क्या श्री राम दलित विरोधी थे ?*

DR D K Garg

दलितों की राजनीति करनेवाले राजनेता दलित वोटों की तलाश में राम का चरित्र हनन और रावण का महिमा मंडन की ओछी राजनीति करते है। जिसके लिए वे वाममार्गी पेरियार की लिखित रामायण से उदहारण देते है ,जबकि उन्होंने प्रामाणिक बाल्मीकि रामायण से राम कथा को पढ़ना मुनासिब नहीं समझा। इस रामायण के लेखक पेरियार ने अपने रुग्ण मानसिकता और क्षेत्रीय सोच के तहत रावण का महिमा मंडन इसलिए किया है कि उनकी जानकारी में रावण एक दक्षिण भारतीय मूल के निवासी तमिल थे जबकि उनके अनुसार राम तथाकथित बाहरी आर्य आक्रांताओं के वंशज थे।
सच तो यह है की उस समय दलित शब्द ही नहीं था ,वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस को अगर आप पढ़ेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि उस समय कोई जाति-व्यवस्था नहीं थी। हनुमान जी आर्य थे।
भाषा के अनुसार जाति का अर्थ क्या है और दलित किसे कहते है ? ये भी समझ लेना जरुरी है।
दलित उसको कहते है जो मानव बिलकुल असहाय हो और बिना किसी की सहायता से निर्वाह ना कर सके जैसे लकवा मारा व्यक्ति, कोढी ,अपांग व्यक्ति ,अत्यंत निर्धन जो परिश्रम करने में भी असमर्थ हो आदि।
वर्ण किसे कहते है ?
वृञ् वरणे’ इस मूल शब्द से वर्ण शब्द की उत्पत्ति हुई है । वर्ण का अर्थ होता है, जिसके माध्यम से किसी का वरण किया जाये, चयन किया जाये, छांटा जाये उसको वर्ण कहा जाता है । मनुष्यों के गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर ही समाज को चार भागों में बाँट दिया गया है, जिसको कि वर्ण कहा जाता है ।
जाति का भी भावार्थ समझ ले –जाति की पहचान बताते हुये गौतम मुनि कहते हैं–
समान प्रसवात्मिका जाति:।जिसका समान प्रसव हो, वह जाति है। अर्थात् जिसके संयोग से वंश चलता हो। गाय तथा बैल से वंश चलता है। स्त्री-पुरुष से वंश चलता है। अत: ये दोनों समान जाति के हैं। मानव जाति, पशु जाति, अच्छी जाति का आम, घोड़ा, बैल, गाय, भैस आदि।योग शास्त्र कहता है―
सतिमूले तद् विपाको जाति:, आयु: भोग:।
जाति की दूसरी पहचान आयु है। जितनी आयु गाय की होगी लगभग उतनी ही आयु बैल की होगी। इसी प्रकार स्त्री-पुरुष की आयु भी लगभग समान होगी; क्योंकि ये दोनों एक ही जाति के हैं। तीसरी पहचान है-भोग। अर्थात् समान जाति वालों का आहार-विहार भी समान होगा। यह सिद्धान्त समान जाति वाले सभी प्राणियों पर प्रभावी होता है।
जो लोग जाति का अर्थ जन्म से लेते रहे हैं ये सही नहीं हैं। जाति शब्द स्त्रीलिंग है। इसकी धातु जन् है। इसमें क्तिन् प्रत्यय लगकर जाति शब्द बना है। जिसका अर्थ है-उत्पत्ति या जन्म। अर्थात् जन्म से निश्चित होने वाली जाति। जैसे-मनुष्य जाति, पशु जाति आदि। कुछ लोग जाति का अर्थ जन्मा हुआ लेते हैं। मेरे विचार से यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि शब्द है जात (जाति नहीं) यह शब्द जन् धातु में क्त प्रत्यय लगने से बना है जिसका अर्थ है जन्मा हुआ। जैसे जलजात, नवजात आदि। न कि नवजाति शिशु। इसी प्रकार बालक उत्पन्न होने के समय किया जाने वाला चौथा संस्कार-जात कर्म संस्कार है, न कि जाति कर्म संस्कार। इसे जातेष्टि संस्कार भी कहते हैं।
आशा है जाति का अर्थ स्पष्ट हो गया होगा।
इस अलोक में राम पर जाति वाद का आरोप ,दलित विरोधी का आरोप निराधार है।

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