रहस्यों से भरी हुई है पाताल लोक की दुनिया

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रहस्यमय है पाताल लोक की दुनिया

(दीपक नौगाई’अकेला’-विनायक फीचर्स)

 प्रकृति के जितने करीब जाओ , उतना ही वह नए रुप में हमारे सामने आती है । बात उतराखण्ड की हो तो इस देवभूमि मे अनेक ऐसे रहस्यमय स्थान है,  जिनके दर्शन आपको चकित एवं मंत्रमुग्ध कर देंगे । ऐसा ही एक स्थान कुमाऊं मण्डल के पिथौरागढ़ जनपद में गंगोलीहाट कस्बे  के समीप भुवनेश्वर गाँव में है । यह है पाताल भुवनेश्वर गुफा । प्रकृति का एक अनबूझ रहस्य जिसके लोक में पहुँच कर युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है । 

 गुफा के भीतर  ऊबड़-खाबड़,  टेढे मेढ़े पत्थरों पर पैर टिका कर 84 सीढ़ियों से होकर गुजरते हुए आप पाताल लोक  मे पहुँच जाते हैं । अंदर की अद्भुत दुनिया रोमांचित कर देती है । छोटी बड़ी विभिन्न देवी देवताओं व पशु पक्षियों के आकार की शिलाएँ । एक ऐसा रचना संसार जिसकी बाहर रहते आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी । धरती के भीतर बड़ी गुफा जो कई भागों में बंट जाती है । बीच में मैदानी हिस्से भी फैले हुए हैं ।

 पहले लोग मशाल जला कर गुफा में जाते थे । लंबे समय तक मशाल के धुएं से गुफा के भीतर कालिख की परत जम गई । 1989 में  सेना के सहयोग से जेनरेटर की व्यवस्था कर गुफा के अंतिम छोर तक रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई है । गुफा के रास्ते के दोनों ओर जंजीर लगाई गई है,  जिसे पकड़ कर यात्री प्रवेश करते और बाहर आते हैं । गुफा में जाने के लिए फीस भी रखी गई है ।  



स्कंद पुराण में भी उल्लेख

स्कंद पुराण के 103 वें अध्याय में पाताल भुवनेश्वर गुफा का वर्णन है, जिसमें व्यास जी ने कहा है कि मैं एक ऐसी जगह का वर्णन करता हूँ , जिसके पूजन करने के संबंध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्श मात्र करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । वह सरयू रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्वर है ।

वर्ष 2007 से यह गुफा भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है । हालांकि गुफा में प्रवेश व जनरेटर की व्यवस्था का कार्य मंदिर कमेटी द्वारा किया जाता है ।मुख्य व्यवस्थापक दान सिंह भंडारी ने विशेष रुचि व प्रयासों से गुफा स्थल को विकसित किया है ।

भुवनेश्वर गाँव निवासी स्वर्गीय मेजर समीर कोतवाल की स्मृति में गाँव से गुफा की ओर जाने वाले मार्ग में बने प्रवेश द्वार को ' समीर द्वार ' नाम दिया गया है । मेजर समीर 28 अगस्त 1999 को आसाम में  उग्रवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे । द्वार के बगल में मेजर की प्रस्तर प्रतिमा भी  स्थापित है । 

कहते हैं कि इस अद्भुत गुफा के दर्शन त्रेता युग में अयोध्या के राजा ऋतुपूर्ण ने पहली बार किये थे। राजा चौपड़ खेलने के बहुत शौकीन थे । उनके मित्र राजा नल भी इस खेल के महारथी थे । पर एक बार वे इस खेल में अपनी पत्नी दमयंती को हार गए । राजा नल इस हार से बहुत शर्मिंदा हुए और वे राजा ऋतुपूर्ण को साथ लेकर हिमालय की यात्रा पर निकल पड़े ।

 एक दिन घने जंगल में उन्हे असाधारण हिरण दिखा । राजा नल ने कहा इस हिरण को जिंदा पकड़ना है । दोनों उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे लग गए । हिरण का पीछा करते हुए वे भुवनेश्वर गाँव जा पहुंचे । शाम हो गई और हिरण भी कहीं दिखलाई नहीं दिया । राजा रास्ता भटक गए । रात में उन्हे स्वप्न हुआ और आवाज़ सुनाई दी- ' तुम  क्षेत्रपाल देवता की तपस्या करो, वही तुम्हें रास्ता बताएंगे । ' राजा तपस्या करने लगे। कुछ दिनों बाद क्षेत्रपाल ने दर्शन  दिए और कहा कि इस स्थान पर एक बड़ी सुरंग है,  जहाँ कई गुफाएं है और जहां कण कण में भगवान शिव निवास करते हैं । क्षेत्रपाल ने राजा को इस दिव्य लोक में पहुँचा दिया ।

  यह भी माना जाता है कि अपने अज्ञात वास में पाण्डव भी यहाँ आए थे । उन्होंने कुछ समय इस गुफा में वास किया था । गुफा के भीतर चौपड़ की आकृति भी बनी हुई है ।  822 ई मे अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान आदि गुरु शंकराचार्य भी यहाँ आए। उन्होंने गुफा के अंदर एक जगह पर तांबे का शिवलिंग स्थापित किया । गुफा में जाने वाले श्रृद्धालु इस शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं ।



 भुवनेश्वर गाँव

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