भजन : पं० लेखराम बलिदान दिवस !
लेखक – स्व. श्री चन्द्रभानु आर्योपदेशक जींद
आगे की कहानी, कही नही जाती ॥ टेक ॥
लेखराम ने हाल सुना तो बड़ा रहम सा आता है ।
यवन युवक यूं कहने लगा, मुझको दर्द सताता है ।
लेखराम उस मुसलमान को डाक्टर पर ले जाता है ।
डाक्टर जी ने कहा पण्डित जी, ये झूठी बात बनाता है ॥
खून उबल रहा है इसका खूंखार की तरह लखाता है ।
नहीं खुलकर बात बताता है, ना पेट दिखाना चाहता है ||
इसकी शैतानी, कही नहीं जाती ।।1।।
पण्डित जी उस मुसलमान को अपने घर लाते हैं ।
जल्दी भोजन त्यार करो, निज पत्नी से फरमाते हैं ।
ऋषि की जीवनी लिखने को ये कलम दवात उठाते हैं ।।
मौका देखकर उस जालिम ने पं० जी पर वार किया ।
वार भी ऐसा किया दुष्ट ने छुरा पेट से पार किया ।
पं० जी ने हाथ पकड़कर उस जालिम को बाहर किया।
करी खतम जवानी, कही नहीं जाती ।। 2 ।।
दृश्य देख रही थी सारा, रसोई में बैठी महतारी ।
पत्नी पानी लेकर आ गई, भागी कर के होशियारी ।
‘हाय मेरा बेटा’ ‘हाय मेरा बेटा’ कह मां ने किलकी मारी ||
जुल्म कर दिया आओ दौड़ कर पकड़ लिया ये हत्यारा ।
कातिल ने भी रसोई में से, बुढ़िया को बेलन मारा।
बुढ़िया तो बेहोश हो गई, नहीं चला कुछ भी चारा ।
हुई कुनबा घानि, कही नहीं जाती ॥ 3 ॥
पता चला जब हाल देखने महात्मा मुंशीराम गए ।
जुल्म हो गए, प्रलय हो गई, छोड़ आर्य काम गए।
और बहुत से आर्य नेता, करने अन्तिम प्रणाम गए ।
लेखराम कहने लगे तुम्हें छोड़ चल दिया आज मैं ।
ऋषि का मिशन करो तुम पूरा, मत फँसो नखरे नाज में ।
लेख का काम बन्द ना होने पाए आर्य समाज में ।।
चन्द्रभान जुबानी, कही नहीं जाती ॥ 4 ॥
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