ब्रह्मचित्त जो हो गया, मिले ब्रह्म निर्वाण।

आत्म – कल्याण कैसे हो:-

ब्रह्मचित्त जो हो गया,
मिले ब्रह्म निर्वाण।
काम- क्रोध से मुक्त हो,
होय आत्म-कल्याण॥2572॥

ब्रह्मचित्त अर्थात जिसका चित्त ब्रह्म जैसा हो । ब्रह्मनिर्वाण अर्थात्-मोक्ष

वे कौन सी तीन चीजें हैं, जो संसार में दुर्लभ है:-

दर्लभ मानव जन्म है,
मोक्ष और सत्संग।
पुण्यात्मा को मिले,
इन तीनों का संग॥2573॥

जीवन, का अन्तिम ध्येग क्या है :-

साधन सुविधा के लिए,
मत समझो इन्हें प्रेय।
तेरा प्रेय परमात्मा,
वही है अन्तिमध्येय॥2574॥

जब प्रभु की महती कृपा होती है :-

(i)
मुश्किल से हिये में बहे,
भक्ति की रसधार।
प्रभु-कृपा इसे जानिये,
निज प्रतिबिम्ब निहार॥2575॥

(ii)
प्रभु-भक्ति का रंग जब,
गहरा होता जाय।
ब्रह्म-रस का पान हो,
भवसागर तर जाय॥ 2576॥

देह-दृष्टि में नहीं,आत्म- दृष्टि में जीओ :-

आत्म-दृष्टि में जीओ,
देह- दृष्टि को छोड़।
नेकी कर हरि – नाम ले,
मनुआ अपना मोड़॥2577॥

स्वयं को जानो, लक्ष्य को पहचानो :-

रथ में बैठा है रथी,
मन के हाथ लगाम ।
बुध्दि जाकी सारथी,
लक्ष्य हरि का धाम॥2578॥

विशेष :-मन प्रभु भजन में कैसे लगे :

मन तो दरिया की तरह,
बहना इसका काम।’
बाहर से इसे रोक दे,
अन्दर भज हरि – नाम॥2579॥

भावार्थ :- अधिकांश लोग यह कहते है- क्या करें भगवान के भजन में मन नहीं लगता है। इसके लिए मन के स्वभाव को जानिये।
मन का स्वभाव है – बहना अर्थात् निरन्तर नदिया की तरह गतिमान रहना । ध्यान रहे नदिया एक तरफ को बहती है, जबकि मन दोनों तरफ को बहता है। इसका एक ही उपाय है, जैसे नदी के प्रवाह को बाँध लगाकर रोका जा सकता है, ठीक इसी प्रकार दृढ संकल्प और संयम को बाँध लगाकर इसे संसार के प्रपंचों से रोककर परम पिता परमात्मा के ध्यान में लगाओ। यह अभ्यास निरन्तर करते रहिये। आपकी नति अर्थात रुझान तथा मति अर्थात बुध्दि दोनों बदलेंगी । यहाँ तक कि आपकी दिनचर्य बदलेगी, जीवन शैली बदलेगी, मन को शान्ति मिलेगी और आत्मा को आत्मानन्द मिलेगा। जरा इसका अभ्यास निरन्तर कर के तो देखिए।
क्रमशः

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