वास्तविक यज्ञ करने वाला व्यक्ति किस प्रकार का होता है?
वास्तविक यज्ञ करने वाला व्यक्ति किस प्रकार का होता है?
यज्ञ के स्थान पर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण होता है?
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.1
न्यू३षुवाचंप्रमहेभरामहेगिरइन्द्राय सदनेविवस्वतः।
नूचिद्धि रत्नंससतामिवाविदन्न्ादुष्टुतिर्द्रविणोदेषु शस्यते।। 1।।
(नि – भरामहे से पूर्व लगाकर) (सुवाचम्) उत्तम वाणियाँ (प्रार्थनाओं तथा पूजा की) (प्र – भरामहे से पूर्व लगाकर) (महे) महान् (भरामहे – नि प्र भरामहे) निश्चित रूप से विनम्रता के साथ प्राप्त रवाता है (गिरः) स्तुति की वाणियाँ (इन्द्राय ) इन्द्र के लिए, परमात्मा के लिए (सदने) घर में (विवस्वतः) यज्ञ करने वाले विद्वान् (नूचित्हि) निश्चित रूप से शीघ्र (रत्नम्) सम्पदा (ससताम् इव) निद्रा की अवस्था से, आलस्य और अकर्मण्यता से (आविदत्) वापिस प्राप्त करते हैं (न) नहीं (दुष्टुतिः) कुटिल व्यक्तियों के द्वारा की गई प्रशंसा (द्रविणो देषु) दान देने वालों के बीच में या उनके सम्बन्ध में (शस्यते) मूल्यांकन।
व्याख्या:-
यज्ञ के स्थान पर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण होता है?
यज्ञ करने वाले विद्वानों के घर पर प्रार्थना, पूजा और इन्द्र अर्थात् परमात्मा की स्तुति की ध्वनियाँ पूरी विनम्रता के साथ उपलब्ध होती हैं। दूसरी तरफ निद्रालीन, आलसी और थके हुए लोगों से सम्पदा निश्चित रूप से चली जाती है। उदार और दानी लोगों की उपस्थिति में धूर्त और कुटिल लोगों की प्रशंसा का कोई मूल्य नहीं होता।
जीवन में सार्थकता: –
वास्तविक यज्ञ करने वाला व्यक्ति किस प्रकार का होता है?
जो लोग वास्तविक यज्ञ करते हैं अर्थात् दूसरों के कल्याण के लिए अपना सहयोग देते हैं, उन्हें निश्चित रूप से परमात्मा की भक्ति का उपहार मिलता है। वे इसलिए यज्ञ करते हैं क्योंकि वे महसूस करते हैं कि उनकी सम्पदा पर अन्य जरूरतमंद लोगों का सामाजिक अधिकार है; क्योंकि वे जरूरतमंद लोगों के प्रति विनम्र होते हैं; क्योंकि उन्हें इस बात की अनुभूति होती है कि सम्पदा का वास्तविक दाता तो केवल भगवान है।
अतः ऐसे विवस्वतः लोगों को परमात्मा की पूजा और स्तुति रूपी विनम्र वाणियाँ उपहार में मिलती हैं।
यह एक मूल वास्तविकता है कि वास्तविक यज्ञ करने वाले लोग ही वास्तविक परमात्म तत्व के अनुभूतिकर्ता होते हैं, क्योंकि वास्तविक यज्ञ उन्हें अहंकार रहित और इच्छा रहित बना देता है।
जबकि अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति सोये हुए लोगों से उनकी सम्पदा दिव्य शक्तियों के द्वारा वापिस ले ली जाती है।
उदार और दानी लोगों की प्रशंसा सर्वत्र होती है, परन्तु ऐसे लोगों के मध्य धूर्त और कुटिल लोगों की प्रशंसा को कोई मान्यता नहीं मिलती।
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