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कविता

आतंकवादी

आतंकवादी

राहू और केतु ने ग्रस लिया
सौरमंडल के नियन्ता को
सूर्य और चन्द्र को
जिनसे होते दिन और रात
जिनसे निकलती तारों की बारात
जिनके बूते उगता जीवन का अंकुर
पशु पक्षी मानव कीट पतंग वनस्पति जीवाणु
गरमी जाड़ा व बरसातl

निवेदन किये, जोड़ा हाथ
पड़े पांव, रोये – गिड़गिडा़ये
उनको उनके भी पतन की याद दिलाये
तब ग्रहण का बंधन छूटा
राहू – केतु का विजयी अट्टहास रुका
धरती ने बच्चों के लौटते जीवन को
देखकर राहत की सांस लीl

पर गजब हो गया
धरती की कोख में पल रहे जीव
ग्रहण से ग्रस्त हो गए
धरती के साथ ही सूर्य और चन्द्र के
हौसले भी पस्त हो गएl

जीवन धात्री क्या करती बेचारी!
अपने ही कोख से पैदा की
ग्रहण से प्रभावित बच्चे
जो उत्परिवर्तन के प्रभाव से
हो गए थे राहू व केतू जैसे
धरती अपने इन बच्चों से आज भी ग्रस्त है
ममता का आंचल अनचाहे परिवर्तन से त्रस्त हैl

राहू और केतु भी इनकी हरकत से लजाते हैं
सूर्य और चन्द्रमा को देखकर मुँह छिपाते हैं
धरती की पीड़ित कोख पर पछतावे का आंसू बहाते हैं
और ये ही विकृत बच्चे
धरती के आंचल और
अपने ही सगे भाई- बहनों को मारकर
खून की नदी बहाते हैं
हां …….हां
आज के दौर में
ये ही आतंकवादी कहलाते हैंl

डॉ अवधेश कुमार अवध

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