जब हम सर्वोच्च आध्यात्मिक इच्छा को धारण कर लेते हैं तो क्या होता है?
उच्च अधिकारियों के साथ पवित्र और दिव्य सम्बन्धों का क्या महत्त्व है?
शचीवइन्द्रपुरुकृद् द्युमत्तमतवेदिदमभितश्चेकितेवसु।
अतः संगृभ्याभिभूतआभरमात्वायतोजरितुः काममूनयीः।।
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.3
(शचीवः) सभी विद्वानों में सर्वोच्च विद्वता, सभी शक्तियों, बलों और ऊर्जाओं का स्रोत (इन्द्र) सर्वोच्च नियंत्रक, परमात्मा (पुरुकृत्) प्रत्येक को धारण और पूर्ण करता है (द्युमत्तम) सभी ज्ञानों का सर्वोच्च प्रकाश (तवेत्) केवल आपका है (इदम्) यह (अभितः) सभी दिशाओं में (चेकिते) यह सर्वत्र जाना जाता है (वसु) समस्त सम्पदा, सभी आवास (अतः) इसमें से (संगृभ्यः) प्राप्त करो और प्रयोग करो (अभिभूते) सभी बुराईयों और शत्रुओं का नाशक (आभरः) हमें पूर्ण करो (मा) नहीं (त्वायतः) आपको अपनाने का इच्छुक (जरितुः) आपकी महिमा गाने वालों का (कामम्) इच्छाएँ (उनयीः) अपूर्ण।
व्याख्या:-
सर्वोच्च इन्द्र, परमात्मा कौन है?
किसकी इच्छाएँ अपूर्ण नहीं रहती?
सर्वोच्च इन्द्र अर्थात् परमात्मा:-
(1) शचीवः – सभी विद्वानों में सर्वोच्च विद्वता, सभी शक्तियों, बलों और ऊर्जाओं का स्रोत
(2) पुरुकृत् – प्रत्येक को धारण और पूर्ण करता है
(3) द्युमत्तम – सभी ज्ञानों का सर्वोच्च प्रकाश।
यह सर्वमान्य है कि सभी सम्पदाएं और सभी दिशाओं में सभी आवास केवल उसी के हैं।
उस सर्वोच्च इन्द्र की सम्पदा का एक छोटा सा भाग मैं प्राप्त करता हूँ और प्रयोग करता हूँ। कृपया मेरे जीवन को पूर्ण करो। आप सभी बुराईयों और शत्रुओं का नाश करने वाले हो। जो लोग आपकी इच्छा करते हैं और आपकी महिमा गाते हैं, आप उनकी इच्छाओं को अपूर्ण नहीं छोड़ते।
जीवन में सार्थकता: –
जब हम सर्वोच्च आध्यात्मिक इच्छा को धारण कर लेते हैं तो क्या होता है?
उच्च अधिकारियों के साथ पवित्र और दिव्य सम्बन्धों का क्या महत्त्व है?
हमारी सर्वोच्च इच्छा एक ही होनी चाहिए कि हम सर्वोच्च ऊर्जा अर्थात् परमात्मा के साथ अटूट सम्बन्ध की अनुभूति प्राप्त कर सकें। एक बार जब हम इस सर्वोच्च आध्यात्मिक इच्छा की पूर्ति के लिए अग्रसर होते हैं तो हम निम्न स्तरीय सांसारिक इच्छाओं से असम्बद्ध हो जाते हैं और यदि किसी अवस्था में हम कुछ भी इच्छा करते हैं तो वे इच्छाएँ परमात्मा के द्वारा निश्चित रूप से पूरी की जाती हैं। सर्वोच्च आध्यात्मिक इच्छा के बिना प्रत्येक व्यक्ति सांसारिक स्तर का निम्न जीवन जीता है। यह ऐसा होता है जैसे सर्वोच्च दाता से जुड़े बिना भौतिक वस्तुओं के पीछे भागना।
इसी वर्ग या समाज में कार्य करते हुए यदि हम अपने सर्वोच्च अधिकारियों या नेतृत्वकर्ता की संगति की इच्छा करते हैं तो हमारे लिए निम्न स्तर की इच्छाएं निरर्थक हो जाती हैं या उन्हें प्राप्त करना सरल हो जाता है। अतः उच्च अधिकारियों के साथ सदैव शुद्ध और दिव्य सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करो।
अपने आध्यात्मिक दायित्व को समझें
आप वैदिक ज्ञान का नियमित स्वाध्याय कर रहे हैं, आपका यह आध्यात्मिक दायित्व बनता है कि इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें जिससे उन्हें भी नियमित रूप से वेद स्वाध्याय की प्रेरणा प्राप्त हो। वैदिक विवेक किसी एक विशेष मत, पंथ या समुदाय के लिए सीमित नहीं है। वेद में मानवता के उत्थान के लिए समस्त सत्य विज्ञान समाहित है।
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