*होली-पर्व : क्यों और कैसे मनाये* 3

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डॉ डी के गर्ग
पार्ट-3
प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न-१ होली पर्व पर उत्तर भारत में जौ की बालियाँ अग्नि में क्यों भूनते हैं ?
उत्तरः इसका वैज्ञानिक महत्व है। होली पर्व के आसपास कभी-कभी वर्षा का डर बना रहता है और इस समय वर्षा होने से फसल को भारी नुकसान होगा। आपने देखा होगा कि इस समय गेहूं की फसल पक रही होती है और यदि वर्षा हो जाये तो गेहूं की फसल को भारी नुकसान होगा।यदि जौ की बालियां अग्नि में भूनी जाये तो वर्षा हट जाती है,ये एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।कृषक इस कार्य के लिए खेत से जौ की बालियां तोड़कर अपने मित्रों को भी आवश्यकता के अनुसार दे देते हैं।जिनको होली दहन में भून कर लाते हैं ।
इसलिए इस दिन अग्नि में जौं की बालियाँ भूनने का प्रभाव फसल की रक्षा से जुड़ा हुआ है ।
*प्रश्न-2. होलिका दहन में अग्नि में लकड़ी का प्रयोग वर्जित क्यों है ?

उत्तरः- आजकल यह दहन लकड़ियों को जलाकर किया जाता है जो कि परंपराओं का विकृत स्वरूप है।
होलिका में लकड़ी न लगाने के पीछे बहुत से वैज्ञानिक कारण है जैसे कि-
1. उस दिन बहुत मात्रा में लकड़ी की आवश्यकता होगी जिसके लिए आम आदि के पेड़ काटने पड़ेंगे जिन पर इस समय बौर आया होता है। इस से फसल के नुकसान के साथ प्राकृतिक संसांधन को अनुचित दोहन होगा।
2. यदि होलिका में लकड़ी का प्रयोग किया जायेगा तो लकड़ी का कोयला शरीर पर नहीं मल सकते, इस से उल्टा घाव इत्यादि का डर बना रहेगा, इसके विपरीत उपले की राख मुलायम और शीघ्र शरीर पर लिपट जाती है।
प्रश्न 3:होलिका यज्ञ में गौ के उपलों के प्रयोग का कारण
:आज भी हमारे गावों में सभी परिवारों का हर व्यक्ति छोटी-छोटी गोबर के कंडों की माला बनाकर जिसको बुरकली कहते है ,शाम तक होलिका दहन वाले स्थान पर जाकर डालते है ,ये सामूहिक योगदान है जिसके द्वारा वहा गोबर के कंडां का विशाल पहाड़ बन जाता है। होलिका दहन हमेशा से गाय के गोबर के कंडों पर किया जाता है। इसके साथ घी (घृत) की आहुति दी जाती है। इसके उपरांत जो की बालियां भूनते थे और आपस में बांटकर सबसे गले मिलते है,एक दूसरे के घर जाकर गले मिलना और आशीर्वाद लेने की अच्छी परम्परा विरासत में मिली है।
ग्राम के बाहर सामूहिक यज्ञ से पूरा गांव शुद्ध और पवित्र हो जाता है। लेकिन अब यज्ञ नही करते , इसको पंडो ने अपने अनुसार बदल दिया है ।
ध्यान दें:

  1. गाय के गोबर में इन्डॉल, फिनॉल और फॉर्मेलिन होता है।
    प्रकृति के नियम के अनुसार जो भी तत्व जलता है जलने पर वह सूक्ष्म होकर ऊपर आता है जैसे कार्बन जलेगा तो कार्बन सूक्ष्म होकर हवा में आकर ऑक्सीजन के साथ संघनन करके कार्बन डाइऑक्साइड बनाएगा फास्फोरस जलेगा तो फास्फोरस ऑक्साइड हवा में बनाएगा। भूमि का कोई भी तत्व हवा में आकर ऑक्सीजन के साथ तुरंत युग्म बनाता है और वह तत्व ऑक्साइड के रूप में आ जाता है हमारा खून किसी भी तत्व को ऑक्साइड के रूप में ही ग्रहण करता है आधुनिक वैज्ञानिक इस तरह के तत्व को मनुष्य के लिए अवेलेबल फॉर्म में अर्थात ग्रहण करने लायक कहते हैं अब कंडे में जो इंडोल, फिनॉल और फॉर्मलीन होता है वह जलकर इण्डोल-ऑक्साइड, फॉर्मलीन-ऑक्साइड बनाता है जो पर्यावरण को शुद्ध करता है।
    2.कुछ विद्वान कहते हैं कि गाय के गोबर का कार्बन जलेगा तो कार्बन डाइऑक्साइड ही निकलेगा।
    लेकिन गाय के गोबर से बने कंडे पर प्रकृति का यह नियम लागू नही होता। निसंदेह गाय का गोबर कार्बन से बना है और पूरा का पूरा कार्बन ही है इसकी जांच करेंगे इसमें कार्बन ही कार्बन निकलेगा पर जब कंडा जलता है तो कोई भी कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलता इसका प्रमाण मैं इस तरह से देता हूं कि गाय के गोबर का कंडा छोड़कर जब भी कोई गोबर या लकड़ी का कार्बन जलाता है तो हमारी आँख से आँसू आते है और सांस लेने में परेशानी होती है आंखों में जलन भी होती है पर गाय के गोबर के कंडे के जलने पर उक्त किसी भी तरह की कोई भी समस्या नहीं होती इससे यह साबित होता है कि गाय के गोबर का कार्बन जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित नहीं होता है।
  2. अब इन गाय के गोबर के कंडों के ढेर पर घी डालने का तात्पर्य समझे जैसे ही कंडों के लाल अलाव पर आप घी डालेंगे तो घी में पाए जाने वाले 11 सेचुरेटेड एसिड्स गैस के रूप में हवा में आते हैं उनके आने से बहुत तरह की गैसें निकलती हैं पर इनमें से 5 गैस वैज्ञानिकों द्वारा देखी गई हैं ।
    पहला-एथिलीन ऑक्साइड जो हमारे शरीर के तापमान को संतुलित करती है ठंड और बरसात के समय में हमारा शरीर कफ प्रकृति का हो जाता है इस प्रकृति को यह गैस समाप्त करके हमारे शरीर को पुनः कफज प्रकृति से निकाल कर और गर्मी के तेज से बचाने के लिए सक्षम करती है।
    दूसरी गैस प्राॅपलीन ऑक्साइड है यह गैस वायु को शुद्ध और सजीव करती है और वायु में सूर्य के तेज का प्रभाव कम हो ऐसा वायु को बनाती है।
    तीसरी गैस बीटा प्रापियो-ऑक्साइड है जो हमारे शरीर में सभी तरह के विटामिंस और एसिडस के निर्माण में सहायक बनती है।
    चैथी गैस फॉर्मेलिन ऑक्साइड है जो भूमि, वायु और जल में पाए जाने वाले हानिकारक वायरस फंगस और बैक्टीरिया ग्रोथ को रोकती है और इन तीन तत्वों को शुद्ध व सजीव करती है।
    पांचवीं गैस ऑक्सीजन निकलती है जो सबको जीवन देती है।
    इसीलिए होलिका दहन हमें केवल और केवल गाय के गोबर के कंडांे से होलिका जलाना चाहिए।
  3. ज्वार, बाजरा, तिल एवं विभिन्न प्रकार के औषधीय जड़ी-बूटियाँ आदि सामग्री डालने से इनके अंदर के रसायन भी सूक्ष्म रूप में निकलते हैं जो पूरे गांव को वायु के कण के रूप में न्यूट्रीशन व सुगन्ध प्रदान करते हैं शायद गांव की बाहर मुहाने में यह होलिका दहन करने की परंपरा इन्हीं कारणों से थी ताकि इन से निकली हुई गैस पूरे गांव को लाभान्वित कर सके। पूरे गाँव का वातावरण ’सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम’ हो सके।

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