ऋग्वेदमन्त्र 1.53.8
त्वंकरंजमुतपर्णयं वधीस्तेजिष्ठयातिथिग्वस्य वर्तनी।
त्वं शता वङ्गृदस्याभिनत्पुरोऽनानुदः परिषूता ऋजिश्वना।। 8।।
(त्वम्) आप (परमात्मा, परमात्मा का मित्र) (करंजम्) श्रेष्ठ पुरुषों को दुःख देने वाला (उत) और (पर्णयम्) पराई वस्तुओं को चुराने वाला (वधीः) नाश (तेजिष्ठया) गति और बल के साथ (अतिथिग्वस्य) अतिथियों का (परमात्मा का तथा परमात्मा के मित्र का) (वर्तनी) संरक्षण करता है (त्वम्) आप (शता) सैकड़ों (वङ्गृदस्य) दूसरों को विष देने वाला (अभिनत्) नाश करता है (पुरः) नगर, किले (अऽनानुदः) शत्रुओं के द्वारा धकेला न जाने योग्य (परिषूता) सभी दिशाओं से घेरा गया (ऋजिश्वना) सत्य, ईमानदारी के मार्ग पर चलते हुए।
व्याख्या:-
जो लोग दिव्य श्रेष्ठ पुरुषों का निरादर करते हैं उसका क्या फल होता है?
आप (परमात्मा, परमात्मा के मित्र) उन लोगों का नाश कर देते हो जो दिव्य श्रेष्ठ महापुरुषों का निरादर करते हैं या उनके लिए समस्या पैदा करते हैं या अन्य लोगों की वस्तुएं चुराते हैं। आप गति और बल के साथ अतिथियों अर्थात् परमात्मा की दिव्यताओं और परमात्मा के मित्रों की रक्षा करते हो।
आप (परमात्मा, परमात्मा के मित्र) शत्रुओं के द्वारा धकेले जाने के योग्य नहीं हो। इसका अभिप्राय है कि आप अपराजित हो। आप उन लोगों के हजारों किलों और शहरों को नष्ट कर देते हो जो अन्यों को विष देते हैं। क्योंकि आप सबको घेर कर सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलाते हो।
जीवन में सार्थकता: –
दिव्य, श्रेष्ठ और पवित्र आत्माओं शक्ति क्या है?
जो व्यक्ति दिव्यता से प्रेम करता है और गति तथा बल के साथ उनकी तरफ अग्रसर होता है, केवल वही अन्य लोगों को कष्ट देने और वस्तुएं चुराने की प्रवृत्तियों का नाश करने में सक्षम होता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में परमात्मा की दिव्यता का स्वागत करता है केवल वही बुराईयों को नष्ट करने में सक्षम होता है। जो व्यक्ति निर्माता के पीछे भागता है, वह निर्मित सृष्टि के पीछे नहीं भागता। पवित्रता से प्रेम करने वाला व्यक्ति इतना बलवान हो जाता है कि वह शत्रुओं के द्वारा धकेला नहीं जाता। बल्कि ऐसा व्यक्ति सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलते हुए उन लोगों को भी घेर लेता है जो दूसरों को विष देते हैं और दिग्भ्रमित करते हैं।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
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