- डॉ डी के गर्ग
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दरअसल इस प्रसंग का वर्णन महाभारत के आदि पर्व में भी मिलता है। जिसके अनुसार एक बार शेषनाग ने इस पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया था और जब वो (शेषनाग) थोड़ा सा हिलते हैं तो भूकंप आता है।क्या धरती किसीं वस्तु या प्राणी पर जैसे कि शेषनाग पर टिकी हुई हैं ?
यदि धरती शेषनाग पर टिकी हुई है तो शेषनाग किसके ऊपर टिका हुआ है ?
शेषनाग की आयु निश्चित होती है ,एक रिपोर्ट के मुताबिक कैद में रहने वाले सांपों की औसतन उम्र 13 से 18 साल होती है जबकि जंगलों में रहने वालों सांपों की औसतन उम्र 10 से 15 साल ही होती है. ये शेषनाग आजकल कहा है ,वैज्ञानिक क्या कहते है ? कोई खोज भी हुई होगी ? इसका उत्तर किसी के पास नहीं हैै।
विज्ञानं क्या कहता है ? दरअसल धरती कहीं पर भी नहीं टिकी हुई है बल्कि अंतरिक्ष में एक निश्चित दायरे में घूम रही है। अपनी धुरी के अलावा ये सूर्य की विशाल परिक्रमा करती रहती है। ये स्कूल में बहुत छोटी कक्षाओं से ही पढ़ाया जाता है की पृथ्वी के अंदर दहकता हुआ लावा भरा हुआ है और उस लावे के ऊपर सात टेक्टोनिक प्लेट तैर रहे हैं और उन्हीं सातों टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर पृथ्वी टिकी हुई है, जिस पर हम लोग रहते हैं। न केवल धरती बल्कि सूरज, चाँद, तारे सब अंतरिक्ष में निश्चित दायरों में परिक्रमाएँ करते हैं। करोड़ों तारे एक बड़े समूह में जिसे गैलेक्सी कहते है , विचरण करते हैं। लाखों गैलेक्सी अंतरिक्ष में एक केंद्र बिंदु से परे बड़ी तेजी से गति कर रही हैं। कहीं कुछ टिका हुआ नहीं है। धरती अगर टिकी होती तो दिन-रात नहीं होते, नहीं तो नीचे जाकर देख लो टिकी वस्तु घूम नहीं सकती । सर्प तो एक प्राणी है और चित्र में में वर्णित नाग सर्प की एक प्रजाति है।
कथानक का विश्लेषण: प्रश्न है कि ये एक शेषनाग है या अनेक शेषनागों ने मिलकर इस भारी और गतिमान पृथ्वी को फन पर उठाया है?शेषनाग के अन्य साथी कहाँ गए ?कितनी शक्ति लगायी है?पृथ्वी पर मौजूद अन्य शेषनाग क्या कर रहे है ? शेषनाग की आयु ईश्वर ने कितनी निश्चित की है जो अभी तक जिन्दा है ?इस शेष नाग ने कभी विश्राम किया है या नहीं?क्या इस विशेष शेषनाग को कोई सजा के तौर पर पृथ्वी को धारण करने की सजा दी है? पृथ्वी पर रहने वाले पुराण के लेखक को कैसे ये मालूम हुआ की शेषनाग ने पृथ्वी अपने फन पर उठा रखी है?यदि धरती शेषनाग के फन पर टिकी है तो शेषनाग कहाँ टिका है?
इस कथानक में अलंकार की भाषा का प्रयोग हुआ है। जो इस कथानक को वास्तविक शेषनाग के द्वारा धारण किया हुआ मानते है और एक शेषनाग की तस्वीर या मूर्ति पर पृथ्वी को धारण किया हुआ मानकर उसको पूजते है उनको वास्तविक सत्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाना चाहिए।
कथानक में शेषनाग के सात फन दिखाए गए है और कहा गया है की धरती शेषनाग के फन पर टिकी है। इस तथ्य पर ध्यान देना जरुरी है पहले शेष और फिर नाग का भावार्थ समझने का प्रयास करते है।
शेष: ये हम जानते है की ईश्वर निराकार और निराधार है। जो सृष्टि से पूर्व था और रहेगा। इसलिए वेद मंत्रो में कहा गया है की ईश्वर ने सूर्य ,चंद्र, तारे आदि धारण किये हुए है।
वेद में एक मंत्र आता हैः-
ओ३म् येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।।
योेअन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। यजुर्वेद -३२.६
इस वेद मंत्र के अनुसार धरती को ईश्वर ने धारण किया है। जो इसका बनाने वाला है और सृष्टि को रचने वाला ब्रह्मा (ईश्वर) है।
इसी तरह अन्य वेद मंत्र भी है:-
ओं समुद्रादणवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वाशी।।
ओं सूर्य्याचंद्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवञ्च पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः ।।
सृष्टि के रचयिता ईश्वर पुनः सृष्टि के निर्माण के लिए प्रलय लाता है तो कुछ नहीं बचता ,सिर्फ ईश्वर ही शेष रह जाता है। इस अलोक में ईश्वर को शेष भी कहा गया है।
(शिष विशेषणे) इस धातु से ‘शेष’ शब्द ख्सिद्ध, होता है। ‘यः शिष्यते स शेषः’ जो उत्पत्ति और प्रलय से शेष अर्थात् बाकी रहता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘शेष’ है।
नाग का भावार्थ: यहां नाग का भावार्थ नाग सर्प से नहीं है। इस शब्द के निहित अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए।
हम जानते है की वेद मंत्रो में ३३ कोटि के देवता बताये गए है। विश्व में तैंतीस कोटि के देव अर्थात तैंतीस प्रकार के देव हैं , तैंतीस करोड़ नहीं द्य अथर्ववेद -१०ध्७ध्२७ में कहा गया है — ‘‘ यस्य त्रयस्त्रिंशद् देवा अङ्गे गात्रा विभेजिरे द्य तान् वै त्रयास्त्रिंशद् देवानेके ब्रह्मविदो विदुः द्यद्य ‘‘ अर्थात वेदज्ञ लोग जानते हैं कि तैंतीस प्रकार के देवता संसार का धारण और प्राणियों का पालन कर रहे हैं द्य
यहाँ मनुष्य ,पशु आदि के लिए प्राणी शब्द का प्रयोग हुआ है क्योकि ये जीवित रहने के लिए प्राण वायु ग्रहण करते है। इस प्राण के ५ उपप्राण है जिनको ३३ कोटि के देवताओ की गिनती में आते है ।
प्राण और उपप्राण —
पाँच प्राण हैं — प्राण , उदान , समान , व्यान और अपान ।
पाँच उपप्राण हैं — नाग , कूर्म , कृकल , देवदत्त और धनञ्जय ।
पांच उपप्राण में जो नाग शब्द आता है इसके भावार्थ को ठीक तरह से नहीं समझने के कारण भ्रांतिया पैदा हुई है इसी कारन नाग पंचमी पर्व पर नाग सर्प को दूध पिलाकर उसपर अत्याचार के भागी बनते है। नाग एक उपप्राण है जिससे सर्प की तरह लिपटे हुए आंत्र से वायु निकलती है। यह कंठ से मुख (यानि की फन ) तक रहता है। उदगार (डकार) ,हिचकी आदि इसी के द्वारा होते है।
इस उपप्राण नाग की महत्ता को समझाते हुए अलंकार की भाषा में कहा गया है की पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है।
सात फन से तात्पर्य ? यहाँ नाग वायु को भूलोक पर उसकी स्थिति के अनुसार विद्वानों ने 7 प्रकार की वायु का वर्णन किया है ,जिसको ७ फन की संज्ञा दी है। ये इस प्रकार है —
१ प्रवह –पृथ्वी से उठकर मेघमंडल पर्यंत जो वायु होती है, उसी को प्रवह कहा जाता है। प्रवह के भी कई प्रकार हैं। प्रवह बहुत ही शक्तशाली होती है और इसी की वजह से बादल इधर-उधर उड़कर जाते है। धूप और गर्मी से बनने वाले बादलों को यह प्रवह वायु ही समुद्र के जल भर देती है, जिसे हम “काली घटा” भी कहते हैं जो ज्यादा वर्षा करने वाले होते हैं।
२ आवह –आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई एक प्रकार की वायु ही है। इसी वायु द्वारा हमारे ध्रुवों से सौरमंडल बंध कर आपस में घूमता है।
३ उद्वह –उद्वह को वायु की तीसरी शाखा कहा जाता है, यह चन्द्रलोक में बहती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार यही वायु ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाती है।
४ संवह –संवह को वायु की चैथी शाखा कहा जाता है, यह वायु नक्षत्रों के पास रहती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार यही वायु ध्रुव से संबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
५ विवह –विवह को वायु की पांचवीं शाखा का नाम दिया गया है और यह ग्रह मंडल में स्थित होती है। इसी वायु शाखा के द्वारा ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता है।
६ परिवह –परिवह को ही वायु की छठी शाखा का नाम दिया है, धर्म शास्त्रों के अनुसार यहाँ शाखा सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी वायु शाखा के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तश्रर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
७ परावह –परावह को वायु के सातवें स्कंध का नाम दिया गया है, जो ध्रुव में बंध कर रहता है और इसी के द्वारा अन्यान्य मंडल और एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सभी शाखाओ को हम मरुत भी कहते है। जो भूलोक के सञ्चालन के लिए आवश्यक है।
इसी अलोक में अलंकार की भाषा में ये कहा गया की पृथ्वी शेष नाग के ७ फन पर टिकी हुई है। सब एक ईश्वर ने बनाया है और वही इनको धारण किये हुए है। इस श्लोक में शेषनाग वाली कहावत या तो उपमा अलंकार हो सकती है या गप्प कथा जिसमंे नाग की तस्वीर दिखाई दी है ।
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