डॉ डी के गर्ग
पार्ट-5
होली के नाम पर फुहड़ता और महापुरुषों का चरित्र हनन का गंदा खेल–
होली का पर्व सदियों पुराना और हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता का प्रतीक है क्योंकि इस पर्व के द्वारा बदलते मौसम में निरोगी रहने का अचूक उपाय सुझाया है इसलिए इस पर्व पर रात्रि को गांव के बाहर विशाल सामूहिक अग्निहोत्र द्वारा कीटो का शमन, जौ की बाली अग्नि में भूनकर वर्षा दूर करना ताकि पकी हुई फसल नष्ट ना हो और अगले दिन शरीर पर यज्ञ की मर्दन, केसू के फूलों के जल से नहाना आदि इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
इस पर्व पर मनोरंजन प्राचीन काल से ही चला आया है जिसमें होलिकोत्सव के आनंदमय अवसर पर शिक्षाप्रद नाटक, अभिनय खेलने की प्रथा थी। लेकिन वर्तंमान में इसका स्थान भद्दे स्वांग, नाच गानों ने ले लिया है। होली पर वर्तमान तरीके को देखकर लगता है कि हम अपनी परिपाटी भूल चुके हैं ।
कुछ बानगी देखो।
1. शराब भांग नशा का बढ़ता चलन।
2. मांस विक्रेताओं के यहाँ हिंदुओं की बढ़ती भीड़।
3. होलिका दहन में गौ के गोबर से बने उपले, हवन सामग्री के साथ यज्ञ करने के बजाय कूड़ा करकट और गंदी लकड़ियों के ढेर में आग लगाकर पूजना।
4. राधा कृष्ण का नाच और उनको फूलों से चारों ओर से ढ़क देना।
जिस तरह दो नकली लोगों को कृष्ण-राधा बनाकर,एक साथ बैठाकर उनके ऊपर फूलों की बारिश करते हैं वह प्रकृति के नियम विरुद्ध हैं। फूल पेड़ पर लगा हजारों टन वायु शुद्ध करता है और कुछ समय के बाद इनकी कूड़े में डाल दिया जाता है ।
कृष्ण की पत्नी का नाम रुक्मणी था। कृष्ण का राधा के साथ किसी भी प्रकार के अश्लील नाच गाने का प्रदर्शन किसी भी तरह से उचित और धार्मिक क्रिया नहीं कह सकते। ये हिंदू समाज पर कलंक है।
पर्व विधिः
१. होली पर्व से काफी समय पूर्व गौ के उपले गांवध्शहरध्कॉलोनी से बाहर होने वाले महायज्ञ के लिए तैयारी शुरु कर दे।
२. यज्ञ के लिए सामग्री ऋतु के अनुसार तैयार करें जिसमे , लौंग ,जावित्री आदि जरूर मिलाये ।
३. होली के पहले दिन शाम को सामूहिक यज्ञ का आयोजन करें। इसमें जौ की बलिया भुने और आपस में बांटकर सेवन करें और सभी आपसी द्वेष भुलाकर गले मिले ।
४. अगले दिन इस यज्ञ की राख को घर ले जाये और आपस में एक दुसरे के शरीर पर लेप करे।
५. रात्रि को केसू के फूल पानी में भिगो दें, तथा रख से शरीर पर लेप के उपरांत स्वयं और अतिथि को स्नान करायें, दिन के तीसरी पहर से पूर्व ही इस कार्य को समाप्त कर ले और नए वस्त्र धारण करें।
६. ठंडाई बनाये जिसमे काली मिर्च कुछ निम्न मात्रा में भांगरे के पत्ते पीस कर डाल सकते हैं, इस मात्रा में भांगरे का सेवन आयुर्वेद के नियम के अनुसार ही करें।