है कोई जो मोदी जी को समझाये !
आजकल हमारे प्रधान मंत्री महोदय सबका साथ ,सबका विकास की निति पर चल रहे हैं उन्होंने अल्पसंख्यक लोगों यानि मुसलमानों की शिक्षा का स्तर बढ़ने के लिए एक सभा में कहा कि जब हर मुस्लिम विद्यार्थी के एक हाथ में कुरान और एक हाथ में कंप्यूटर होगा तभी मुसलमानों का विकास होगा ,शायद मोदी जी ने यह बात जफर सरेशवाला और मुख़्तार नकवी की सलाह से कही होगी ऐसा लगता है कि मोदी जी नहीं जानते कि इस्लाम और विज्ञानं परस्पर शत्रु है , जब मुसलमान आज तक यह नहीं मान सके की पृथ्वी गोल है ,तो मोदी उनको कंप्यूटर देकर उनसे क्या करवाना चाहते हैं ? मुस्लिम मौलानाओं ,मुफ्तियों और काजियों ने मुस्लिम वैज्ञानिकों और अविष्कर्ताओं के साथ कैसा बर्ताव किया यह इस लेख में दिया जा रहा है इस पर विचार की आवश्यकता है.
मुसलमानों के हाथों मुस्लिम वैज्ञानिकों का क्या हश्र हुआ, यह जनता को नहीं बताया जाता। आज गर्व से कहा जाता है कि वह हमारे मुस्लिम वैज्ञानिक थे, भले ही ज्ञान का कोई धर्म नहीं होता। इनमें से छह वैज्ञानिकों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है
1-याकूब अल-किंदी-(یعقوب الکندی)
इनका जन्म सन 801 में बगदाद में हुआ था
वह दर्शनशास्त्र, भौतिकी, गणित, चिकित्सा, संगीत, रसायन विज्ञान और खगोल विज्ञान के विशेषज्ञ थे। जब अल-किंदी के विचारों के विरोधी खलीफा को सत्ता मिली तो मुल्ला को खुश करने के लिए अल-किंदी की लाइब्रेरी पर कब्ज़ा कर लिया गया और साठ साल की उम्र में उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए। अल-किंदी हर कोड़े पर दर्द से चिल्लाता था और दर्शक हंसते थे.इनको कोड़े मार कर मौत की सजा खलीफा “मुतअ मद अल्लाह – لمعتمد على الله ” ने दी थी इनको इतने कोड़े मारे गए जिस से सन 871 में बगदाद ही में इनकी मौत हो गयी
2-इब्न रुश्द-(ابن رشد)
इनका जन्म 14 अप्रैल 1126 में स्पेन केशहर , Córdobaमें हुआ था ,उस समय स्पेन पर इस्लामी हुकूमत थी .स्पेन को अरबी में अन्दलूस कहा जाता है इसी लिए इब्ने रुश्दी को अन्दलूसी कहा जाता है
,यूरोप के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध अन्दलूसी विद्वान इब्न रुश्द को ईशनिंदा घोषित कर दिया गया और उनकी किताबें जला दी गईं। एक परंपरा के अनुसार, उन्हें जामा मस्जिद के एक खंभे से बांध दिया गया और नमाजियों ने उनके चेहरे पर थूक दिया। इस महान विद्वान ने अपने जीवन के अंतिम दिन अपमान और गुमनामी की स्थिति में गुजारे,और बीमार होकर मोरक्को चले गए वहां 10 दिसंबर 1198 में 72 साल की आयु में इनकी मौत हो गयी ,किसी ने उनका सम्मान नहीं किया
3-इब्नए-सीना-(ابن سینا)
इनका जन्म सन 980 में उजबेकिस्तान के अफ़शोना शहर में हुआ था
आधुनिक चिकित्सा के संस्थापक इब्न सीना को भी त्रुटि और धर्मत्याग का दोषी घोषित किया गया था। विभिन्न शासक उसका पीछा कर रहे थे और वह अपनी जान बचाने के लिए छुपता रहा। उन्होंने अपनी पुस्तक, जो छह सौ वर्षों तक पूर्व और पश्चिम के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थी, गोपनीयता की स्थिति में लिखी।इन्होने ने “अल क़ानून फिल तिब्ब ” नामकी किताब छुप छुप कर लिखी थी ,क्योंकि अगर वह पकड़ा जाता तो उसे काफिर कह कर मार दिया जाता इनकी मृत्यु 22 June सन 1037 को 57 की आयु में हुआ था
5-ज़कारिया अल-रज़ी-(ذکریا الرازی)
इनका जन्म सन 865 में ईरान के रये शहर में हुआ था इस
महान दार्शनिक, कीमियागर, खगोलशास्त्री और चिकित्सक ज़कारिया अल-रज़ी को झूठा, नास्तिक और काफिर कहा जाता था। हकीम वक़्त ने आदेश दिया कि रज़ी की किताब को उसके सिर पर तब तक मारा जाए जब तक कि किताब फट न जाए या रज़ी का सिर न फट जाए। इस तरह किताबों को बार-बार पटकने से रज़ी अंधे हो गए और उसके बाद अपनी मृत्यु तक कभी देख नहीं पाए।.और 27 अक्टूबर सन 925 में 60 साल की आयु में ईरान के रये शहर में मर गए
6-जाबिर इब्न हय्यान-(جابر ابن حیان)
इनका जन्म सन 721 में ईरान के ताउस शहर में हुआ था
पश्चिमी दुनिया उन्हें आधुनिक रसायन विज्ञान का जनक कहती है जिन्होंने रसायन विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन और खगोल विज्ञान पर काम किया। अल-किनिया और किताब अल-शियिन किताबें केवल मोजराब के पुस्तकालयों में पाई जाती हैं। जाबिर बिन हय्यान का प्रतिशोधात्मक व्यवहार: सरकार को जाबिर की बढ़ती लोकप्रियता नागवार गुजरी। जाबिर के लिए खुरासान में रहना कठिन हो गया। उनकी माँ को कोड़े मारे गए और शहीद कर दिया गया। जाबेर ने अपनी किताबें और सीमित प्रयोगशाला उपकरण पैक किए और बसरा, इराक चले गए। बसरा के लोग जाबिर की जानकारी में आ गये। उन्होंने जबूर जैसा कीमिया और अकादमिक प्रवचन पहले कभी नहीं सुना था।
यहाँ तक कि बसरा का शासक भी उसकी प्रसिद्धि सहन नहीं कर सका। हकीम के दरबारियों ने जबूर की बढ़ती शैक्षणिक प्रतिष्ठा और धार्मिक असंतोष को सरकार के लिए खतरा समझना शुरू कर दिया। एक दिन जाबिर को अभियोग लगाकर बसरा के काजी के सामने लाया गया। हकीम की इच्छा पर काजी ने जाबिर को मौत की सजा सुनाईऔर सन 825 में कूफ़ा शहर में जब उनको मौत की सजा दी गई उनकी आयु 94 साल थी जाबिर बिन हय्यान, जिन्हें आज पश्चिम में “रसायन विज्ञान का जनक” कहा जाता है, उनकी कीमिया, ज्ञान और वैज्ञानिक आविष्कारों को उनके ही सह-धर्मवादियों द्वारा जादू, झूठ और कुफ्र कहा जाता रहा और अपमानित किया जाता रहा
7-निष्कर्ष
इस्लामी मान्यता के अनुसार हर प्रकार का ज्ञान कुरान और हदीसों में है इनके आलावा कोई और ज्ञान प्राप्त करना दिमाग में मवाद भरने जैसा है इसी लिए मुसलमानों में कोई वैज्ञानिक नहीं बना और न मुसलमानों ने कोई ऐसा अविष्कार किया जो सबके लिए उपयोगी हो ,जबकि ईसाई और यहूदी वैज्ञानिकों ने लाखों ऐसे अविष्कार किये जिनका उपयोग मुसलमान भी कर रहे हैं मोदी जी मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा देने के लिए भले कंप्यूटर दे दें कुछ नहीं होगा क्योंकि मदरसों में हिल हिल कर कुरान और हदीसें इस तरह से ठूंस ठूंस कर भर दी जाती है जैसे किसी बर्तन में हिल हिल कर शकर भर दी जाती है जिस से बर्तन में शकर का एक दाना भी और नहीं जा सके अगर मुस्लिम बच्चों को शिक्षित करना है तो पहले बच्चों के दिमाग को ख़ाली करना पड़ेगा तभी दिमाग में कोई ज्ञान की बात अंदर जाएगी , मोदी जी स्वयं विद्वान् हैं समझ जायेंगे ,फिर भी हम भक्त सूरदास का यह पद दे रहे हैं
छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग।
जाके संग कुबुद्धि उपजै, परत भजन में भंग।
काम क्रोध मद लोभ मोह में, निसि दिन रहत उमंग।
कहा भयो पय पान कराये, बिष नहिं तजत भुजंग।
कागहि कहा कपूर खवाये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकत भूषन अंग।
पाहन पतित बान नहिं भेदत, रीतो करत निषंग।
सूरदास खल कारी कामरी, चढ़े न दूजो रंग।
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बृजनंदन शर्मा