CAA कानून का विरोध शरीयत के अनुसार

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  • दिव्य अग्रवाल (लेखक व विचारक)

CAA कानून संविधान विरोधी और UCC मजहबी विरोधी क्यों-
यह कैसी विडंबना है जब बात CAA कानून की हो तो इस्लामिक कट्टरपंथी कहते हैं कि सारे धर्म और मजहब एक सामान है अतः धर्म के आधार पर गैर इस्लामिक लोगो को इस कानून के अंतर्गत लाभ देना असंवैधानिक है । परन्तु यही बात जब UCC कानून की हो तो इस्लामिक कट्टरपंथी कहते हैं कि सारे धर्म या मजहब एक समान हो ही नहीं सकते, इस्लाम पर UCC कानून लागू नहीं हो सकता इस्लाम शरीयत से चलेगा इसमें कानूनी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इन दोनों ही मतों से एक बात तो स्पष्ट है की इस्लामिक कटटरपंथ के लिए भारत का कानून नहीं अपितु इस्लामिक राष्ट्रों का शरीयत क़ानून ही सर्वप्रथम और सर्वोपरि है ।

काफिर / गैर इस्लामिक की मदद शरीयत के खिलाफ-
कोई भी गैर इस्लामिक जो अल्लाह में विश्वास नहीं रखता शरीयत में उसकी किसी भी प्रकार की सहायता करना या सहायता होने देना नाजायज है। यही कारण है की जिस CAA कानून का भारत के मुस्लिम समाज पर कोई भी प्रभाव पड़ने वाला नहीं है उसके पश्चात भी मजहबी लोग मात्र इसलिए परेशान है की जो गैर इस्लामिक समाज के लोग अन्य इस्लामिक देशो में प्रताड़ित है उनको भारत में किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलनी चाहिए।

आपसी भाईचारा समरसता या पागलपन-
यह बात अलग है की भारत का गैर इस्लामिक समाज ,अपने समाज के लोग जिनका इस्लामिक देशों में निरंतर शोषण होता आ रहा है , जिनकी महिलाओं , बेटियों के साथ सामूहिक दुराचार किया जाता है, जिनकी दर्दनाक हत्या कर दी जाती हैं उनकी मदद के लिए भारत सरकार के प्रयासों का विरोध करने वाले मजहबी कट्टरपंथियों को अपना भाई बंधु समझकर भाईचारा निभाने में ही प्रयासरत रहता है। अब यह भाईचारा समरसता का प्रतीक है या बेवकूफी का, इसका निर्णय तो भारत का गैर इस्लामिक समाज स्वयं ही कर सकता है ।

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