इस्लाम का असली कलमा क्या होना चाहिए ?

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अरबी शब्द “कलमा – کلمہ ” का हिंदी में अर्थ उक्ति,शब्द; वचन; बात · वाक्य; होता है और अंगरेजी में इसे A word, speech, saying, discourse; a vocable, part of speech; भी कह सकते हैं ,अरब के आलावा अन्य लोग भी किसी व्यक्ति केगुण अवगुणो के आधार पर उस व्यक्ति के नाम में विशेषण लगा देते हैं जैसे सच्चा होने से अबूबकर को सिद्द्दीक लगा दिया शेर की तरह बहादुर होने से अली को असद अल्लाह का नाम लगा दिया या अल्लाह का वली होने से वली उल्लाह इत्यादि इसी तरह भारत में मूर्खता के कारन राहुल को पप्पू कहा जाता है ऐसे ही वाक्यांशों को कलमा कहा जाता है ,वैसे तो इस्लाम के 6 कलमा यानि मूलमंत्र हैं लेकिन दो कलमा इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह अजान में रोज पांच बार लाऊड स्पीकर से बोले जाते हैं वह इस प्रकार हैं और इनके भी दो भाग है
पहला कलमा तय्यब
(لَآ اِلٰهَ اِلَّااللهُ مُحَمَّدٌ رَّسُولُ اللہِ
“ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि”
अल्लाह के आलावा कोई उपास्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं
दूसरा कलमा शहादत
اَشْهَدُ اَنْ لَّآ اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَحْدَہٗ لَاشَرِيْكَ لَہٗ وَاَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهٗ وَرَسُولُ
“अशहदु अल्लाह इल्लाह इल्लल्लाहु वह दहु ला शरी-क लहू व अशदुहु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु ”
मैं गवाही देता हुँ के मुहम्मद अल्लाह के बन्दे और रसूल है।”
1-दौनों कलमा के पहले भाग का सही अर्थ
अगर आप इन दोनों कलमा के पहले भाग को पढ़ेंगे तो आपको यही समझ में आएगा कि इसमें एकहि ईश्वर की उपासना करने को कहा गया है अर्थात एकेश्वरवाद (Monotheism )का आदेश दिया गया है ,जैसे हिन्दू ,यहूदी ,ईसाई और सिख ईश्वर को एक ही मानते है उदहारण के लिए
1.वेद में -“एको देवा सर्व भूतेषु गूढः ”
2.यहूदी धर्म- शेमा इस्राएल अदोनाय एलोहेनु इहाद ”
3.ईसाई धर्म -“Credo in Unum Deum Patrem Creatur Chaeli et Terra ”
4.सिख धर्म -“१ ओंकार सतनाम करता पुरख निरभौ निर्वैर ”
इस प्रकार यह सभी धर्म एकहि ईश्वर की उपासना करते हैं ,इसके विपरीत इस्लामी कलमा में अकेले ऐसे अल्लाह की इबादत करने को कहा गया जो अरबी के आलावा कुछ नहीं समझता ,यदि विश्वास नहीं हो तो किसी मौलवी से पूछिए की हम संस्कृत ,हिब्रू या लैटिन भाषा ने नमाज पढ़ना चाहते हैं , मौलवी साफ मना कर देगा क्योंकि अल्लाह मुहम्मद द्वारा एक कल्पित चरित्र है यही कारन है की इस्लाम से पहले की किसी किताब में अल्लाह शब्द नहीं मिलता ,इसलिए कल्पित अरबी अल्लाह पर ईमान रखना और उसकी झूठी गवाही देना अज्ञानता और मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है
2-कलमा का दूसरा भाग -झूठी गवाही
कलमा के दूसरे भाग में मुसलमानों से यह बोलने को कहा जाता है कि मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल है ” यह दुनिया की सबसे बड़ी झूठी गवाही है जो बिना किसी के मांगे सन 610 से आज तक लगातार दी जा रही है ,क्योंकि मौखिक गवाही तभी दी जाती है जब कोई ठोस प्रमाण जैसे कोई लिखित डोकुमेंट नहीं होता वास्तव में मुसलमान मुहम्मद को रसूल साबित करने के लिए झूठी गवाही इसलिए देते हैं कि उसके नाम से दुनिया में जिहाद करते रहें जबकि सन 628 में ही एक संधिपात्र में लिख कर स्वीकार किया था कि “अल्लाह का रसूल नहीं हूँ , बल्कि अब्दुल्लाह का पुत्र हूँ
“हाजा मा मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह कद वाकिफत अलैहि- هذا ما محمد بن عبد الله قد وافقت عليه”
यह शब्द मुहम्मद ने स्वयं अपने हाथ से लिखे थे और जिस संधिपत्र पर लिखा था वह आज भी तुर्की के संग्रहालय में रखा है
The Peace Treaty of Hudaibiyah
https://tinyurl.com/bdexz9f8
“इस विषय पर होने विस्तार से दो लेख पोस्ट किये थे जिनके नंबर हैं
200 /52 अनपढ़ रसूल को लिखना पड़ा !2
https://bhaandaaphodu.blogspot.com/2024/03/2.html
संख्या -398 जब मुहम्मद ने कबूला कि मैं रसूलल्लाह नहीं !
https://bhaandaaphodu.blogspot.com/2024/03/blog-post_18.html
जो लोग जरा जरा सी बात पर रसूल की सुन्नत का हवाला देकर हलाल -हराम का फ़तवा देते रहते हैं वह कलमा में मुहमद के रसूल होने की झूठी गवाही क्यों दते और दूसरों को देने का सुन्नत विरोधी काम क्यों करते हैं जबकि खुद मुहम्मद ने लिख कर कबूल किया था कि मैं अल्लाह का रसूल नहीं हूँ
अगर मुसलमान सचमुच मुहम्मद पर ईमान रखते है तो उन्हें ऐसा कलमा पढ़ना चाहिए
“لا الله اِلّآلٰه مُحمد بِن عبد الٰه ”
ला अल्लाह इल्ल इलाह -मुहम्मद बिन अब्द इलाह
अर्थात – इलाह के अलावा कोई अल्लाह नहीं है -मुहम्मद अब्दे इलाह का पुत्र है
हमने तो सभी प्रमाण दे दिए है भले लोग माने या नहीं माने लेकिन हम मुहम्मद की इस बात पर पूरी तरह से ईमान रखते है कि मुहम्मद अल्लाह का रसूल नहीं बल्कि अब्दुल्लाह का पुत्र था ,
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बृजनंदन शर्मा

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