डॉ डी के गर्ग
(साभार -आर्य मनतव्य वेबसाइट)
श्रीकृष्ण के चमत्कार–इस प्रसंग में श्रीकृष्ण के चमत्कार को दर्शाने के लिए भी मनगढ़ंत बात गढ़ी हैं।यदि कृष्ण ने साडी देकर नग्न होने से बचाया इसका मतलब ये हुआ की द्रौपदी अर्धनग्न हो चुकी थी ? तभी क्यों नहीं बचा लिया ? या फिर जब दुःशासन बाल पकड़कर जबरदस्ती द्रौपदी को खींच रहा था और द्रौपदी कृष्ण को आवाज़ लगा बुला रही थी ,तब ही क्यों नहीं कृष्ण ने बचा लिया ? क्या कृष्ण जी इस बात का इन्तेजार कर रहे थे की कब दुःशासन साडी खींचे और मैं चमत्कार दिखाऊ ? क्या कृष्ण द्रौपदी की पहली आवाज़ सुनकर ही नहीं बचा सकते थे ? यदि पहली आवाज़ पर ही बचा लिया होता तो इस घटना में जो मिलावट करने की कोशिश की वो होती ही नहीं।
वनपर्व मेँ जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार जब श्रीकृष्ण जंगल मेँ पांडवोँ से मिलने गए थे। वहाँ द्युतसभा मेँ जो कुछ भी हुआ श्रीकृष्ण को विस्तार से बताया गया और वे उससे अनभिज्ञ है। उन्होने ये भी कहा की अगर वेँ वहाँ मौजुद होते तो युधिष्ठिर को ऐसा कभी नही करने देतेँ। युधिष्ठिर ने पुछा की उस वक्त वेँ कहाँ थे तब श्रीकृष्ण ने बताया की उस वक्त शाल्व ने अपने प्रचंड ‘सौभ’ विमान से द्वारका पर उपर से बमबारी शुरु कर द्वारका जला रहा था, इसलिए श्रीकृष्ण उसे मारने के लिए गए थे, जब वो विमान का संहार करके वापिस आए तब उन्हे सात्यकी से खबर मिली की द्युतसभा मेँ युधिष्ठिर जुए मेँ सारा राज्य हार गया और इसलिए वेँ दौडते पांडवोँ से मिलने जंगल मेँ आए।
आगे किसी जगह दु:खी द्रौपदी भी युधिष्ठिर, अर्जुन और अपने भाई को कोसते हुए कहती है की उनमेँ से कोई भी उसकी विडंबना को रोकने नहीँ आया इसलिए उनमेँ से कोई भी उसका अपना नहीँ है। वो उधर खडे श्रीकृष्ण को भी कहती है की तुम भी मेरी मदद के लिए नहीँ आए इसलिए कृष्ण तुम भी मेरेँ नहीँ। अगर कृष्णने सचमेँ वस्त्रावतार लिया था तब द्रौपदी क्या उन्हे ऐसे शब्द कहती?
ये सारी घटनाओ से ज्ञात होता है की द्रौपदी का चीरहरण हुआ नहीं था। कुछ धूर्तो ने कृष्ण के चमत्कार को दर्शाने के लिए ये सब मनगढ़ंत बात गढ़ी है। इस अलोक में यदि देखा जाये तो सभा मे द्रोपदी का चीर हरण नही हुआ था वास्तविक चीर हरण तो योगिराज श्री कृष्ण का हुआ है और ये करने वाले आज के दुशासन है , जिन्होंने श्री कृष्ण के पावन चरित्र के आप्त आवरण को नोच नोच कर फेंक दिया , धन्य है ऋषिवर देव दयानंद जिन्होंने दुशासन को ललकारा व श्री कृष्ण की धूमिल गरिमा को वापस लाने का महनीय कार्य किया ।