अब यह मिथक टूटना ही चाहिए कि देश को आजादी बिना खडग और बिना ढाल के ही मिल गई थी

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भारत के इतिहास का सबसे बड़ा झूठ यह है कि आज की नई पीढ़ी को यह पढ़ाया जा रहा है कि देश को आजादी केवल गांधीवादी आंदोलन के कारण मिली। लहजें में गाने लिखवाये गये,”देदी हमे आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल। जबकि ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में दक्षिण अफ़्रीका से लाए गये गाँधी का ब्रिटिश सरकार को बचाने,देश का विभाजन करके २० लाख हिन्दुओं को मरवाने के अलावा कोई काम नहीं।
ब्रिटिश साम्राज्य को बचाने के लिये अंग्रेजों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। कालांतर में कांग्रेस में दो ग्रुप बन गये। एक ब्रिटिश सत्ता के प्रति निष्ठावान ग्रुप जो कहता था,हम ब्रिटिश को भारत में रखेंगे व उन्नति करेंगे। इस दल के नेता थे गोखले। दूसरा ब्रिटिश विरोधी दल था जो यह कहता था स्वाधीनता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसे हम लेकर रहेंगे व उन्नति करेंगे। इस ग्रुप के नेता थे लोकमान्य तिलक। नरम दल के नेता गोखले वृद्ध हो चले थे,उन्होंने अपना उत्तराधिकारी दक्षिण अफ़्रीका के गाँधी को चुना। गाँधी २० वर्ष दक्षिण अफ़्रीका में आन्दोलन करके पूरी तरह असफल नेता रहे। उनको भारत में लाना है,अंग्रेज़ी साम्राज्य बचाने के लिये,नरम दल के गोखले के उत्तराधिकारी की बड़ी ज़िम्मेदारी निभानी है। गोखले स्वयं लन्दन गये,वहाँ से दक्षिण अफ़्रीका की सरकार को आदेश हुवा, गोखले आपसे मिलेंगे,उनकी माँगे मान ली जाय। गोखले प्रिटोरिया गये,वहाँ के प्रधानमन्त्री से मिलकर गाँधी की कुछ माँगे मनवायी व ब्रिटिश सरकार ने गाँधी को दक्षिण अफ़्रीका का विजेता बना कर हीरो बनाया। भारत में चंपारन हो, अहमदाबाद हो, महत्वपूर्ण वॉर कौंसिल से तिलक को हटा कर गांधी को सदस्य बनाया। गाँधी को ब्रिटिश हुकूमत ने हीरो बनाया। ब्रिटिश हुकूमत को बचाने के लिये गाँधी भी स्वराज के आन्दोलन को नहीं करके बेमतलब का आन्दोलन करते। १९२० में एक वर्ष में स्वराज लादूँगा के प्रस्ताव के विपरीत टर्की के ख़लीफ़ा की कांग्रेस के मंच से ख़िलाफ़त की लड़ाई लड़ी, १९२९ कांग्रेस के लाहौर के पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव की लड़ाई नहीं लड़ कर, नमक की लड़ाई लड़ी। सुभाष चन्द्र बोस ने भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा कांग्रेस अध्यक्ष रहते बनाई। गाँधी ने सुभाष बोस का यह भारत छोड़ो आन्दोलन यह कह कर होने नहीं दिया, अभी बिश्व युद्ध चल रहा है,मैं इस समय अंग्रेजों को विपत्ति में नहीं फ़ेक सकता। पर १९४२ में बिश्व युद्ध चल रहा था,इसी समय भारत छोड़ो में थोड़ा संशोधन करके “भारत छोड़ो पर अपनी सेना यहाँ रखो”आन्दोलन छेड़ दिया। अंग्रेज अपनी सेना भारत में रखेंगे,तो भारत क्यों छोड़ेंगे। गाँधी ने यह आन्दोलन अंग्रेजों को ~भगाने~ के लिये नहीं,सुभाष चन्द्र बोस जब वर्मा से अपनी सेना के साथ भारत में प्रवेश करे,तो कांग्रेस में उनके जो क्रांतिकारी समर्थक है,वे जेल में रहे,उनका साथ न दे सके,इसलिये किया। क्योंकि अप्रैल १९४२ में बर्मा पर जापान का कब्जाहो गया था। कांग्रेस के हाथ में सत्ता इस लिये आई कि १९४५ के चुनाव में देश का विभाजन गाँधी जी की लाश पर होगा कह कर केंद्रीय लेजिस्लेटिव असेंबली १०२ सदस्यों के ५६ सदस्य जीतने से हुवी। पर गाँधी व कांग्रेस ने १९४५ के चुनाव में दिये गये वादे को तोड़ दिया व देश का विभाजन कर इस्लामिक पाकिस्तान बना दिया। गाँधी की बिडम्बन देखिये, अंग्रेज़ो ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया,अपने आदमी नेहरू को बनाया। गांधी ने नेहरू के प्रधानमंत्री बनाने की मजबूरी एक पत्रकार को स्पष्ट बतायी हमारे कैम्प में नेहरू ही अंग्रेजों का आदमी था। इस लिये बनाना पड़ा। वीर सावरकर ने कभी अंग्रेजों से माफ़ी नहीं माँगी। जिस आदमी ने अंडमान की काला पानी की जेल से रत्नागिरी में नज़रबंदी में २८ लंबे वर्ष राजनीति नहीं करने की कठिन शर्त से गुज़ारी,उस पर झूठा आरोप लगाते है,सावरकर ने ६-६ बार माफ़ी माँगी। कोई भी क़ैदी सरकार को कोई पत्र लिखता है,उसे क़ानून की भाषा में Mercy Petition कहा जाता है। वीर सावरकर ने भी सरकार को जेल में रहते हुवे ६ पत्र लिखे जो mercypetition कहलाते है। पर इन सभी ६ पत्रों में उन्होंने कभी भी माफ़ी नहीं माँगी।
भारत के वर्तमान के रास्ट्रनायकों से स्वाधीन भारत में जन्मी इस पीढ़ी की आशा है,बहुत दिन झूठा इतिहास पढ़ाया गया,भारत की भविष्य की पीढ़ी को तो सच्चा इतिहास पढ़ाये। यह हो गया तो साहसिक कार्य होगा।
आज हमें अपने सच्चे इतिहास को पढ़ाने की आवश्यकता है। कोई भी देश तभी जीवित रह सकता है जब वह अपने पूर्वजों के पुरुषार्थ को सही ढंग से समझने की क्षमता रखता हो। भारत की नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों के बलिदानों को समझने की आवश्यकता है। इससे यदि किसी गांधीवाद या गांधीवादी आंदोलन की हवा निकालना जरूरी हो तो वह भी निकाली जानी चाहिए ।इतिहास झूठ का महिमा मंडन करने के लिए नहीं होता है बल्कि वह सत्य का महिमा मंडन करने के लिए होता है।

इंजीनियर श्याम सुंदर पोद्दार
लेखक वरिष्ठ हिंदूवादी चिंतक और लेखक हैं

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