8 मार्च शिवरात्रि पर्व पर विशेष-
- सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
यह महाशिवरात्र पर्व प्रायः सारे भारत में मनाए जाने वाला पवित्र पर्व है। जहां यह पर्व शिव के भक्तों और उपासकों के लिए व्रत स्नान और शिवालयों में पूजन से जुड़कर मोक्ष प्रदान करता है। वहीं दार्शनिकों तत्व ज्ञानियों और प्रबुद्ध जनों के लिए शिवत्व की महिमा का विशेष महत्व है।
महाशिवरात्रि पर जहां हिंदू जनता पवित्र पूजन करती है और उपवास रखती है। वहीं अनेक लोग शिव पार्वती की मूर्ति बनाकर बेल पत्रों से उनका पूजन करते हैं। कुछ लोगों के पास तो भगवान शिव के वाहन नंदी बैल की भी चांदी की प्रतिमा होती है या वे बनाते हैं और उसकी भी पूजा-अर्चना की जाती है। नंदी पर सवार रहने के कारण शिव को नंदीकेश्वर भी कहा जाता है। भगवान शिव को काम शास्त्र तथा रसायन शास्त्र का प्रतीक माना जाता है। ऐसी कल्पना भी है कि शिव की उत्पत्ति परम शिव से हुई है। सृष्टि की रचना में अन्न, दूध घी तथा वर्षा पोषक तत्व है। इन सब का प्रतीक वृषभ है।
शिव की आराधना मनुष्य की जड़ता और अज्ञानता को काटती है । और मनुष्य में सृजन शक्ति का विकास होता है। इस सृजन शक्ति से ही जगत का अधिकतम कल्याण संभव है। पर यह तभी संभव है । जब हर मानव भीतर के शिव को जागृत करके परम शिव में समाहित कर दे। वास्तव में प्रतिभाशाली एवं बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो प्रिय वस्तु खो जाने पर कभी शोक संतप्त नहीं होता अर्थात सुख एवं दुख में समभावी बना रहता है ।
नील रूद्रोपनिषद ग्रंथ में ऋषियों ने भगवान शंकर से विश्व कल्याण हेतु याचना करते हुए कहा है कि ” हे कैलाश वासी शिव” हम अपनी मंगलमयी वाणी द्वारा आपके अत्यंत निर्मल यश का गान करते हैं । क्योंकि ऐसा करने से यह संपूर्ण विश्व हमारे अनुकूल होकर दु:ख शून्य हो जाएगा । आपके बाण कल्याणकारी हैं। आपका धनुष और उसकी प्रत्यंचा भी कल्याणकारी है ।
“हे कल्याण स्वरूप अपने इन आयुधों के द्वारा आप हमें जीवन देते हैं।”हे भगवान रुद्र आप पर्वत पर निवास करते हुए भी सबका मंगल करते हैं । आपका जो पाप नाशक स्वरूप है, उसके द्वारा हमें सब और से प्रकाश दीजिए।
भगवान शिव ही सृष्टि के प्रेरक शक्ति एवं इसके सूत्रधार हैं। शिवलिंग की पूजा का तात्पर्य है मन के विकारों और वासनाओं को मन से निकाल कर मन को निर्मल बनाना । वायु पुराण के अनुसार प्रलय काल में सारी सृष्टि जिसमें वस्तुत: लिंग एक व्यापक शब्द है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा ही शिवलिंग या आकाश लिंग का प्रतीक है।
शिव के नृत्य से ही सभी वस्तुओं की सृष्टि का आरंभ होता है । यह नृत्य सृष्टि के आरंभ से ही चल रहा है । क्योंकि इस आदि नृत्य को हम ग्रह नक्षत्र तथा तारक मंडलों के सामूहिक नृत्य में नियमित गति में और एक दूसरे की गति रेखा में अबोध स्थान परिवर्तन में विद्यमान पाते हैं शिव का नृत्य यथार्थ में ईश की पंच क्रियाओं का अर्थात सृष्टि, संहार, स्थिति, तिरोभाव और अनुग्रह के देवता का द्योतक है विश्व की क्रियाएं नृत्य का प्रमुख विषय है।
डमरु की ध्वनि से सृष्टि होती है। अग्नि से दुष्टों का संहार होता है । अभय हस्त से रक्षा होती है । और उर्धवपाद से मुक्ति मिलती है । यही नटराज हैं। नटराज का एक और विवेचन है नृत्य करता हुआ चरण, किंकणीं, ध्वनि, गाए जाने वाले राग, विचित्र चरण, न्यास नृत्य ,गुरु के स्वरूप इन्हें अपने अंदर ही ढूंढ निकालो। तब तुम्हारे सारे बंधन कट जाएंगे। जो मनुष्य भगवान शिव की महिमा को नहीं जानता। वह ब्रह्मा विष्णु को भी नहीं जान सकता क्योंकि यह तीनों महादेव एक ही महाशक्ति के विभिन्न रूप हैं ।
ब्रह्मा सृष्टि के करता विष्णु सृष्टि के पालन करता और शंकर उसके संहार करता हैं। इनमें भगवान शिव ही जन्म और मृत्यु के बीच कड़ी के रूप में सतत विद्यमान हैं । शिव ही प्राणियों को एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रतिस्थापित करते हैं ।इसलिए शिव को रूद्र उपनिषद में प्राण लिंग कहा गया है।
पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं। ये ज्योतिर्लिंग शिव का प्रतीक है। हिमालय से कन्याकुमारी तक समुद्र से गिरी शिखरों तक ग्रामों में तो कहीं पहाड़ की चोटी पर भी तो कहीं नदी किनारे कोई-कोई तो नदी के उद्गम स्थान पर और कोई दुर्गम स्थानों में विराजमान हैं।
महाशिवरात्रि की साधना और आराधना से वह सब कुछ सिद्ध हो सकता है जो धरती और उसके वासियों के लिए मंगलकारी होता है। अतः आइए शिव साधना द्वारा समस्त चराचर जगत की सुख शांति के लिए प्रयास करें। और जन कल्याण मानव कल्याण के लिए शिव की भक्ति और आराधना करें। “ओम नमः शिवाय”।
- सुरेश सिंह बैस शाश्वत
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