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मार्च 1739
20- 22 मार्च सन 1739 का वह दिन दुनिया के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है, जब नादिर शाह ने अपने फारसी सैनिकों को दिल्ली में कत्लेआम का हुक्म दिया और इतिहास गवाह है कि अकेले उस एक दिन में दिल्ली में 20-30 हजार लोगों का कत्ल हुआ। सूरज उगने के साथ ही वह लाल किले से निकला, ताकि वह खुद अपनी निगरानी में इसे अंजाम दिला सके. पूरे जंगी लिबास में वह रोशन-उद-दौला की सुनहरी मस्जिद पर पहुंचा जो लाल किले के चांदनी चौक की तरफ आधे मील की दूरी पर है. बदले की कार्रवाई को वह पूरी सहूलियत से देख सके इसके लिए उसने यहां के ऊंचे बरामदे का इस्तेमाल किया. सुबह ठीक 9 बजे कत्लेआम शुरू हुआ. सबसे खौफनाक कत्लेआम चांदनी चौक के लाल किले, दरीबा और जामा मस्जिद के आसपास के इलाके में हुआ. यहीं पर सबसे महंगी दुकानें और जौहरियों के घर आबाद थे. नादिर शाह के सैनिक घर-घर जाकर लोगों को मार रहे थे, कत्लेआम करते हुए वे लोगों की संपत्ति लूट रहे थे, और उनकी बहू-बेटियों को उठा ले रहे थे,
इतिहासकार गुलाम हुसैन खान के अनुसार घरों में आग लगा दी गई. कुछ ही दिनों में गलियों और घरों में भरी सड़ती लाशों की दुर्गंध इस कदर ज़्यादा थी कि पूरे शहर की हवा इससे खराब हो गई थी. इस कत्लेआम से बचने के लिए किसी ने जहर खा लिया तो किसी ने खुद को छुरी घोंप ली. कुल मिलाकर करीब 30 हज़ार दिल्ली वालों को एक ही दिन में बेरहमी से मार दिया गया था: फारसी सैनिकों ने अपने हिंसक हाथ हर चीज़ पर और हर आदमी पर डाले, कपड़े, गहने, सोने-चांदी के बर्तन स्वीकार योग्य लूट का माल थे. दिल्ली की बहुत सी महिलाओं को गुलाम बना लिया गया. अगला दिन निजाम के लिए बेहद नागवार और बदनुमा था जब उसे अपनी ही राजधानी को लूटकर एक विजेता को मुआवज़े की रकम देनी थी. दिल्ली को पांच हिस्सो में बांट दिया गया और हर हिस्से से हर्ज़ाने की रकम का एक बड़ा हिस्सा वसूल किया जाना था.
आनंद राम मुखलिस लिखते हैं, असली लूट तो अब शुरू हुई थी. इस दिन को लोगों के आंसुओं से सींचा गया था. न सिर्फ लोगों की संपत्ति लूट ली गयी बल्कि परिवार बर्बाद हो गए. बहुत से लोगों ने ज़हर खाकर जान दे दी तो कुछ ने खुद को छुरी घोंप कर खुदकुशी कर ली. अगर संक्षेप में कहा जाए तो 348 साल की अर्जित संपत्ति का मालिक कुछ क्षणों में ही बदल गया था. ईरानियों को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ ही दिनों में उन्हें इतनी दौलत मिल जाएगी. उन्होंने कभी इतनी दौलत देखी ही नहीं थी.
नादिर शाह के दरबार के इतिहासकार मिर्ज़ा महदीअस्तराबादी की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसने लिखा है, बेहद कम दिनों में ही शाही खज़ाने और कारखानों की ज़ब्ती के लिए तैनात अधिकारियों ने अपना काम पूरा कर लिया. यहां तो हीरे, मोती, जवाहरात, रत्न, सोने, चांदी, उनके बर्तन, और दूसरी चीज़ों का सागर है. यहां पर विलासिता पूर्ण चीज़ों का इतना भंडार है कि खज़ांची और मुंशी सपने में भी इन्हें अपने बहीखातों में दर्ज़ नहीं कर पाएंगे.
16 मई को दिल्ली में विनाशकारी 57 दिन बिताने के बाद नादिर शाह ने दिल्ली को अलविदा कहा. अपने साथ मुग़लों की आठ पीढ़ियों की अकूत संपत्ति और खज़ाना भी ले गया. उसका सबसे बड़ा इनाम तख्त-ए-ताऊस था जिसमें कोहिनूर और तिमूर माणिक्य जड़े हुए थे. 16 लूट का सामान 700 हाथियों, 4000 ऊंटों और 12000 घोड़ों से खींची जा रही अलग-अलग गाड़ियों पर लादा गया था. इन सभी गाड़ियों में सोने चांदी और कीमती रत्न भरे हुए थे.
साभार – पंकज चौहान
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