अकबर के दरबार का चित्र
अनुच्छेद 308 से 323 में संघराज्य सेवाओं को दिखाने के लिए अकबर के दरबार को भी स्थान दिया गया है। इसका उद्देश्य है कि भारत के लोग सांप्रदायिक सोच से अब ऊपर उठेंगे और आपस में इतिहास पुरुषों के प्रति भी समन्वय बनाकर आगे बढ़ेंगे परंतु यह दायित्व किसी एक वर्ग विशेष का नहीं होगा बल्कि सभी समुदायों का सामूहिक उद्देश्य होगा। सभी राष्ट्र निर्माण के प्रति संकल्पित होंगे और इतिहास पुरुषों को लेकर किसी प्रकार का बात विवाद नहीं करेंगे।
छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह
इसके पश्चात छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह को स्थान दिया गया है। छत्रपति शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह हमारे देश के ऐसे चरितनायक हैं जिन्होंने इस देश की अस्मिता के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया। उनका ओजस्वी जीवन, उनका व्यक्तित्व और कृतित्व हम सब के लिए समादरणीय है। उनके इतिहास के प्रति हम सब श्रद्धा से नतमस्तक होते हैं। उनकी महानता हम सब के लिए अनुकरणीय है।
निर्वाचन संबंधी संवैधानिक अनुच्छेदों में इन दोनों महापुरुषों को स्थान देकर यह स्पष्ट किया गया है कि लोक प्रतिनिधियों के निर्वाचन का मापदंड देश व धर्म के लिए सर्वस्व अर्पण की मानसिकता को ही प्राथमिकता दी जाएगी। कहने का अभिप्राय है कि जिन लोगों के लिए राष्ट्र प्रथम है उन्हीं को देश का शासन भार सौंपा जाएगा।
रानी लक्ष्मी बाई का चित्र
रानी लक्ष्मीबाई को भी कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध वाले संवैधानिक अनुच्छेदों में स्थान दिया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि देश धर्म की रक्षा के लिए वीरांगनाओं ने जिस प्रकार अपना बलिदान दिया है उनके बलिदान को भी देश व्यर्थ नहीं जाने देगा । इस चित्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्र निर्माण में हमारी वीरांगनाओं ने भी समय-समय पर अपने बलिदान दिए हैं। हमारा देश जहां अपने वीर क्रांतिकारियों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखता है वहीं अपनी वीरांगना नारियों के प्रति भी श्रद्धानत है। सभी वीरांगनाओं की प्रतीक के रूप में रानी लक्ष्मीबाई को स्थान देकर नारी शक्ति को नमन किया गया है।
टीपू सुल्तान
टीपू सुल्तान का हमारे देश के इतिहास में राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में कोई योगदान नहीं है। इसके उपरांत भी टीपू सुल्तान को संविधान के इन चित्रों में स्थान दिया गया है। हमारी स्पष्ट मान्यता है कि टीपू सुल्तान और अकबर जैसे लोगों को केवल तुष्टीकरण के लिए ही स्थान दिया गया है, ऐसा हमारा मानना है।
गांधी जी का चित्र
लाठी लेकर चलते गांधीजी को राजभाषा वाले संवैधानिक अनुच्छेदों में स्थान दिया गया है। जिससे यह स्पष्ट किया गया है कि स्वभाषा की अलख जगाने का कार्य घर-घर में किया जाएगा।
गांधी जी की दांडी यात्रा
इसके पश्चात आपात उपबंधों में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। गांधी जी का दांडी यात्रा का यह चित्र हमें यह बताता है कि आपातकाल में समाज का नेतृत्व के साथ एक मुखी होकर चलना आवश्यक हो जाता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का चित्र
अनुच्छेद 361 से 367 में जहां पर प्रकीर्ण विषय हैं ,वहां पर नेताजी सुभाष और आजाद हिंद सेना का चित्र दिया गया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की तरह स्वीकारोक्ति के साथ क्रियान्वयन के लिए तत्पर रहना आवश्यक होता है। देश के संविधान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चित्र को देने का अर्थ है कि देश को क्रांति के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यदि शासक अपने कर्तव्य पथ से विमुख होता है तो देश के लोगों को ऐसे शासक के विरोध के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इसके साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चित्र का एक अर्थ यह भी है कि हम देश की क्रांतिकारी विचारधारा का समर्थन करते हैं और इस विचारधारा में विश्वास रखने वाले प्रत्येक क्रांतिकारी को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
राष्ट्र अपने क्रांतिकारियों का ऋणी है और उन्हें अपने संविधान के पृष्ठों में समुचित स्थान देकर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता है।
खुला आकाश और हिमालय
संविधान के संशोधन संबंधी प्रावधानों में खुला आकाश और हिमालय दिया गया है। जिस प्रकार विशाल हिमालय पर्वत में भी सूक्ष्म परिवर्तन होता है, वैसे ही परिस्थिति के अनुसार लोक कल्याण के लिए संविधान में भी संशोधन किया जा सकता है। संविधान में दिए गए इस चित्र का यही मौलिक संदेश है।
मरुस्थल और ऊंट की सवारी
अस्थायी संक्रमण कालीन और विशेष उपबंधों में मरुस्थल तथा ऊंट की सवारी का चित्र दिखाया गया है। जिसमें स्पष्ट किया गया है कि भारत की प्राकृतिक तथा भौगोलिक स्थिति अलग-अलग होते हुए भी समन्वय को प्रकट करती है। मरुस्थल का चित्र थल की सुरक्षा का संकेत देता है तथा ऊंटों की सवारी समस्त भारत के भू भाग पर हमारे अधिकारों को दर्शाता है।
समुद्र तथा नौकायन
समुद्र तथा नौकायन का चित्र अनुच्छेद 393 से 395 में दिया गया है। सागर जैसा गहरा शांत एवं असीम संभावना भरे संविधान में कुशलता से ही नौका को लक्ष्य तक पहुंचाया जा सकता है इस चित्र के माध्यम से यह संदेश दिया गया है।
कहने का अभिप्राय है कि संविधान के भीतर जितने भी चित्र दिए गए हैं उन सब का एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हम सब राष्ट्र की एक इकाई हैं और हम सब के मिलने से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। इन चित्रों के माध्यम से भारत के गौरवशाली इतिहास की एक झांकी प्रस्तुत की गई है। यह दुख का विषय है कि देश के संविधान के भीतर दिए गए इन चित्रों का निहित अर्थ समझकर भी कांग्रेस की सरकारों ने इन्हें समुचित स्थान और सम्मान प्रदान नहीं किया । धीरे-धीरे मुस्लिम तुष्टिकरण हावी हुआ और देश के इतिहास को प्रकट करने वाले इन चित्रों को संविधान से हटा दिया गया । आज यह निर्णय हमको लेना है कि यदि इतिहास मिटा दिया गया है या उस पर धूल की परत चढ़ा दी गई है तो क्या हमें इस प्रकार की घटिया सोच को स्वीकार कर लेना चाहिए? हमारा मानना है कि कदापि नहीं। हमें उठना होगा और बोलते हुए इतिहास को सबको सुनाना होगा।
बात स्पष्ट है कि हम सबको अपनी महान विरासत और इतिहास बोध की परंपरा को जीवित रखना है। ऐसे में संविधान में दिए गए इन चित्रों को संविधान के प्रत्येक संस्करण में यथावत दिए जाता रहना आवश्यक हो जाता है। जिसके लिए केंद्र की वर्तमान सरकार को विशेष पहल करनी चाहिए।
दिनांक : 15. 4. 2023