डॉ डी के गर्ग

(साभार -आर्य मनतव्य वेबसाइट)
महाभारत में द्रौपदी के “चीर हरण ” जैसी कुत्सित और भ्रष्ट आचरण की कथा कथाकार बहुत विस्तार से सुनाते है जैसे की सम्पूर्ण घटना उनके सामने हुई है। मेरे विचार से द्रौपदी का चीर हरण दुर्योधन ने नहीं किया बल्कि आजकल के कथाकारों और नकली लेखकों ने किया ,और वो भी बराबर के दोषी है जो इस असत्य को सत्य मान रहे है।
पहली बात जब द्यूत क्रीड़ा महाभारत में आरम्भ हुई और युधिष्ठर ने स्वयं और अपने भाइयों को तथा अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और हार गए तब यहाँ ये जानना आवश्यक है कि वो क्या हार गए ?
विस्तार से सत्य को समंझने का प्रयास करें और दूसरो को भी बताये :-
1-दुर्योधन ने जब देखा की शकुनि ने युधिष्ठर से सब कुछ जीत लिया हैं तो दुर्योधन बोला विदुर जी यहाँ आओ और तुम जाकर पांडवो की प्यारी और मनोनुकूल द्रौपदी को यहाँ ले आओ। द्रौपदी शीघ्र यहां आये और मेरे महल में झाड़ू लगाये। उसे अब हमारी दासियों के साथ रहना होगा। द्रौपदी जो एक कुल की रानी थी उसको “दासी” और पांडव जो राजा थे उन्हें “दास” बना कर लज्जित ही करना मात्र दुर्योधन का मंतव्य था। द्यूत पर्व अध्याय ६६ श्लोक १ में जो लिखा है उससे स्पष्ट हैं की दुर्योधन ने पाँडवो और द्रौपदी को केवल लज्जित ही करना था।
२ परन्तु विदुर ने इसका विरोध ही नहीं किया अपितु कुछ नीति वचन भी कहे। जो अहंकार में चूर दुर्योधन को अच्छे नहीं लगे।
३ विदुर के विरोध और नीतिवचन सुनने के बाद दुर्योधन ने क्रोधित होकर “प्रतिकामिन” को आदेश दिया की द्रौपदी को यहाँ ले आओ (दासीरूप में झाड़ू लगाने हेतु) द्यूतपर्व – अध्याय ६७ श्लोक २
४ प्रतिकामिन ने द्रौपदी से कहा – द्रुपदकुमारी ! धर्मराज युधिष्ठर जुए के मदसे उन्मत्त हो गए थे। उन्होंने सर्वस्व हारकर आप को दांव पर लगा दिया। तब दुर्योधन ने आपको जीत लिया। याज्ञसेनी ! अब आप धृतराष्ट्र के महल में पधारे। मैं आपको वहां दासी का काम करवाने के लिए ले चलता हूँ। यहाँ भी बिलकुल स्पष्ट है की द्रौपदी को केवल दासी के काम हेतु महल की सफाई आदि करवाने के उद्देश्य से दुर्योधन ने प्रतिकामिन को भेजा था ताकि द्रौपदी और पांडवो का मानमर्दन हो सके – अन्य कोई मंतव्य दुर्योधन का नहीं था।
५ जब पांडव जुएँ में राज्य के साथ-साथ अपने-आपको और द्रोपदी को हार गए तब पाँडवों की स्थिति दासों की तरह और द्रोपदी की स्थिति दासी की तरह रह गयी थी।द्रौपदी ने कहा जब युधिष्ठर स्वयं अपने को हार गए तब किस प्रकार वे मुझे दांव पर लगाने का अधिकार रखते थे? द्रौपदी के प्रश्नों के उत्तर हेतु विदुर ने सभासदों से पूछा साथ में धृतराष्ट्र का एक पुत्र विकर्ण स्वयं द्रौपदी के समर्थन में उत्तर आया उसने भी यही कहा जब युधिष्ठर स्वयं अपने को दांव पर लगा हार गए तब किस प्रकार द्रौपदी को दांव लगाने का अधिकार युधिष्ठर के पास रहा तब कोई जवाब ना पाकर द्रौपदी हताश और निराश हो गयी।
६ जब युधिष्ठर स्वयं अपने को दांव पर लगा हार गए तो उन्हें राजाओं अथवा राजकुमारों जैसे वस्त्र धारण करने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। यही दशा द्रोपदी की भी थी पर जब द्रोपदी सभा में लाई गयी तब द्रौपदी ने केवल एक वस्त्र धारण किया हुआ था क्योंकि द्रौपदी उस समय रजस्वला थी। अतः उनसे उनके वस्त्र उतार के दासों और दासी के परिधान पहन लेने के लिए कहा गया। द्रौपदी ने विरोध किया क्योंकि वो अपने आपको हारी हुयी नहीं मानती थी।
वैशम्पायनजी कहते हैं की जनमेजय कर्ण की बात सुन के समस्त पाँड्वों ने अपने-अपने राजकीय वस्त्र उतारकर ,दासों के वस्त्र धारण किये ।और सभा में बैठ गए (सभापर्व अध्याय 68 श्लोक 39)
परन्तु द्रौपदी अपने को हारी नहीं मानती थी। इसलिए दुःशासन को जबरदस्ती द्रौपदी के कपडे बदलवाने हेतु विवश किया गया था। जिसे धूर्तमंडली व्याख्याकारों ने चीरहरण का नाम दिया।
7 दुःशासन द्रौपदी को दासी कहकर सम्बोधित करने लगा इतने में कर्ण ने अपने अनुचित वचनो से द्रौपदी को अनेक बुरे वचन कह कर दुःशासन को द्रौपदी और पांडवो के वस्त्र उतार लेने को कहा –”दुःशासन यह विकर्ण अत्यंत मूढ़ हैं तथापि विद्वानों सी बातें बनाता है तुम पांड्वो और द्रोपदी के भी वस्त्र उतर लो।”- द्यूतपर्व अध्याय ६८ श्लोक ३८
ध्यान देने की बात है कि कर्ण केवल द्रोपदी के ही वस्त्र उतरने के लिए नहीं कहता वरन पाँड्वों के भी वस्त्र उतारने के लिए कहता है।
8 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय उस समय द्रौपदी के केश बिखर गए थे। दुःशासन के झकझोरने से उसका आधा वस्त्र भी खिसककर गिर गया था, वह लाज से गढ़ी जाती थी और भीतर ही भीतर दग्ध हो रही थी। उसी दशा में वह धीरे से इस प्रकार बोली द्रौपदी ने कहा –अरे दुष्ट ये सभा में शास्त्रों के विद्वान कर्मठ और इंद्र के सामान तेजस्वी मेरे पिता के सामान सभी गुरुजन बैठे हुए हैं। मैं उनके सामने इस रूप में खड़ी होना नहीं चाहती। क्रूरकर्मा दुराचारी दुःशासन तू इस प्रकार मुझे ना खींच ना खींच, मुझे वस्त्र हीन मत कर। मेरे पति राजकुमार पांडव तेरे इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकेंगे।
द्यूतपर्वदृ अध्याय ६७/३५/३७ यहाँ ही वह शब्द हैं जहाँ पर द्रौपदी को घसीटने के कारण द्रौपदी के रजस्वला अवस्था में पहने हुए एक वस्त्र के सरकने से द्रौपदी के चीरहरण की कथा गढ़ ली गयी जबकि ये चीरहरण नहीं था।
९ वैशम्पायनजी कहते हैं की जब दुर्योधन के द्रौपदी को सभा में बुलाना चाहा तो युधिष्ठर ने पुछा -जनमेजय! दुर्योधन क्या करना चाहता है ? युधिष्ठर ने द्रौपदी के पास एक ऐसा दूत भेजा जिसे वह पहचानती थी और उसी के द्वारा यह सन्देश कहलाया —पाँचाल राजकुमारी यद्यपि तुम रजस्वला और नीवी (नाभि) को नीचे रखकर एक ही वस्त्र धारण कर रही हो तो भी उसी दशा में रोती हुई सभा मे आकर अपने श्वसुर के सामने खड़ी हो जाओ।
तुम जैसी राजकुमारी को सभा में आई देख सभी सभासद मन ही मन इस दुर्योधन की निन्दा करेंगे।''
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ श्लोक १८-२१
१० यदि दुर्योधन का मंतव्य केवल द्रौपदी का चीरहरण करना ही था तो युधिष्ठर द्रौपदी को सभा में आने के लिए क्यों कहते जबकि यह स्पष्ट है कि द्रौपदी को युधिष्ठर ने सभा में आने के लिए दूत से बुलावा भेज दिया और द्रौपदी भी सभा में आने को तैयार थी तब ये कहना की दुःशासन जबरदस्ती द्रौपदी को पकड़कर सभा में ले आया संदेह प्रकट करता हैं। यदि ये मान भी ले की दुःशासन ने द्रौपदी को बाल से खींच घसीट कर सभा में ले आया तो उसका वृतांत महाभारत में देखिये दुःशासन के खींचने से द्रौपदी का शरीर झुक गया। उसने धीरे से कहा ओ मंद बुद्धि दुष्टात्मा दुःशासन में रजस्वला हूँ तथा मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है इस दशा में मुझे सभा में ले जाना अनुचित है। दुःशासन बोला --
द्रौपदी तू रजस्वला, एक वस्त्रा अथवा नंगी ही क्यों न हो हमने तुझे जुए में जीता हैं। अतः तू हमारी दासी हो चुकी हैं। इसलिए अब तुझे हमारी इच्छा के अनुसार दासियों में रहना पड़ेगा।”द्यूतपर्व – अध्याय ६७/३२, द्यूतपर्व-अध्याय ६७/३४
यहाँ दुःशासन के बोले शब्द देखिये दुःशासन का उद्देश्य भी द्रौपदी का चीरहरण करना नहीं था। बल्कि यहाँ भी स्पष्ट है कि कौरवो दुर्योधन आदि को केवल पाँडवो और द्रौपदी को दास आदि बनाकर भरी सभा में अपमानित ही करना था।
द्यूतपर्व- अध्याय ६७ श्लोक १८-२१
द्रौपदी के रजस्वला अवस्था में पहने हुए एक वस्त्र के सरकने से द्रौपदी के चीरहरण की कथा गढ़ ली गयी ,इन्ही शब्दों को बिगाड़कर नयी कथा अतिश्योक्ति अलंकार की भाषा मे लिख दी गयी जबकि ये चीरहरण नहीं था ,केवल द्रौपदी को दुःशासन द्वारा खींचा गया , घसीटा गया था जिसके परिणामस्वरूप द्रौपदी का एकमात्र पहना हुआ वस्त्र शरीर से थोड़ा सरक गया और जिसके आधार पर पूरी की पूरी मिथ्या कथा बना दी गयी की द्रौपदी का चीरहरण हुआ।

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