…तो क्या इतिहास मिट जाने दें ? अध्याय 3 ग क्या कहते हैं संविधान में दिए गए चित्र?
विक्रमादित्य के दरबार का चित्र
पंचायत और नगरपालिका वाले अनुच्छेदों के विषय को चित्र के माध्यम से प्रकट करने की भावना से प्रेरित होकर वहां विक्रमादित्य के दरबार वाला चित्र प्रकट किया गया है। हम सभी जानते हैं कि विक्रमादित्य द्वारा स्थापित की गई व्यवस्था बहुत ही न्याय पूर्ण थी। उन्होंने प्रत्येक नागरिक को न्याय देने का प्रशासनीय कार्य किया । यही कारण था कि उनके राज्य में सर्वत्र शांति का वास था। आज के यूरोप और एशिया को मिलाकर बनने वाले विशाल भारत अर्थात संपूर्ण जम्बूद्वीप पर उनका शासन था । उस समय इतने विशाल साम्राज्य की देखभाल करना और नागरिकों को सहज, सुलभ और सस्ता न्याय दिलाना सरल कार्य नहीं था। इसके उपरांत भी कहीं से भी उनके राज्य में अन्याय व अत्याचार के समाचार प्राप्त नहीं होते थे। सिंहासन पर बैठकर वह प्रत्येक नागरिक को न्याय देने का प्रयास करते थे। उनकी न्यायप्रियता आज तक भी लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। पंचायत स्तर पर हमारे लोग अपने आपको विक्रमादित्य की अनुभूतियों के साथ समन्वित कर न्याय प्रणाली को मजबूती प्रदान करें, इसी विचार से प्रेरित होकर इस चित्र को यहां पर दिया गया है।
तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय
भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान विज्ञान का केंद्र रहा है। यहां पर तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय भी स्थापित हुए। जिन्होंने संसार के कोने-कोने से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफलता प्राप्त की । इन विश्वविद्यालयों से निकले हुए विद्यार्थियों ने सारे संसार को लाभान्वित किया और मानवता का प्रचार प्रसार कर सबको वैदिक संस्कृति के झंडे तले रखकर उन्हें मानव से देव बनने का रास्ता बताया। संस्कृति और संस्कार का प्रचार प्रसार इन विश्वविद्यालय से हुआ। जिनसे संपूर्ण विश्व समाज में शांति स्थापित करने में सफलता प्राप्त हुई । संपूर्ण भूमंडल से आसुरी शक्तियों को कमजोर बनाए रखने में भी राज्य सत्ताओं को सफलता प्राप्त हुई। भारत के इन शिक्षा केन्द्रों ने संसार के प्रत्येक मनुष्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने का कार्य किया।
नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र देकर यह स्पष्ट किया गया है कि भारत के दूरदराज के अनुसूचित एवं जनजाति क्षेत्रों तक शिक्षा की बयार बहाई जाएगी। इन विश्वविद्यालयों का उद्देश्य अनिवार्य शिक्षा न होकर शिक्षा की अनिवार्यता होता था। उसी के आधार पर ये सबको शिक्षा का समान अधिकार और अवसर प्रदान कर श्रेष्ठ समाज का निर्माण करते थे। सबको शिक्षा की समान सुविधा उपलब्ध कराई जाती थी। इन चित्रों को संविधान में स्थान देकर यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य ऐसा प्रबंध करेगा जिससे शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित नहीं रहेगा। सबको अपना सर्वांगीण विकास करने की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि आधुनिकता और प्रगतिशीलता के साथ सभी आकर जुड़ें।
अश्वमेध यज्ञ का चित्र
संघ और राज्यों के बीच संबंध को प्रकट करने वाला अश्वमेध यज्ञ का चित्र भी संविधान के अनुच्छेद 243 से 267 पर दिया गया है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि स्वायत्तता एवं सार्वभौमिकता के अद्भुत समन्वय का नाम ही लोकतंत्र है। जिसके प्रति भारत अपनी पूर्ण निष्ठा व्यक्त करता है। घोड़े को दिग्विजय की यात्रा पर ले जाता हुआ सम्राट और उसके आधिपत्य को स्वीकार करने की मानसिकता को दर्शाता हुआ शरणागत एक राजा इसमें दिखाया गया है। इस चित्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य की मानवीय सोच और नीतियों के समक्ष सभी को झुकना पड़ेगा। सभी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह राज्य की प्रजाहितकारी नीतियों के साथ समन्वय स्थापित कर राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। राज्य की अश्वशक्ति अर्थात हॉर्स पावर को मजबूत बनाकर राष्ट्र की सुरक्षा पर भी सब सामूहिक रूप से ध्यान देंगे। इस कार्य में कोई भी व्यक्ति अथवा संस्थान किसी भी प्रकार की असावधानी नहीं बरतेगा।
नटराज तथा स्वास्तिक का चिन्ह
वित्त और संपत्ति वाले अनुच्छेदों में नटराज तथा स्वास्तिक का चित्र लगाया गया है। वैदिक काल से चली आ रही परंपरा में स्वास्तिक अत्यंत पवित्र और मंगलकारी माना जाता रहा है। आज भी हम यज्ञों के अवसर पर स्वस्तिवाचन करते हैं। स्वास्तिक का अभिप्राय है कि हम सब एक साथ, एक दिशा में, एक सोच, एक मन, एक विचार और एक संकल्प वाले होकर आगे बढ़ेंगे। राष्ट्र के सभी नागरिक एक दूसरे के प्रति सुखदाई भावनाओं से प्रेरित होकर काम करेंगे। 'सबका साथ सबका विकास' की पवित्र भावनाओं में विश्वास रखते हुए राष्ट्र के कल्याण में अपना कल्याण समझेंगे। नटराज आनंद की अनुभूति कराने वाला है। किसी भी राष्ट्र के नागरिक तभी आनंद की अनुभूति कर सकते हैं जब वह प्रत्येक प्रकार से अपने आप को समृद्ध और संपन्न अनुभव करेंगे। संपन्नता और समृद्धि का प्रतीक जहां स्वास्तिक है वहीं आनंद का उत्सव नटराज के रूप में स्थापित किया गया है। सब सबके साथ चलने में और सब सबका विकास करने में आनंद की अनुभूति करेंगे।
भगीरथ और गंगावतरण
अनुच्छेद 301 से तीन 307 में भगीरथ प्रयास से गंगावतरण को दिखाया गया है। स्पष्ट है कि हम प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे और अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के प्रति भी किसी प्रकार का प्रमाद प्रकट नहीं करेंगे। देश के संविधान के निर्माता रहे नेताओं ने भविष्य के लिए हमारे सामने यह आदर्श रखा कि हम राष्ट्र के कल्याण के लिए और उसकी प्रगति के लिए अपने आप को भगीरथ के रूप में प्रस्तुत करेंगे। यदि राष्ट्र रूपी गंगा की धारा को निर्मलता के साथ प्रवाहित करते रहने देना है तो इसके लिए भगीरथ की आवश्यकता होगी ही। ऐसा हम सब राष्ट्रवासियों को इस चित्र के माध्यम से मानना और समझना चाहिए।
क्रमशः
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत