महाभारत की प्रमुख पात्र गांधारी*-*सत्य की खोज*
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डॉ डी के गर्ग
“ रामायण और महाभारत के प्रति भ्रांतिया;; से साभार
भाग-2
गांधारी द्वारा अपनी आँखों पर पट्टी बाँधने का विश्लेषण
इस कथानक में मुहावरे की भाषा,उपमा अलंकार का प्रयोग है ।आँखों पर पट्टी बांध लेना एक लोकोक्ति यानी मुहावरा है। जिसमें कहा जाता है कि “भाई, उसने तो अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली है”. इतिहासकार ने गांधारी के लिए इस मुहावरे का जो प्रयोग किया है ,इसके पीछे कुछ कारण है ,परंतु ये मुहावरा गांधारी के साथ जुड़ गया ।
इसके पीछे कुछ तर्क भी है ,जिन पर विचार करना चाहिए।जैसे कि :
१ जब गांधारी का विवाह होने पूर्व ही उसको ध्रतराष्ट्र के नेत्रहीन होने का मालूम था ,और नेत्रहीनता उसको पसंद नहीं थी तो वह विवाह करने से मना कर सकती थीं । उस समय भी कन्या को पसंद का वर चुनने की आजादी थी। ऐसे अनेकों उदाहरण मिलेंगे जैसे द्रौप्ती का विवाह,सीता का विवाह के लिए उपयुक्त वर की तलाश की गई।
2 पूरे महाभारत के युद्ध में गांधारी की कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं मिली जिसमे उसने युद्ध रोकने के प्रयास किए हो।
3 गांधारी ने सुरु से ही आँखों पर पट्टी बांध ली थी कि वह पति के हर अच्छे-बुरे काम को आँख बंदकर समर्थन देने या उस पर मौन रहेगी। इसी कारण इतिहास में लिखा गया कि उसने आँखों पर पट्टी बाँध ली थी.
एक और बात है की वह धृतराष्ट्र के 3.अपने दुष्ट बेटे दुर्योधन के प्रति , धृतराष्ट्र के अंधे मोह से क्या वह अपरिचित थी? वह सब जानते हुए,देखते हुए ,अनजान बनी रही जैसे कि आंखो पर पट्टी बांध रखी हो।
4.द्यूत क्रीड़ा द्रोपदी के चीरहरण के प्रयास के समय धृतराष्ट्र राजा होने के कारण इसे रोक सकता था. इतना बड़ा घटनाक्रम राज्यसभा में हो रहा था, तो क्या गांधारी को इसकी खबर नहीं थी? यदि नहीं थी तो यह बड़ी अजीब बात है कि इतने सारे व्यक्तिगत सेवकों के होते हुए उसे इस घटनाक्रम की जानकारी नहीं थी? उसने घिनौने घटनाक्रम को रोकने का प्रयास नहीं किया और अंधी बनी रही।
सारा घटनाक्रम हो चुकने के बाद जब द्रोपदी कौरवों को श्राप देने वाली थी, तो गांधारी बहुत नाटकीय रूप से प्रकट हो गयी और उसने युक्ति के साथ द्रोपदी को ऐसा करने से रोक लिया. इससे यह तो साबित होता ही है कि अपने पुत्रों की नीच कारगुजारियों के बाद भी वह उनके लिए सजा नहीं चाहती थी और पूरे घटनाक्रम में उसने आँखों पर पट्टी बंधे रही।
क्योंकि यदि उसके मन में दुर्योधन के सारे दुष्ट कर्मों के प्रति कोई सहमति नहीं होती, तो वह तटस्थ भी रह सकती थी कि जो जीतेगा सो जीतेगा. लेकिन उसने दुर्योधन की जीत का पूरा प्रबंध कर दिया.वो तो महान कूटनीतिक श्रीकृष्ण की चतुराई थी कि भीमसेन दुर्योधन को पराजित कर सके, वरना इसकी कोई संभावना ही नहीं थी.
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट हैं कि गांधारी वह भी मोह में अंधी होकर उसका समर्थन कर रही थी और अनजान यानि की अंधी बनी रही।यदि वह आंखों पर पट्टी नहीं बांधती तो युद्ध की दशा और दिशा कुछ और होती।
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