किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के लिए किन शक्तियों की आवश्यकता होती है?
हमारे जीवन को आध्यात्मिक बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.5
समिन्द्ररायासमिषारभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिद्युभि।
सं देव्याप्रमत्यावीरशुष्मयागोअग्रयाश्वत्यारभेमहि।। 5।।
(सम् – रभेमहि से पूर्व लगाकर) (इन्द्र) सर्वोच्च नियंत्रक, परमात्मा (राया) गौरवशाली सम्पदा के साथ (सम् – रभेमहि से पूर्व लगाकर) (इषा) दिव्य प्रेरणाओं के साथ (रभेमहि – सम् रभेमहि) प्रत्येक कार्य प्रारम्भ करो (सम् वाजेभिः) सभी शक्तियों के साथ (पुरुश्चन्द्रैः) धारण करने वाली और पूर्ण करने वाली
(अभिद्युभिः) प्रकाशित ज्ञान के साथ (सम् – रभेमहि से पूर्व लगाकर) (देव्या) दिव्य लक्षणों के साथ (प्रमत्या) तीक्ष्ण बुद्धि (वीर शुष्मया) शत्रुओं को कंपित करने वाली बहादुरी (गो अग्रया) ज्ञानेन्द्रियों का महत्त्व (अश्वावत्या) बलशाली कर्मेन्द्रियाँ (रभेमहि – सम् रभेमहि) प्रत्येक कार्य प्रारम्भ करो।
व्याख्या:-
किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के लिए किन शक्तियों की आवश्यकता होती है?
हे इन्द्र, सर्वोच्च शक्ति, परमात्मा! हम अपना प्रत्येक कार्य अपने पास उपलब्ध निम्न शक्तियों के साथ कर पायें:-
(1) गौरवशाली सम्पदा के साथ, (2) दिव्य प्रेरणाओं के साथ, (3) स्वयं को पोषण और पूर्ण करने की सभी शक्तियों के साथ, (4) प्रकाशित ज्ञान के साथ, (5) दिव्य लक्षणों के साथ, (6) तीक्ष्ण बुद्धि के साथ, (7) शत्रुओं को कम्पित करने योग्य साहस के साथ, (8) ज्ञानेन्द्रियों को उचित महत्त्व देते हुए, (9) बलशाली कर्मेन्द्रियों के साथ।
जीवन में सार्थकता: –
हमारे जीवन को आध्यात्मिक बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
हमें सर्वोच्च शक्ति से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि एक तेजस्वी चमकदार जीवन के लिए हमें दिव्यताओं सहित सभी शक्तियाँ तथा पदार्थ प्रदान करें। केवल भौतिक सुविधाओं के पीछे भागने से यह सम्भव नहीं होता, अपितु इसके लिए हमें सर्वोच्च शक्ति परमात्मा से दिव्यताओं की प्राप्ति के लिए एक साधक का जीवन जीना पड़ता है। परमात्मा के प्रति पूर्ण साधना और दिव्य लक्षणों के अभाव में सभी पदार्थ तथा सामाजिक शक्तियाँ हमें भौतिकतावाद के पथ पर ही ले जायेंगी। जबकि साधना, श्रद्धा और दिव्यताएं हमारे जीवन को आध्यात्मिक बना देती हैं।
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