अलग-अलग रुचि और अलग-अलग स्वभाव के लोग रहते हैं संसार में

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    कोई व्यक्ति खेलकूद में अपना सुख ढूंढता है, कोई गीत संगीत में, कोई खाने पीने में, कोई फैशन में, और कोई सुंदर वस्त्र आभूषण में। *"हर व्यक्ति सुख या प्रसन्नता को प्राप्त करने के लिए दिन रात योजनाएं बनाता रहता है, और उसके लिए पुरुषार्थ भी करता है। इन सब कार्यों में सुख मिलता भी है, प्रसन्नता मिलती भी है।  इसमें कोई संदेह नहीं है।परन्तु यह सब सुख या प्रसन्नता क्षणिक है। कुछ देर की है।यह बाह्य कारणों से, अर्थात इंद्रियों के रूप रस गन्ध आदि विषयों को भोगने से प्राप्त होती है। यह प्रसन्नता निम्न स्तर की है, इसलिए व्यक्ति कुछ समय बाद ऐसी प्रसन्नता से ऊब जाता है, या बोर हो जाता है।यदि आप इससे उत्तम स्तर का सुख या प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते हों, तो अंदर से प्राप्त करें। वह सुख या प्रसन्नता कैसे मिलती है? दूसरों को सुख देने से। अर्थात यदि आप दूसरों को सुख देते हैं, उनकी सेवा करते हैं, योग्य पात्रों को दान देते हैं, या अन्य भी किसी प्रकार की दूसरों की सहायता करते हैं, तो आपकी इस परोपकार की क्रिया से दूसरे लोगों को सुख मिलता है। ;तब ईश्वर आपको आपके अंदर से, मन से उत्तम सुख देता है। उसका नाम उत्तम प्रसन्नता है। यह देर तक बनी रहती है। और इससे व्यक्ति को संतोष एवं तृप्ति का अनुभव होता है, जो बाह्य इंद्रियों से मिलने वाले रूप रस गन्ध आदि विषयों के क्षणिक सुख में नहीं हो पाता। इसलिए यह आंतरिक प्रसन्नता अधिक उत्तम है।
     प्रश्न -- यदि हम दूसरों को ऐसे सुख देने लगे, तो हमारी इच्छाओं का क्या होगा? वे तो पूरी हो नहीं पाएंगी। *"जब हमारी इच्छाएं ही पूरी नहीं हो पाएंगी, तो हमें सुख शांति प्रसन्नता कैसे मिलेगी?
    उत्तर -- यदि आप दूसरों की इच्छाएं पूरी करेंगे, और उसमें आपको अपनी इच्छाएं छोड़नी पड़ेंगी या बदलनी पड़ेंगी,तो यहां पर यही बात तो समझने की है, कि अपनी इच्छाओं को बदलकर के, सेवा परोपकार आदि करने  की इच्छा बना कर, जो आप दूसरों की सेवा करेंगे, दूसरों की सहायता करेंगे, उसी के बदले में ईश्वर आपको अंदर से उत्तम सुख देगा, प्रसन्नता देगा। इसलिए ऐसा करने में कोई हानि नहीं है।
    समस्या तो तब आएगी, जब आप रूप रस गन्ध आदि विषयों का क्षणिक सुख लेने की अपनी इच्छाएं छोड़कर दूसरों की सेवा करें, और आपको उसके बदले में कुछ भी न मिले।
     परन्तु वेदादि सत्य शास्त्रों में तो लिखा है, और प्रत्यक्ष प्रमाण से भी बात सिद्ध है किअपनी इच्छाएं बदल लेने से, अर्थात जिस समय आपको रूप रस गन्ध आदि विषयों का सुख लेने की इच्छा हो, उस समय अपनी उन इच्छाओं में से कुछ इच्छाएं कम कर के, उस समय में दूसरों की सेवा करने की इच्छा बना कर, दूसरों की सेवा करने से जो सुख मिलता है, वह उत्तम क्वॉलिटी का है।इसलिए ऐसा करने में कोई हानि नहीं है, बल्कि लाभ ही अधिक होगा। आपको बढ़िया आनन्द मिलेगा। आप एक दो महीना प्रयोग करके देख लीजिए। आपको परिणाम ऐसा ही मिलेगा, जैसा हम बता रहे हैं।
      अब दोनों रास्ते आपके सामने हैं। रूप रस गन्ध आदि विषयों का सुख लेने की अपनी इच्छाएं पूरी करके निम्न स्तर का सुख भोगें।; अथवा अपनी इच्छाओं को बदलकर, सेवा परोपकार आदि करने  की इच्छा बना कर, परोपकार आदि कर्म कर के उत्तम सुख या प्रसन्नता को प्राप्त करें।जो रास्ता आपको अच्छा लगे, उस पर चलें।

—स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।

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