चले गए थे।
इस काल में जितने भर भी लोग मारे गए या बलिदान हुए , उन सबको आज हम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।