सात चरणों का चुनाव और ईवीएम

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लिमटी खरे

अठ्ठारहवीं लोकसभा के लिए मुनादी हो चुकी है। इस बार लोकसभा की 543 सीटों के लिए 7 चरणों में चुनाव होना है। लगभग 47 दिन तक अनेक प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद रहेगा। मतगणना 04 जून को संपन्न होगी। पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा, दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल, फिर 07 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई एवं 01 जून को आखिरी चरण का मतदान संपन्न होगा। चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी प्रभावी हो गई है। इस बार 18 से 19 आयुवर्ग की 85 लाख महिला मतदाता हैं इसके अलावा 19 से 29 साल के मतदाताओं की तादाद 19 करोड़ 74 लाख है। 85 साल से अधिक आयु के बुजुर्ग इस बार घर से ही मतदान कर सकेंगे।

मतदान के पहले चरण हेतु चुनावी प्रक्रिया 20 मार्च से आरंभ होगी जब इसका नोटिफिकेशन जारी होगा। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 27 मार्च, नामांकन पत्रों की जांच 28 मार्च तक और मतदान 19 अप्रैल को संपन्न होगा। दूसरे चरण के लिए नोटिफिकेशन 28 मार्च को, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 04 अप्रैल, नामांकन पत्रों की जांच 05 अप्रैल तक और मतदान 26 अप्रैल को संपन्न होगा। तीसरे चरण में नोटिफिकेशन 12 अप्रैल को, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 19 अप्रैल, नामांकन पत्रों की जांच 20 मार्च तक और मतदान 07 मई को संपन्न होगा।

चौथे चरण के लिए नोटिफिकेशन 18 अप्रैल, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 25 अप्रैल, नामांकन पत्रों की जांच 26 अप्रैल तक और मतदान 13 मई को संपन्न होगा। पांचवे चरण के लिए नोटिफिकेशन 26 अप्रैल को, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 03 मई, नामांकन पत्रों की जांच 04 मई तक और मतदान 20 मई को संपन्न होगा। छटवें चरण के लिए नोटिफिकेशन 29 अप्रैल, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 06 मई, नामांकन पत्रों की जांच 07 मई तक और मतदान 25 मई को संपन्न होगा। सतवें और अंतिम चरण के लिए नोटिफिकेशन 07 मई को, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 14 मई, नामांकन पत्रों की जांच 15 मई तक और मतदान 01 जून को संपन्न होगा। इसके साथ ही 04 जून को मतगणना की जाएगी।

यह तो था चुनावी कार्यक्रम, अब बात करते हैं चुनावों के दौरान होने वाली गफलत के बारे में। दरअसल, चुनावों के दौरान प्रत्याशियों के द्वारा मतदाताओं को लुभाने और अपने प्रतिद्वंदी की साख खराब करने के लिए तरह तरह के जतन किए जाते हैं। इन पर नजर कैसे रखी जाएगी। राष्ट्रीय, प्रादेशिक स्तर पर मीडिया संस्थानों पर तो नजर रखी जा सकती है, पर छोटे छोटे जिलों, तहसील, विकास खण्ड स्तर पर मीडिया पर नजर कैसे रखी जाएगी, यक्ष प्रश्न यही है।

हर जिले में मीडिया प्रमाणन एवं निगरानी समिति अर्थात एमसीएमसी का गठन किया जाता है। इस समिति के द्वारा उस क्षेत्र में चल रहे मीडिया माध्यमों पर नजर रखी जाती है। पिछले दो तीन चुनावों से कुछ जिलों में तो एमसीएमसी का गठन तो हुआ पर इन समितियों में स्थानीय स्तर के पत्रकारों का समावेश नहीं किया गया, जबकि यह अत्यावश्यक कदम होता है। इसके अलावा जिसका जो मन होता है वह छाप देता है। यही नहीं सोशल मीडिया का जमाना है इसके चलते मनमर्जी की खबरें कथित तौर पर यू ट्यूब चेनल चलाने वाले पत्रकारों के द्वारा दिखा दी जाती हैं।

जिला स्तर पर सोशल मीडिया पर आखिर नजर कौन रख पाएगा! नब्बे के दशक में समाचार पत्रों की जबर्दस्त बाढ़ आई थी, क्योंकि समाचार पत्र का पंजीयन निशुल्क और आसान हुआ करता था। इसी तर्ज पर वर्तमान में वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चेनल्स की भरमार है। इनमें से प्रमाणिक कितने हैं, और वेब पोर्टल्स या यूट्यूब चेनल्स के नाम पर माईक आईडी लेकर पत्रकारिता के पेशे को बदनाम करने वाले कितने! यह पता करना बहुत आसान नहीं है। सीधे शब्दों में कहा जाए कि देशी घी अर्थात असली श्रमजीवी पत्रकार के बजाए अब डालडा नकली पत्रकार में भेद करना बहुत मुश्किल है। यह काम जिला स्तर पर कलेक्टर के द्वारा आसानी से किया जा सकता है।

बहरहाल, नेताओं के द्वारा कई बार एक दूसरे पर लांछन लगाते हुए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे उचित नहीं माना जा सकता है। चुनाव आयोग को चाहिए कि नेताओं के लिए भी प्रथक से गाईड लाईन जारी की जाएं, ताकि आपसी सौहाद्र पूरी तरह बना रहे। इसके साथ ही धनबल और बाहुबल पर रोक कैसे लग पाएगी, क्योंकि इस पर निगरानी संभव प्रतीत नहीं होती है। प्रत्याशियों के द्वारा दिए जाने वाले खर्च के ब्योरे और उसके द्वारा वास्तव में किए गए खर्च की बारीकी से जांच शायद ही हो पाती हो।

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