कौन सर्वोच्च श्रोता है?
जनता पर शासन करने वाले बीस शासक कौन हैं?
सर्वोच्च श्रोता किस व्यक्ति को इन बीस शासकों से बचाता है?
दिव्यता के अत्यन्त निकट कौन होता है?
बीस शासकों ने पूरा कुशासन किस प्रकार रचा हुआ है?
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.9
त्वमेतांजनराज्ञोद्विर्दशाऽबन्धुनासुश्रवसोपजग्मुषः।
षष्टिंसहस्रा नवतिंनवश्रुतोनिचक्रेणरथ्या दुष्पदावृणक्।।
(त्वम्) आप (एतान्) इन (जनराज्ञः) जनता पर शासन करने वाले (द्विः दश) बीस (अऽबन्धुना) बन्धनहीन, किसी का मित्र नहीं (सुश्रवसा) दिव्यता का उत्तम श्रोता, उत्तम सुने जाने योग्य (ज्ञान और अनुभूति के लिए) (उपजग्मुष) अत्यन्त निकट (षष्टिम्) साठ (सहस्रा) हजारों (नवतिम्) नब्बे (नव) नौ (श्रुतः) सुनने वाला (परमात्मा) (नि) निश्चित रूप से (चक्रेण) चक्र, गति (रथ्या) शरीर रथ का (दुष्पदा) कठिन मार्ग (अवृणक्) दूर रखो।
व्याख्या:-
कौन सर्वोच्च श्रोता है?
जनता पर शासन करने वाले बीस शासक कौन हैं?
सर्वोच्च श्रोता किस व्यक्ति को इन बीस शासकों से बचाता है?
आप, सर्वोच्च श्रोता, निश्चित रूप से जनता के ऊपर शासन करने वाले बीस शासकों को उन महान् आत्माओं से दूर रखते हो, शरीर की गतिविधियों के कठिन मार्ग से, रथ के पहियों से, जो बन्धन में नहीं हैं और किसी के मित्र नहीं हैं, परन्तु जो दिव्यता के उत्तम श्रोता हैं और जिन्हें उनके ज्ञान और अनुभूति के कारण अन्य लोग उत्तम प्रकार से सुनते हैं और जो आपके अत्यन्त निकट हैं। यह शासक साठों हजार हैं। परन्तु महान् आत्माएं ऐसे शासकों से 99 वर्ष से भी अधिक अवधि तक दूर रहते हैं।
यह बीस शासक हैं – दस इन्द्रियां, पांच प्राण, मन, बुद्धि, अहंकार, हृदय तथा चेतना। परमात्मा सर्वोच्च श्रोता है।
जीवन में सार्थकता: –
दिव्यता के अत्यन्त निकट कौन होता है?
बीस शासकों ने पूरा कुशासन किस प्रकार रचा हुआ है?
- जो व्यक्ति इस सृष्टि में किसी चीज से बंधा नहीं है और जिसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है,
- जो दिव्यताओं को उत्तम प्रकार से सुनता है और जो अपने महान् और दिव्य ज्ञान तथा अनुभूति के कारण दिव्यता के अत्यन्त निकट होता है और जिसे अन्य लोग अच्छी प्रकार से सुनते हैं।
जब एक व्यक्ति दिव्यता के निकट हो जाता है तो वह निश्चित रूप से सर्वोच्च श्रोता के द्वारा सुना जाता है और जनता पर शासन करने वाले शासकों से दूर रहता है। यह एक आश्चर्य है कि दिव्य लोगों को छोड़कर सभी लोग इन बीस शासकों से शासित होते हैं। इन बीस शासकों का शासन वास्तव में एक ऐसा कुशासन है जो जीवन की सभी समस्याओं और पेचिदिगियों को जन्म देता है। अतः इस कुशासन से मुक्ति पाने के लिए हमें सृष्टि की किसी भी वस्तु के बन्धन से मुक्त रहना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी इन्द्रियों से भी।
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